पहाड़ों की गोद में पसरे ठंडे स्वच्छ निर्मल जल ने मानवीय मन व शरीर को हमेशा आमंत्रित किया है और पनीली आगोश में टहलता जमीन का गोलमटोल हिस्सा भी हो तो अचरज भरे अद्भुत अनुभव होने स्वाभाविक हैं। कुछ ऐसी ही जादूगरनी है पराशर झील। खूबसूरत ख्वाब के दो हिस्से जैसे हैं पराशर स्थल और झील। मंडी की उत्तर दिशा में लगभग 50 किलोमीटर दूर हिमाचल की प्राकृतिक झीलों में से एक, स्वप्निल मनोरम व नयनाभिराम। किसी भी मौसम में खिंचे चित्र इतने दिलकश लगते हैं कि पराशर जाने के लिए सैलानी मन को मानो पंख लग जाते हैं। एक बार झील का सानिध्य प्राप्त हो जाए तो समझ में आता है कि हमेशा कंकरीट के जंगल में घूमने से बेहतर है कुदरत के घर भी आया जाए। हिमाचल आकर अतिरिक्त निर्मल आनंद की चाह रखने वालों को मां प्रकृति की पराशर जैसी सौम्य गोद में अवश्य जाना चाहिए।
आप मनाली जा रहे हैं या लौट रहे है रास्ते में मंडी रुक जाइए। यहां बिंद्राबन स्थित महाप्रसिद्ध फोटो गैलरी ‘हिमाचल दर्शन’ में कुछ देर रुककर शेष हिमाचल का दीदार भी कर लीजिए जहां आप जा नहीं सके या जा नहीं सकेंगे। समय हो तो इस विराट अनूठे प्रयास के कर्मठ रचयिता बीरबल शर्मा से मुलाकात कीजिए। मंडी स्थित लगभग सात दर्जन पूजा स्थलों की पुरातत्वता में रमिए। स्थानीय स्वादों का लुत्फ उठाइए। जेब में समय हो तो मंडी के पर्यटक स्थल भी घूमे जा सकते हैं।
हम बात कर रहे थे पराशर की। मंडी से निजी वाहन में दो घंटे से ज्यादा लग जाते हैं। भला कहां 2660 फुट (800 मीटर) पर बसा मंडी और कहां 9100 फुट (2730 मीटर) पर पसरी पराशर झील तक की रोमांचक, मजेदार चढ़ाई। पराशर की ओर ज्यादा पर्यटक नहीं मुड़ते, क्योंकि यह स्थल ज्यादा प्रचारित नहीं है। मगर एक बार वहां आवारगी कर आएं तो इस अलग दुनिया में बार-बार टहलने को मन करता है, कभी अपने साथ तो कभी मित्रों-परिचितों के साथ। पराशर की सुंदरता हर मौसम में नए अंदाज में प्रभावित करती हैं। किसी भी मौसम में जा सकते हैं पराशर।
मंडी से जोगेंद्रनगर की सड़क पर लगभग डेढ़ किमी. दूर एक सड़क दाएं तरफ चढ़ती है। यह सड़क कटौला कांढी होकर बागी पहुंचती है। यहां से पैदल ट्रैक करना हो तो झील मात्र आठ किलोमीटर रह जाती है। बागी से आगे गाड़ी से भी जा सकते हैं। दूसरा रास्ता राष्ट्रीय राजमार्ग पर मंडी से आगे बसे सुंदर पनीले स्थल पंडोह से नोरबदार होकर पहुंचता है। तीसरा रास्ता माता हणोगी मंदिर से बान्हदी होकर है, और चौथी राह कुल्लू से लौटते समय बजौरा नामक स्थान के सैगली से बागी होकर है। मंडी से द्रंग होकर भी कटौला कांढी बागी जा सकते है। पराशर पहुंचने के सभी रास्ते हरे-भरे जंगली पेड़-पौधों फलफूल व जड़ी बूटियों से भरपूर हैं और ज्यों-ज्यों पराशर के नजदीक पहुंचते हैं प्रकृति का रंग-ढंग भी बदलता जाता है।
एक खूबसूरत ख्वाब सी हसीन झील पराशर और उसमें तैरता विशाल भूखंड। झील में तैर रही पृथ्वी के इस बेड़े को स्थानीय भाषा में टाहला कहते हैं। बच्चों से बुजुर्गों तक के लिए यह अचरज है क्योंकि यह झील में इधर से उधर टहलता है। झील के किनारे आकर्षक पैगोडा शैली में निर्मित मंदिर जिसे 14वीं शताब्दी में मंडी रियासत के राजा बाणसेन ने बनवाया था। कला संस्कृति प्रेमी पर्यटक मंदिर प्रांगण में बार-बार जाते हैं। कहा जाता है कि जिस स्थान पर मंदिर है वहां ऋषि पराशर ने तपस्या की थी। पिरमिडाकार पैगोडा शैली के गिने-चुने मंदिरों में से एक काठ निर्मित, 92 बरसों में बने, तिमंजिले मंदिर की भव्यता अपने आप में मिसाल है। पारंपरिक निर्माण शैली में दीवारें चिनने में पत्थरों के साथ लकड़ी की कडिय़ों के प्रयोग ने पूरे प्रांगण को अनूठी व नायाब कलात्मकता बख्शी है। मंदिर के बाहरी तरफ व स्तंभों पर की गई नक्काशी अद्भुत है। इनमें उकेरे देवी-देवता, सांप, पेड़-पौधे, फूल, बेल-पत्ते, बर्तन व पशु-पक्षियों के चित्र क्षेत्रीय कारीगरी के नमूने हैं।
झील के आसपास घूम रहे स्थानीय श्रद्धालु मंदिर जाने की तैयारी में हैं। वे झील से हरी-हरी लंबे फर्ननुमा घास की पत्तियां निकाल रहे हैं। इन्हें बर्रे कहते हैं और छोटे आकार की पत्तियों को जर्रे। इन्हें देवता का शेष (फूल) माना जाता है। अपने पास श्रद्धा के साथ संभालकर रखा जाता है। मंदिर के अंदर प्रसाद के साथ भी यही पत्ती दी जाती है। मंदिर प्रांगण में श्रद्धा और परंपरा का आलम है। पूजा कक्ष में ऋषि पराशर की पिंडी, विष्णु-शिव व महिषासुर मर्दिनी की पाषाण प्रतिमाएं हैं। पराशर ऋषि वशिष्ठ के पौत्र और मुनि शक्ति के पुत्र थे। पराशर ऋषि की पाषाण प्रतिमा में गजब का आकर्षण है। इसी प्राचीन प्रतिमा के समक्ष पुजारी आपके हाथ में चावल के कुछ दाने देता है। आप श्रद्धा से आंखें मूंदें मनोकामना करते हैं। फिर आंखें खोल दाने गिनते हैं। यदि दाने तीन, पांच, सात, नौ या ग्यारह हैं तो कामना पूरी होगी और यदि दो, चार, छह, आठ या दस हैं तो नहीं। मन्नत पूरी पर पहले यहां पशु बलि की परंपरा भी रही है हालांकि अब उसे हतोत्साहित किया जाता है। इलाके में बारिश नहीं होती तो एक पुरातन परंपरा के अनुसार पराशर ऋषि गणेश जी को बुलाते हैं। गणेश जी भटवाड़ी नामक स्थान पर स्थित हैं जो कि यहां से कुछ किलोमीटर दूर है। यह वंदना राजा के समय में भी करवाई जाती थी और आज सैकड़ों वर्ष बाद भी हो रही है। झील में मछलियां भी हैं जो नन्हें पर्यटकों को खूब लुभाती हैं।
पराशर झील के निकट हर बरस आषाढ़ की संक्रांति व भाद्रपद की कृष्णपक्ष की पंचमी को विशाल मेले लगते हैं। भाद्रपद में लगने वाला मेला पराशर ऋषि के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। पराशर स्थल से कई किलोमीटर दूर कमांदपुरी में पराशर ऋषि का भंडार है जहां उनके पांच मोहरे हैं। यहां भी अनेक श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते है।
पराशर आने वाली गाडिय़ों को झील से थोड़ा पहले रुकना होता है फिर पैदल ही झील तक पहुंचा जाता है। इसी कारण झील की प्राकृतिकता बची हुई है। झील क्षेत्र एक अविस्मरणीय पिकनिक स्थल है। इस स्थल का सौंदर्य अभी एकाकी व अछूता है। याद रहे पराशर के अड़ोस-पड़ोस में चर्चित फिल्मकार विधु विनोद चोपड़ा ने ‘करीब’ फिल्म की काफी शूटिंग की थी।
यहां ठहरने के लिए रेस्ट हाउस हैं। हां, खाने-पीने के लिए वांछित सामग्री, मिनरल वाटर दवाइयां व अन्य सामान अपने साथ ले जाना बेहतर और जरूरी है। चाहें तो रात को पराशर स्थित फारेस्ट हाउस में ठहर सकते हैं, या शाम को आराम से मंडी लौट सकते हैं। थोड़ी खराब सड़क या अन्य छोटी मोटी दिक्कतों से परेशान न हों तो जीवन में थोड़ा रोमांच भी मजेदार है। फारेस्ट हाउस की बुकिंग के लिए (डीएफओ, मंडी 01905-235360 पर संपर्क करें) चौकीदार से अनुरोध करें तो रात को सादा खाना मिल सकता है। चौकीदार ही बावर्ची का काम भी कर देता है।
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