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प्राग के चर्च में छिपी बलिदान की दास्तान

चेक राजधानी प्राग में सुंदर इमारतों की कमी नहीं है। यहां के गिरजाघरों की वास्तु कला बेजोड़ है। यहां एक गिरजाघर ऐसा है जिसका तहखाना ही उसकी सबसे बड़ी खासियत है। कार्लोवो नमेस्ति शहर का सबसे बड़ा स्क्वायर है जहां से थोड़ी सी दूरी पर रेसोलोवा स्ट्रीट पर कैथेड्रल चर्च ऑफ सेंट साइरिल और मेथोडियस की भव्य इमारत है। स्थानीय लोग इस चर्च को पैराशूटिश्ट चर्च भी कहते हैं। यह गिरजाघर बेरोक स्थापत्य कला का खूबसूरत नमूना है लेकिन अधिकांश लोग यहां इसके तहखाने को देखने के लिए आते हैं जिस पर गोलियों के निशान है। 

इन गोलियों के निशान के पीछे चेक इतिहास का एक गौरवपूर्ण अध्याय छिपा हुआ है। 75 वर्ष पहले, 18 जून 1942 को इसी तहखाने में सात चेक और स्लोवाक वायुसैनिकों ने बर्बर नाजी हुकूमत के खिलाफ अपनी अंतिम लड़ाई लड़ी थी। ये वायुसैनिक ऑपरेशन एन्थ्रोपोइड में शामिल थे जो बोहेमिया और मोराविया के कार्यवाहक रॉयश प्रोटेक्टर (गवर्नर) राइनहार्ड हेड्रिख़ की हत्या के उद्देश्य से संचालित किया गया था।

कैथेड्रल चर्च ऑफ सेंट साइरिल और मेथोडियस के भीतर का नजारा। 

हेड्रिख़ की हत्या अधिकृत यूरोप में युद्धकालीन प्रतिरोध की एक बहुत बड़ी बहादुराना कार्रवाई थी। आज चर्च का तहखाना हेड्रिख का आतंक खत्म करने वाले बहादुर चेक नौजवानों के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में जाना जाता है। उनकी अद्भुत वीरगाथा को याद करने के लिए हर साल करीब 60000 लोग इस चर्च में आते हैं। नाजी सैनिकों ने उस दिन तड़के चर्च पर धावा बोलने की कोशिश की थी। नाजी हमले के बाद तहखाने के ऊपर मुख्य चर्च में गोलीबारी शुरू हो गई। करेल कुर्दा नाम के एक चेक पैराट्रूपर की गद्दारी की वजह से नाजी सैनिक चर्च तक पहुंच गए थे। उसने गेस्टापो के साथ साठगांठ कर रखी थी। उसने एक नई पहचान और दस लाख रॉयस मार्क के बदले नाजियों को चेक व स्लोवाक वायु सैनिको के चर्च में छिपे होने की खबर कर दी थी। 

चर्च की मुख्य इमारत में हुई प्रारंभिक गोलीबारी से बच निकलने वाले पैराट्रूपरों ने तहखाने में पोजीशन ले कर हमलावर नाजियों का जबरदस्त प्रतिरोध किया। करीब 700 गेस्टापो सैनिकों द्वारा चर्च को घेरे जाने के बावजूद उन्होंने कई घंटे तक जम कर लड़ाई लड़ी। नाजियों ने हताश हो कर आग बुझाने वाले पाइपों से तहखाने में पानी की बौछारें डाल कर उसे जलमग्न कर दिया। गोलाबारूद खत्म होने और पानी का स्तर बढऩे के बाद चेक सैनिकों ने दुश्मन द्वारा पकड़े जाने से पहले खुद अपनी जान ले ली। कुछ ने खुद को गोली मारी और कुछ ने साइनाइड खा लिया।

तहखाने में रखी गईं इन सैनिकों की कांस्य प्रतिमाएं उनके अदम्य शौर्य और बलिदान की कहानी कहती हैं। तहखाने  में बने संग्राहलय के क्यूरेटर पेटर हेम्पल के अनुसार चेक इतिहास का यह  गौरवपूर्ण अध्याय देश के लिए विशेष सांकेतिक महत्व रखता है क्योंकि 1938  में हुए म्युनिख समझौते के कारण चेक लोगों को नाजियों से सीधे लडऩे का मौका नहीं मिला था। इस समझौते के तहत हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया के एक बहुत बड़ा हिस्सा हड़प लिया था। यह घटना दर्शाती है कि हमने नाजी आधिपत्य का कड़ा प्रतिरोध किया था। नाजी हुकूमत ने राइनहार्ड हेड्रिख को चेक टेरिटरी का गवर्नर बना कर सितंबर 1941 में प्राग भेजा था। उसने आते ही चेक लोगों का बर्बरतापूर्वक दमन शुरू कर दिया। वह इतना खूंखार और क्रूर था कि लोग उसे हैंगमैन (जल्लाद) कहने लगे थे।

चर्च के भीतर गलियारे में लगी गेबचिक व कुबिस की प्रतिमाएं। 

हेड्रिख की बर्बरता का बदला लेने के लिए ब्रिटेन में चेकोस्लोवाकिया की निर्वासित सरकार ने उसकी हत्या की योजना बनाई और इस मिशन को अंजाम देने के लिए जोसेफ गेबचिक और जान कुबिस को चुना। ये दोनों चेकोस्लोवाकिया की निर्वासित सेना में शामिल होने के लिए ब्रिटेन भाग गए थे। एक विशेष दस्ते से प्रशिक्षण लेने के बाद इन दोनों सैनिकों को रॉयल एयरफ़ोर्स ने 29 दिसंबर 1941 को पैराशूट के सहारे चेकोस्लोवाकिया में उतार दिया। मिशन को अंजाम देने के लिए इन दोनों को जमीनी मदद चाहिए थी। पांच चेक पैराट्रूपर उनकी मदद के लिए आगे आए।  

27 मई 1942 को गेबचिक और कुबिस ने प्राग में हेड्रिख की खुली मर्सीडीज कार को एम्बुश कर दिया लेकिन गेबचिक जैसे ही उसकी कार के सामने पहुंचा तो उसकी स्टेन सब-मशीन गन जाम हो गई। हेड्रिख ने ड्राइवर से कार रोकने को कहा। सीट से खड़े होकर उसने जवाबी गोली चलाई। इतने में कुबिस ने मौका देख कर उसकी कार पर टैंक-भेदी हथगोला फेंक दिया। विस्फोट के दौरान निकले एक छर्रे से हेड्रिख़ घायल हो गया। गेबचिक और कुबिस अपने एक अन्य सहयोगी के साथ घटनास्थल से भाग निकले। उन्होंने अंतत: कैथेड्रल चर्च में शरण ली जहां वे तीन हफ्ते तक छिपे रहे। विस्फोट के आठ दिन बाद सेप्टीसीमिया से हैड्रिख की मौत हो गई।  

चर्च में एक और स्मारक व उसके नीचे दीवार पर गोलियों के निशान।  

प्राग यानी पेरिस ऑफ द ईस्ट

प्राग में चेक संस्कृति के मूल घटकों के अलावा बोहेमियन, जर्मन और प्राचीन यहूदी शैलियों का अनूठा संगम है। सात पहाडिय़ों की पृष्ठभूमि में वाल्तवा नदी के तट पर स्थित इस क्षेत्र के प्राकृतिक वैभव को देखकर लगभग हजार बरस पहले एक राजकुमारी के मुख से एकबारगी निकल पड़ा था ‘किसी दिन जरूर इस नगर का वैभव सितारों को छू लेगा और उसी दिन से इसे प्राहा पुकारा जाएगा।’

प्राहा- यानि अनगिनत रोशनियों का प्रवेश द्वार। सचमुच प्राग वैभवशाली विराट महलों, किलों, कलायुक्त भव्य गिरिजों, चक्करदार पथरीली गलियों, मध्ययुगीन शिल्प वाली अट्टालिकाओं और कांस्य प्रतिमाओं से सजे चौक-चौराहों का शहर है जो अपने बीते स्वर्णिम कालखंड को मुट्ठियों में भीचें इत्मीनान से खड़ा है। समन्वित, संयोजित, समानुपातिक बसावटों के कारण प्राग की आधुनिकता भी लाजवाब है। तेज रफ्तार लग्जरी कारों का यह देश स्कोडा गाड़ियों का निर्माता हैं।

प्राग का एक खूबसूरत नजारा

प्राग की ओर उमडऩे वाले पर्यटक इसे ‘द मैजिकल सिटी’ (जादुई नगरी), ‘द गोल्डन सिटी’ (स्वर्णपुरी), ‘द सिटी ऑफ हण्ड्रेड टॉवर्स’ (सौ गुंबदों का शहर) और ‘द पेरिस ऑफ ईस्ट’ (पूर्वी यूरोप का पेरिस) की संज्ञा देते हैं। यूरोप के शक्तिशाली सम्राट चार्ल्स चतुर्थ ने चौदहवीं सदी में प्राग को अपनी राजधानी बनाकर संपन्नता के शिखर पर पहुंचा दिया था। कुल 12 लाख की आबादी वाले इस शहर की धुरी है वाल्तवा नदी। यह केंद्रीय प्राग में बहती हुई पुराने शहर ‘स्टारेमेस्तो’ को नए शहर ‘नोवेमेस्तो’ से अलग करती है। दाहिने तट पर स्थित पुराने शहर का चौक स्तारोमेस्तेस्के पर्यटकों से हमेशा खचाखच भरा रहता है। हो भी क्यों नहीं, क्योंकि यहीं बार्क और गोथिक शिल्प की नायाब प्रस्तुतियों के रूप में पुरातन इमारतें और गिरजाघर हैं खरीदारों के लिए तो इस चौक पर स्थानीय कलात्मक उत्पादों और सोवेनियर्स का अच्छा खासा जखीरा है। 

इसी चौक से पेरिस स्ट्रीट पर चलते हुए उत्तर में पुरानी बस्ती जोसेफोव पहुंचा जा सकता है। मध्ययुग के यहूदियों की जीवन शैली के विशुद्ध स्वरूप का दर्शन करवाती यह बस्ती कभी संपन्न यहूदी व्यापारियों का आवास हुआ करती थी। कला की बेमिसाल बानगी पेश करने वाले सिनेगॉग और सदियों पुराना यहूदी कब्रिस्तान हाब्र्रिटोन एक संपन्न समाज को प्रतिबिंबित करता है। इसके विपरीत दिशा में है नोवेमेस्तो यानि नया शहर जिसका विशाल टाउन हॉल और भव्य भवनों से घिरा चौक वेंसाल्स नए शहर की धड़कन है। 

नामी-गिरामी होटलों- रेस्तरां वाले इस चौक में सेंट वेंसाल्स की कांस्य प्रतिमा मौजूद है। पांच क्रांतियों का साक्षी रहा यह चौक गवाह है हिटलर की फौजों की कदमताल का, सोवियत टैंकों की दहशत का और 1989 की मखमली क्रांति का। इस चौक के सामने स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में चेक गणराज्य के इतिहास को समेटा गया है।

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