Sunday, May 19
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मानो परीलोक से उतरी हो यह मोनेस्ट्री

लोग कहते हैं कि धरती पर जन्नत सरीखी यह जगह उस इंसान ने खोज निकाली जो एक तरह से नर्क की यातना से गुजर रहा था। प्रचलित कहानियों के अनुसार इटनी में मिलान का रहने वाला एक संपन्न व्यापारी अल्बर्टो बेसोजी 12वीं सदी में किसी व्यापारिक काम के सिलसिले में जब मैजियारे झील में अपनी नाव पर था तो एक भयंकर तूफान में फंस गया। उस भयंकर मुसीबत के समय में उसने एलेक्जेंड्रिया की संत कैथरीन से मदद की गुहार लगाई जिनकी वह आराधना करता था। उस समय उसे झील के किनारे चट्टानों के भीतर एक गुफा में शरण मिल गई। उसने बदले में अपना जीवन उसी गुफा में आराधना करते हुए बिताने का फैसला किया।

उसने 1195 में वहां एक छोटी सी चर्च का निर्माण किया। वहीं चैपल में उसे बाद में दफनाया भी गया। अब यह चैपल वहां 13वीं से 17वीं सदी के बीच स्थानीय लोगों और  विभिन्न धार्मिक समुदायों द्वारा बनाई गई खूबसूरत इमारतों का हिस्सा है जो अब भी वहां उसी भव्यता के साथ मौजूद हैं। 13वीं सदी में यहां ऑगस्टाइन के अनुयायी साधु रहते थे। फिर 1379 में एम्ब्रोसियाई साधु यहां आ गए और 1649 में कार्मेलियाई। आज इस मोनेस्ट्री का संचालन बेनेडिक्टों के हाथ में है। यहां अब तीन इमारतें हैं—दक्षिणी कांवेंट, छोटा कांवेंट और चर्च। दक्षिणी कांवेंट 15वीं सदी में बनाया गया था और फिर 1624 में इसमें थोड़ी तब्दीली की गई क्योंकि उसका लकड़ी का बना पुराना ढांचा झील में ढह गया था। छोटा कांवेंट 13वीं सदी की दीवारों पर बनाया गया था। इसमें भोजनालय निचली मंजिल पर और पहली मंजिल पर साधुओं के रहने के कमरे हैं। इन कमरों की खिड़कियों के ऊपर दीवार पर संत कैथरीन की शहादत को दर्शाने वाली 16वीं सदी की फ्रेस्को पेंटिंग मौजूद हैं। परिसर का भीतरी दालान चर्च की तरफ खुलता है जिसमें रेनेसां शैली में चार विशाल मेहराबें बनी हैं। परिसर में एक घंटाघर (बेलफ्राई) है, बिलकुल झील के सहारे खड़ा हुआ। यह 14वीं सदी में बनाया गया था।

कहते हैं कि 1640 में यहां एक और विलक्षण घटना हुई जब पहाड़ की चोटी से पांच बड़ी-बड़ी चट्टानें नीचे गिरीं। उससे उस चैपल की छत टूट गई जिसमें अल्बर्टो का शरीर दफन था, लेकिन उनकी कब्र को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। कैथोलिक लोग तो अल्बर्टो की मृत्यु के बाद से ही उन्हें संत घोषित करवाना चाहते थे। चट्टान टूटने की इस घटना को भी एक चमत्कार के तौर पर देखा गया। कुछ लोगों का कहना है कि इस घटना के बाद से ही इस जगह के नाम में सास्सो यानी चट्टान जुड़ गया और यह सांता कैटरिना देल सास्सो हो गया।

अब इसे बोर्रोमियो खाड़ी की तरफ निहारती मैजियारे झील के आसपास मौजूद सबसे विलक्षण ऐतिहासिक स्थल माना जाता है। आप या तो नाव से यहां पहुंच सकते हैं और फिर जेट्टी से आपको 80 सीढ़ियां ऊपर चढ़नी होंगी, या फिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित कार पार्किंग तक पहुंच सकते हैं जहां से आपको 240 सीढ़ियां नीचे चर्च तक उतरनी होंगी। इस जगह का विहंगम नजारा वाकई मंत्रमुग्ध करने वाला है।

चट्टानों में लिफ्ट

सांता कैटरिना देल सास्सो में अब आपको आधुनिक इंजीनियरिंग का नायाब नमूना भी देखने को मिल सकता है। इसकी बदौलत अब आप वरबानो में सबसे खूबसूरत नजारे वाले बिंदु से नीचे मोनेस्ट्री में लिफ्ट से पहुंच सकते हैं। चट्टानों के भीतर से निकाली गई यह लिफ्ट एक बार में 12 लोगों को नीचे लेकर जा सकती है। वैसे तो नीचे जाने के लिए सीढ़ियों का रास्ता बहुत खूबसूरत है लेकिन बुजुर्ग व शारीरिक रूप से अन्य चुनौतियों वाले लोग 51 मीटर नीचे जाने के लिए लिफ्ट की मदद ले सकते हैं। लिफ्ट के नीचे पहुंचने के बाद बाहर किनारे पर निकलने के लिए 45 मीटर लंबी सुरंग है। लिफ्ट बनाना भी खासा चुनौतीपूर्ण था क्योंकि इसमें न केवल पहाड़ की समूची चट्टानी सतह को टूटने से बचाना था बल्कि सदियों पुरानी चर्च, घंटाघर व मोनेस्ट्री की बुनियाद को भी मजबूत बनाए रखना था।

यह भले ही चर्च है लेकिन यहां किसी भी धर्म, मजहब व समुदाय के हर उम्र व लिंग के लोगों को जाने की इजाजत है। यहां जाने के लिए सामान्य लोगों को शुल्क देना होता है। चर्च के खुलने के भी तय दिन व समय हैं। लिहाजा जब जाएं तो उसका ध्यान रखें।

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