बगैर किसी हिफ़ाज़त के मोटरबाइक या दोपहिया वाहन की सवारी हमेशा बाकी किसी भी वाहन की तुलना में ज्यादा खतरनाक मानी जाती है। सड़क हादसों में कार सवारों की तुलना में दोपहिया सवारों की जान जाने की आशंका दसियों गुना ज्यादा रहती है। लिहाजा इस बात की कोशिश हमेशा से की जाती रही है कि कैसे मोटरबाइक की सवारी को ज्यादा सुरक्षित बनाया जाए। खास तौर पर अब, जबकि बाइकिंग का और दोपहिया वाहनों पर लंबी दूरी की सैर का शौक युवाओं में बढ़ता जा रहा है, कई नए काम लोगों को ज्यादा सुरक्षा देने की दिशा में हो रहे हैं।
अब तक हम कारों और चौपहिया वाहनों में एयरबैग की बात करते थे जो किसी दुर्घटना की स्थिति में सवारियों को प्राणघातक चोट से बचा सकते हैं। लेकिन अगर हम आपको बताएं कि ऐसे ही एयरबैग मोटरबाइक सवारों के लिए भी हैं तो! यकीन नहीं होता न!
तो, हममें से शायद ज्यादातर लोगों को पता नहीं होगा कि शरीर के ऊपरी हिस्से को बचाने के लिए इस तरह की एयरबैग तकनीक करीब बीस सालों से मौजूद है। इस तरह की एयरबैग वाली वेस्ट जैकेट के नीचे फिट की जा सकती है और वह छाती, गले और कभी-कभी पीठ को भी बचाती है। लेकिन अब पहली बार शरीर के निचले हिस्से को बचाने के लिए एक तरीका ईजाद किया गया है, और वह है एयरबैग जींस।
मोजेज शाहरिवर ने अपनी पहली मोटरसाइकिल जींस हारले-डेविडसन स्वीडन के साथ तालमेल में 16 साल पहले डिजाइन की थी। इस जींस में सुरक्षा के लिए एक लेदर (चमड़े की) लाइनिंग थी। अब वह इस आइडिया को एक कदम आगे लेकर गए हैं। उनकी कंपनी ‘एयरबैग इनसाइड स्वीडन एबी’ ने एक अत्यधिक मजबूत यानी सुपर-स्ट्रांग जींस का प्रोटोटाइप तैयार किया है जिसमें पांवों के भीतर एयरबैग फिट हैं।
मोटरबाइक सवार जींस को पहन कर उसे बाइक से जोड़ लेता है और अगर किसी हादसे में वह बाइक से गिरता है तो तुरंत एयरबैग सक्रिय हो जाता है और उसमें कंप्रेस्ड एयर भर जाती है जिससे शरीर के निचले भाग पर कम चोट लगती है। बाद में एयरबैग को डिफ्लेट करके उसमें फिर से गैस भरी जा सकती है और उसे दुबारा इस्तेमाल के लिए फिर से जींस में फिट किया जा सकता है।
अब ‘एयरबैग इनसाइड स्वीडन एबी’ की यह कोशिश है कि जींस के लिए यूरोपीय स्वास्थ्य व सुरक्षा मानकों के अनुरूप सर्टीफिकेशन हासिल कर लिया जाए। वह कई तरह के क्रैश टेस्ट भी इसे परखने के लिए कर रही है। कंपनी ने इस आइडिया पर आगे काम करने के लिए यूरोपीय यूनियन से डेढ़ लाख यूरो यानी करीब 1.80 लाख डॉलर का फंड जुटाया है। अब उसे उम्मीद है कि वह 2022 तक इस जींस को बाजार में लेकर आ जाएगी। बता दें कि फ्रांसीसी कंपनी सीएक्स एयर डायनेमिक्स ने भी इसी तरह के इडिया पर काम करने के लिए क्राउडफंडिंग अभियान शुरू किया है।
कंपनी का कहना यह भी है कि एयरबैग जींस में इस्तेमाल डेनिम स्टील से भी ज्यादा मजबूत है क्योंकि उसमें यूएचएमडब्लूपीई (UHMWPE) फाइबर का इस्तेमाल किया गया है। इस फाइबर का आविष्कार सबसे पहले अंतरिक्ष में इस्तेमाल के लिए किया गया था। अब यह डेनिम में इस्तेमाल के लिए उपलब्ध है। इस तरह का यब सबसे मजबूत उपलब्ध फाइबर है। यह स्टील से 14 गुणा मजबूत और 8 गुणा हल्का होता है।
एयरबैग वेस्ट के शुरुआती डिजाइन में उसे भी शाहरिवर की जींस की ही तरह बाइक से जोड़ लिया जाता था। लेकिन हाल ही में, उस तकनीक में भी काफी सुधार हुआ है और अब इस तरह के बगैर बाइक से जोड़े इस्तेमाल किए जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक एयरबैग वेस्ट विकसित कर लिए गए हैं। इनमें हाइ-टेक सेंसर का इस्तेमाल किया गया है जो इस बात का पता लगा लेते हैं कि बाइक-सवार कब गिरने वाला है।
बाजार में उपलब्ध इन नए तरीके के एयरबैग वेस्ट में इस्तेमाल में आने वाली प्रणाली एक फ्रांसीसी कंपनी इनएंडमोशन ने ईजाद की है। कंपनी ने प्रोफेशनल स्कीइंग करने वालों के लिए इस तरह के पहने जा सकने वाले एयरबैग डिजाइन करने का काम 2011 में शुरू किया था। अब उसने इसी तकनीक को मोटरबाइकर्स के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया है। उसने एयरबैग को सक्रिय करने के लए उसे बाइक से जोड़ने की जगह उसमें एक ‘दिमाग’ तैयार किया है जो जीपीएस, गाइरोस्कोप व एक्सीलेरोमीटर से मिलकर बना है। यह दिमाग एक स्मार्टफोन से थोड़ा बड़ा है और इस बॉक्स को खास तौर पर डिजाइन की गई वेस्ट में पीठ की तरफ फिट कर दिया जाता है।
इसके सेंसर रीयल-टाइम में वाहन व चालक की हरकत को मापते रहते हैं और उसका अलोगरिदम सवार के गिरने या किसी एक्सीडेंट का अंदाजा लगाने में सक्षम रहता है और वह क्रैश से ठीक पहले एयरबैग को इनफ्लेट कर देता है।
इनएंडमोशन में कम्युनिकेशन मैनेजर एनी-लॉयर होगेली ने बताया कि यह बॉक्स बाइक सवार की पोजीशन को हर सेकेंड में एक हजार बार जांचता है और जैसे ही उसे किसी ‘ना संभाले जा सकने वाले असंतुलन’ का पता चलता है, वह तुरंत एयरबैग को सक्रिय कर देता है और उसे तुरंत फुला देता है ताकि सवार के सीने, पेट, गर्दन व रीढ़ को हिफाजत दे सके। मोटरबाइकर्स को सबसे ज्यादा प्राणघातक चोटें इन्हीं जगहों पर लगती हैं। इस तकनीक की कुशलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस सारी प्रक्रिया में महज 60 मिलीसेकेंड लगते हैं।
इनएंडमोशन ने हाल ही में एक करोड़ यूरो की राशि जुटाई है ताकि वह अपने काम का विस्तार यूरोप के बाहर भी कर सके। हालांकि बाजार में उपलब्ध तमाम तरह के इलेक्ट्रॉनिक एयरबैग में इसी तरह की तकनीक इस्तेमाल की जाती है लेकिन इस विषय के जानकारों का कहना है कि इनएंडमोशन इसकी उपलब्धता कई तरह से कराती है ताकि आम लोग भी इन एयरबैग का इस्तेमाल कर सकें। बाइकर्स या तो इसे सीधे 400 डॉलर (करीब 29 हजार रुपये) की कीमत पर खरीद सकते हैं, या फिर से इसे 120 डॉलर (8,759 रुपये) सालाना के किराये पर भी ले सकते हैं। कंपनी ने फ्रांस में अपने ग्राहकों को तो यह सुविधा भी उपलब्ध करा रखी है कि वे किसी क्रैश की स्थिति में एमरजेंसी सेवाओं को तुरंत बुला सकें। जाहिर है कि अब जबकि भारत में भी डेढ़-दो लाख रुपये से लेकर 15-20 लाख रुपये तक की कीमत वाली मोटरसाइकलों का बाजार लगातार बढ़ रहा है, तो जान बचाने वाली इस तकनीक की कीमत को कतई ज्यादा नहीं माना जा सकता।
बाइकर्स की जान बचाने में इस तकनीक की अहमियत इतनी बढ़ गई है कि मोटोजीपी और डकार रैली में तो बाइकर्स के लिए एयरबैग सुरक्षा को अब अनिवार्य कर दिया गया है। हालांकि दुनिया में कहीं भी सड़कों पर चलने वाले आम बाइकर्स के लिए फिलहाल इसकी वैधानिक अनिवार्यता नहीं है, लेकिन यकीनन यह एक महत्वपूर्ण पहल तो है।
फिलहाल ज्यादातर देशों में मोटरबाइक सवारों के लिए एयरबैग के फायदे को लेकर कोई ज्यादा अध्ययन नहीं किए गए हैं। हालांकि फ्रांस में इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी फोर ट्रांसपोर्ट, डेवलपमेंट एंड नेटवर्क्स ने पाया था कि करीब 30 से 40 किलोमीटर प्रति घंटे से कम रफ्तार पर होने वाले क्रैश में एयरबैग वेस्ट से काफी सुरक्षा मिलती है।
कुछ समय पहले अमेरिकी परिवहन विभाग में नेशनल हाइवे ट्रैफिक सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन स्टडी ने कहा था कि मोटरसाइकिल हादसों में शरीर के ऊपरी हिस्से की तुलना में निचले हिस्सों पर ज्यादा चोट आती है। निचले हिस्से पर आने वाली चोटें प्राणघातक तो नहीं होतीं लेकिन ज्यादा स्थायी होती हैं क्योंकि सवार बच जाता है। इससे ऊपरी हिस्से पर लगने वाली चोटों की तुलना में निचले हिस्से पर लगने वाली चोटों की समाज के लिए लागत ज्यादा बड़ी हो जाती है। ऐसे में एयरबैग जींस जैसी तकनीक की अहमियत और बढ़ जाती है।
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