यह केवल होटल नहीं है बल्कि अपने आप में एक कलाकृति है। यहां बर्फ के एक से बढ़कर एक अनूठे शिल्प गढ़े जाते हैं। ऐसे शिल्प, जिनके साथ आप रहते हैं, रात गुजारते हैं। पहले यह अनूठा होटल केवल सर्दी के मौसम में ही खुलता था। लेकिन अब आप पूरे साल यहां टिक सकते हैं
तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे हो और मैं आपको कहूं कि आज की रात जरा ऐसे होटल में बिताई जाए जिसमें सब तरफ बर्फ की दीवारें हों, और सोने के लिए बिस्तर भी बर्फ की सिल्लियों का बना हो तो आप या तो मुझे पागल मानेंगे या फिर आप समझेंगे कि मैं आपको पागल बनाने की कोशिश कर रहा हूं। लेकिन, नहीं जनाब। इन दोनों में से कोई बात नहीं। मैं हकीकत बयान कर रहा हूं, एक ऐसे होटल की जो पूरी तरह बर्फ का बना है। वहां हर तरफ सिर्फ बर्फ है। और यह पागलपन नहीं क्योंकि वहां लोग आते हैं और ठहरते हैं, पूरे लुत्फ के साथ। हाल यह है कि इस होटल में टिकने के लिए काफी पहले से बुकिंग करानी होती है।
इस तरह के आइस होटल उत्तरी यूरोप में भी हैं और कनाडा में भी। लेकिन यहां मैं जिस होटल का जिक्र कर रहा हूं, वह दुनिया का सबसे बड़ा आइस होटल है। यह स्वीडन के लैपलैंड इलाके में है, जुकासजार्वी गांव में। इस गांव की आबादी महज एक हजार है और यहां कुत्तों की आबादी इंसानों से ज्यादा है। यह जगह आर्कटिक सर्किल से भी दो सौ किलोमीटर उत्तर में है। यूरोप के सबसे उत्तरी निर्जन इलाके में से एक। उस इलाके में गर्मियों में सौ दिनों तक सूरज नहीं डूबता और सर्दियों में सौ दिनों तक सूरज नहीं निकलता। ऐसे बर्फीले इलाके में आइस होटल की कल्पना रोमांचित कर देने वाली है।
यह होटल अब 31 साल का हो चुका है। महज 60 वर्ग मीटर से शुरू होकर यह 5500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल अख्तियार कर चुका है। यह होटल हर मायने में अद्भुत है। जब 1989 में यह शुरू हुआ था तो दुनिया का पहला आइस होटल था। चार साल पहले यानी 2016 में यह दुनिया का ऐसा पहला आइस होटल बन गया था जो अब पूरे साल चालू रहता है। अब भी यह दुनिया में बर्फ व आइस से बना सबसे बड़ा होटल है।
हर साल जब सर्दी के परवान चढ़ने के बाद टोर्न नदी का पानी ठंड से बर्फ में तब्दील हो जाता है तो यहां यहां नया आइस होटल शक्ल लेने लगता है। यानी हर साल एक नया होटल, नया विचार और नई कलाकृतियां। पहले यह होटल महज दिसंबर से अप्रैल तक के पांच महीने खड़ा रहता था। दिसंबर में तो दरअसल इसके बनने की शुरुआत होती है। और लोग दुनियाभर से इसके खड़े होने की प्रक्रिया देखने भी पहुंचते हैं। हर तरफ दुनियाभर से जुटे कलाकार, आर्किटेक्ट, डिजाइनर व स्नो बिल्डर बर्फ को अलग-अलग शक्ल देने में लगे रहते हैं। टोर्न नदी में ही इस होटल के लिए इस्तेमाल होने वाली बर्फ की खेती की जाती है। कितनी शानदार बात है कि हर साल नवंबर में यह कलाकृति बनने लगती है और अप्रैल में मौसम गर्म होते ही इसे सब धीरे-धीरे पिघलता देखते रहते हैं।
बहरहाल, 2016 के बाद से सर्दी में बर्फ से बनने वाले होटल के बगल ही में एक हिस्सा वह भी है जो पूरे सालभर खड़ा रहता है। इसे आइस होटल 365 कहा जाता है क्योंकि यह साल में पूरे 365 दिन खुला रहता है। यह हिस्सा सौर ऊर्जा से चलता है और इसमें बर्फ व आइस से बने 11 आर्ट व नौ डीलक्स स्वीट्स सालभर उपलब्ध रहते हैं, साथ ही इस गैलरी और आइस बार भी। यह स्थायी इलाका 2100 वर्ग मीटर में बना हुआ है।
मजेदार आंकड़े
हर साल दुनियाभर से 70 हजार लोग इस आइस होटल में रुकने के लिए आते हैं। हर साल सर्दियों वाले आइस होटल को बनाने के लिए टोर्न नदी में बर्फ की 2500 सिल्लियों की खेती की जाती है और हर सिल्ली का वजन करीब 2 टन होता है। हर साल करीब 200 कलाकार आइस होटल के निर्मा में अपना योगदान देने के लिए आवेदन करते हैं। अब यह जगह प्रेमी युगलों में इतनी लोकप्रिय हो चली है कि हर साल बर्फ के बीच यहां करीह 80 विवाह होते हैं।
सैलानी जब जुकासजार्वी में आइस होटल में पहुंचते हैं तो पहले उन्हें आइस होटल के बगल में एक इमारत में चेक-इन कराया जाता है, जो खास तौर पर आइस होटल में रुकने वालों के लिए ही है। चूंकि आइस होटल में डीलक्स स्वीट के अलावा और कहीं स्टोरेज अथवा प्लंबिंग नहीं की जाती है, इसलिए सारी सुहूलियतों के लिए वह बगल वाली इमारत ही काम में आती है। इसमें सौना और धधकती आग वाला एक रिलेक्सेशन एरिया भी है। वहां नल में लिंगनबेरी का गरमागरम जूस निकालकर पीया जा सकता है। यह इलाका 24 घंटे खुला रहता है और हर वक्त यहां स्टाफ मौजूद रहता है।
यहां पहुंचने के बाद रिसेप्शनिस्ट आपके ऊपर पहने जाने वाले गरम कपड़ों के लिए मदद देते हैं और होटल घुमाते हैं। रात में आइस होटल में रुकने वालों के लिए शाम में एक ‘सर्वाइवल कोर्स’ होता है, जिसमें उपयुक्त कपड़े पहनने और रात में स्लीपिंग बैग में कायदे से सोने के बारे में बताया जाता है। आर्ट स्वीट, स्नो व आइस रूम में दरवाजे नहीं होते। गलियारे की तरफ पर्दा लगा होता है। सवेरे स्टाफ का व्यक्ति पर्दा हटाता है और गर्म लिंगनबेरी जूस के साथ आपको उठाता है। जब आर चेक-आउट करते हैं या फिर होटल के गर्म इलाके की तरफ जाते हैं तो आपको डिप्लोमा सर्टीफिकेट दिया जाता है जिसपर लिखा होता है कि उस रात वहां बाहर का और भीतर का तापमान क्या था।
खास बातें
# होटल का सर्दियों वाला हिस्सा दिसंबर के दूसरे हफ्ते में खुल चुका था और 15 अप्रैल तक खुला रहेगा।
# होटल में कमरे अलग-अलग तरह के हैं- आर्ट स्वीट, आइस रूम और स्नो रूम। आप कहां रुके, यह इस पर निर्भर करता है कि आप क्या अनुभव करना चाहते हैं।
# बाहर का तापमान जो भी हो, आइस होटल में तापमान हमेशा अमूमन शून्य से पांच डिग्री से नीचे नहीं जाने दिया जाता। इसके लिए सोलर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है।
# बर्फ की सिल्लियों के बिस्तर पर आपको गर्म रखने के लिए रेनडीयर की चमड़ी लगाई जाती है और सोने के लिए थर्मल स्लीपिंग बैग दिए जाते हैं। उसमें घुस जाइए, बर्फ केवल सुकून देगी, ठंडक नहीं। ये स्लीपिंग बैग -25 डिग्री सेल्शियस तक के कम तापमान को बरदाश्त कर सकते हैं।
# आप वहां कितने दिन रुकना चाहते हैं, यह आपकी हिम्मत पर निर्भर करता है, लेकिन कई लोग अपनी छुट्टी की एक रात आइस होटल में बिताकर बाकी रातें बगल के गर्म होटल में बिताना पसंद करते हैं, जिनकी दीवारें बर्फ की नहीं हैं।
# आइस होटल में रुकने के अलावा भी यहां कई तरह की गतिविधियां हैं, जो आपको दुनिया के अन्य किसी इलाके में नहीं मिलेंगी।
# यहां 5995 स्वीडिश क्रोना (लगभग 52 हजार रु) प्रति रात्रि में आइस रूम से लेकर 12,495 स्वीडिश क्रोना (लगभग 1 लाख आठ हजार रु.) प्रति रात्रि में डीलक्स स्वीट तक के कमरे उपलब्ध हैं। इनके लिए बुकिंग ऑनलाइन की जा सकती है।
# आप रात बिताने की हिम्मत न जुटा पाएं तो केवल दिन-दिन में भी इसका अनुभव कर सकते हैं, महज 349 स्वीडिश क्रोना (3,034 रुपये) प्रति वयस्क के शुल्क पर। इसमें आप होटल घूम सकते हैं, आर्ट गैलरी देख सकते हैं और बार का मा ले सकते हैं।
# आइस होटल किरुना हवाई अड्डे से महज 15 किमी और किरुना ट्रेन स्टेशन से 17 किमी दूर है। स्वीडन के अलावा यूरोप के कई शहरों से यहां के लिए उड़ान हैं।
बर्फीला ख्याल
आइस होटल का ख्याल आया तो नदी उसके केंद्र में थी। यहां गर्मियों में तो खूब हलचल रहती थी लेकिन सर्दियां लंबी व ठंडी रहती थीं। तब येंग्वे बर्गक्विस्ट के जेहन में एक ख्याल आया। जापान की बर्फ कलाकृति परंपरा से प्रेरित होकर उन्होंने वहां के दो प्रोफेशनल आइस शिल्पकारों की मदद ली और 1989 में जुकासजार्वी में एक वर्कशॉप में कलाकारों को आमंत्रित किया। टोर्न नदी के साथ इस सफर की शुरुआत वहीं से हुई।
वर्कशॉप से सीखने के बाद अगली सर्दियों में यहां बर्फ का पहला ढांचा बना- जमी हुई टोर्न नदी पर सांचे की तकनीक से डिजाइन किया हुआ इग्लू। पहले इसका ख्याल एक आर्ट गैलरी के तौर पर किया गया था और उसे आर्टिक हॉल का नाम दिया गया। अगली सर्दियों में यह आकर्षण का केंद्र रहा और वहां कला प्रदर्शनी के अलावा चर्च सर्विस व फिल्म शो भी हुए। बर्गक्विस्ट ने हॉल के अंदर एक बार भी खोला, और शून्य से कम तापमान में सोने की भी कोशिश की। इग्लू का आकार 60 वर्ग मीटर से बढ़ता-बढ़ता 250 वर्ग मीटर तक पहुंच गया। उसे बनाने की तकनीक को भी परिष्कृत करके उसका स्वीडन व नार्वे में पेटेंट करा दिया गया। एक रात मेहमानों के एक समूह ने पूछा कि क्या वे आर्टिक हॉल में रुक सकते हैं। उनके पास रेनडियर की खालें व स्लीपिंग बैग थे। अगली सुबह उनके रोमांच का कोई ठिकाना न था। लिहाजा उससे पहले जहां आर्टिक हॉल को होटल बनाने का कोई इरादा न था, लेकिन उसके बाद आइस होटल का ख्याल पैदा हो गया।
कुदरत का यह इलाका बेहद अनूठा है। इसमें तकरीबन 6000 छोटी-बड़ी झीलें और छह बड़ी नदियां हैं। इन्हीं में से एक टोर्न नदी भी है। अब आइस होटल में इस्तेमाल में आने वाली बर्फ के बारे में अंदाजा इस बात से लगा लीजिए कि टोर्न नदी के महज 10 सेकेंट के प्रवाह से 4000 टन आइस बन जाती है जो से चार आइस होटल बनाने के लिए पर्याप्त है।
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