Tuesday, May 14
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दक्षिण अफ्रीकाशानदार सफर

शानो-शौक़त से अफ्रीकी नजारे

कोविड-19 के असर के कारण रोवोस रेल का परिचालन फिलहाल 5 जनवरी 2021 तक बंद है। अभी की स्थिति के अनुसार 6 जनवरी 2021 से यात्राएं फिर शुरू हो जाएंगी। तब तक कीजिए इस रेल की एक वर्चुअल सैर

बीती सदी के अस्सी के दशक के आखिरी सालों में एक दक्षिण अफ्रीकी रेल उत्साही रोहन वोस ने पुराने भाप के इंजनों और डिब्बों को खरीदना और उन्हें सहेजना शुरू किया। जमा-पूंजी बढ़ी तो आज वह रोवोस रेल नाम की लग्जरी ट्रेन कंपनी के मालिक हैं। रोवोस रेल के पास अफ्रीका का सबसे विशाल टूरिस्ट रेल नेटवर्क है। और, यह दुनिया की सबसे आलीशान ट्रेनों में मानी जाती है।

पुराने डिब्बों में अब राजसी रौनक है। एडवर्ड काल की आंतरिक सज्जा, 1920 के दौर जैसी ऑब्जर्वेशन कार, लकड़ी के स्तंभों से सजी डाइनिंग कारें, तीन तरह के सोने के कूपे, हर कूपे में मिनी बार और चौबीस घंटे के लिए खिदमतगार- ये सारी बातें एक बेहद आलीशान सफर की दास्तान लिखती हैं। आलीशान केवल पांच सितारा सुविधाओं के चलते नहीं बल्कि इसलिए भी कि ये ट्रेन अफ्रीका के कई इलाकों के बेहद दिलकश, रोमांचक और दुर्लभ प्राकृतिक नजारे दिखलाती है। इसीलिए इसका नाम भी प्राइड ऑफ अफ्रीका रखा गया है।

रोवोस रेल की शुरुआत 1989 में हुई थी। उसके बाद से उसने लग्जरी ट्रेन यात्राओं के क्षेत्र में नित नए मापदंड स्थापित किए हैं। प्रीटोरिया का कैपिटल पार्क स्टेशन और लोकोमोटिव यार्ड इस निजी रेल कंपनी की सारी गतिविधियों का संचालन केंद्र है। ट्रेन के सफर भी कई हैं। हर ट्रेन में 36 आलीशान कम्पार्टमेंटों में अधिकतम 72 सैलानी सफर कर सकते हैं। इस ट्रेन में अब 48 घंटे से लेकर 15 दिन तक की यात्राएं उपलब्ध हैं। जरूरत पड़ने पर इस ट्रेन में 250 यात्रियों तक को ले जाया जा सकता है और आप चाहें तो केवल दिनभर के लिए भी इस ट्रेन को चार्टर कर सकते हैं।

भूली-बिसरी दास्तां

कंपनी के पास बीस डिब्बों और 72 शायिकाओं वाली ट्रेनें हैं। ट्रेनें अलग-अलग सफर पर रहती हैं। वहीं 13 डिब्बों और 42 शायिकाओं वाली तीसरी ट्रेन पूरे सालभर चार्टर के लिए उपलब्ध रहती है। हर इंजन और डिब्बे की अपनी अलग कहानी है। इनमें से कुछ 1911 के यूरोप में बने हैं जहां से उन्हें धरती के दूसरे सिरे पर अफ्रीका में ले जाया गया। कुछ डिब्बे राजसी शान के प्रतीक रहे तो कुछ खास गाड़ियों में रेस्तराओं के तौर पर इस्तेमाल में आते रहे। कुछ अभागे ऐसे भी रहे जो तमाम चकाचौंध से दूर यार्ड में धूल फांकते रहे। जैसे कि डाइनिंग कार शंगानी 1924 की बनी है और यह जोहानेसबर्ग के निकट एल्बर्टन में कहीं धूल फांकती पाई गई। इसे 1986 में रोवोस रेल ने अपने कब्जे में लिया। लेकिन अब ये सारे एक नई राजसी शान का हिस्सा हैं।

बड़ी मेहनत से इन सारे डिब्बों को फिर से पुरानी शान दी गई। लकड़ी का वही काम जो उन्हें आज के दौर से अलग करता है। हर ट्रेन में 42-42 सीटों वाली दो डाइनिंग कार हैं और 32 सीटों वाली एक नो स्मोकिंग ऑब्जर्वेशन कार। ट्रेन के बीच में एक 26 सीटों वाली लाउंज कार है, जहां गिफ्ट शॉप भी है। एक क्लब कार भी है जिसमें स्मोकिंग की चाह रखने वालों के लिए गुंजाइश है। लेकिन पुराने जमाने का ही अहसास दिलाने वाली एक बात और है कि पूरी ट्रेन में कोई रेडियो या टीवी सेट नहीं है।

ट्रेन में भीतर जाने पर आपको उसका वातानुकूलित कम्पार्टमेंट होटल के किसी कमरे जैसा लगेगा। हर स्यूट में आपकी पसंद के अनुरूप दो अलग-अलग बिस्तर भी हो सकते हैं और एक डबल बेड भी। हर स्यूट में लिखने-पढ़ने की सुविधा है, मिनी बार और साथ ही अत्याधुनिक फिटिंग लेकिन पारंपरिक शैली वाला बाथरूम भी। स्यूट तीन तरह के हैं। एक रॉयल स्यूट लगभग आधे डिब्बे के बराबर होता है। उसका अपना लाउंज और विशालकाय विक्टोरिया शैली का बाथरूम होता है। डीलक्स और पुलमैन स्यूट में बाथरूम तो एक जैसे ही होते हैं लेकिन डीलक्स स्यूट में लाउंज एरिया अलग होता है। पुलमैन स्यूट में बिस्तर बंक की तरह ऊपर-नीचे भी हो सकते हैं और दंपतियों के लिए डबल बेड के तौर पर भी। दिन में ये बिस्तर बैठने के सोफे में तब्दील हो जाते हैं।

खान-पान के मामले में हर तरह की विविधता मिलेगी और स्थानीय पकवानों का खास स्वाद। चूंकि इस ट्रेन की कुछ यात्राएं खासी लंबी हैं, इसलिए खाने-पीने के मामले में भी अलग-अलग मांसाहारी व शाकाहारी व्यंजनों के स्वाद चखने को मिल जाते हैं। सवेरे के नाश्ते, दोपहर के खाने और रात के खाने में माहौल भी अलग-अलग हो जाते हैं।

यादगार सफर

रोवोस रेल 48 घंटे से लेकर 15 दिन तक के नौ अलग-अलग सफर कराती है। केपटाउन से प्रीटोरिया का 1600 किलोमीटर का सफर दो रातों और तीन दिन का है। इसका एक अन्य मुख्य सफर प्रीटोरिया से जिंबाब्वे के विक्टोरिया फॉल्स तक पांच दिन व चार रातों का है। केपटाउन से प्रीटोरिया जाने के रास्ते में पहले दिन मैजिसफोंटेन के ऐतिहासिक गांव को देखते हैं। दूसरे दिन किम्बरले में बिग होल व डायमंड म्यूजियम घूमते हैं और तीसरे दिन प्रीटोरिया के कैपिटल पार्क स्टेशन पहुंचते हैं। वहीं केपटाउन से विश्व प्रसिद्ध विक्टोरिया फॉल्स के रास्ते पर पहले तीन दिन तो प्रीटोरिया तक वही रास्ता है। उसके बाद ट्रेन माफिकेंग और जिंबाब्वे में बुलावायो होते हुए जिंबाब्वे-जांबिया की सीमा पर स्थित विक्टोरिया फॉल्स पहुंचती है।

इसके अलावा प्रीटोरिया से डरबन के रास्ते पर तीन दिन की डरबन सफारी है। वहीं प्रीटोरिया से दक्षिण अफ्रीका के उत्तर-पूर्वी इलाकों के लिए 2100 किलोमीटर की नौ दिन की एक गोल्फ सफारी है। इसी तरह प्रीटोरिया से केपटाउन के लिए 3100 किलोमीटर का 11 दिन का एक अफ्रीकन कोलाज है, तो प्रीटोरिया से नामीबिया के लिए 9 रात 10 दिन की 3400 किलोमीटर की यात्रा है। और अगर, इनसे मन न भरता हो तो पांच देशों (दक्षिण अफ्रीका, बोत्सवाना, जिंब्बाब्वे, जांबिया व तंजानिया) से होकर गुजरने वाली केपटाउन से दार-ए-सलाम की 5800 किलोमीटर की 15 दिन लंबी यात्रा भी है। (यह हमारे कश्मीर से कन्याकुमारी की दूरी से भी डेढ़ गुना से ज्यादा लंबी यात्रा है।)

रोवोस रेल की 15 दिन की एक यात्रा और है जो दूरी में थोड़ी कम 4300 किलोमीटर है और चार देशों तंजानिया, जांबिया, कोंगो व अंगोला की सैर कराती है। टेल ऑफ टू ओशंस नाम की यह यात्रा तंजानिया में हिंद महासागर के छोर से शुरू होकर अंगोला में अटलांटिक महासागर के छोर तक जाती है, जिसकी वजह से इसे यह नाम दिया गया है। यह यात्रा जुलाई 2019 में शुरू की गई थी। शायद लंबी यात्राओं को लेकर लोगों में उत्साह ज्यादा है इसीलिए जुलाई 2022 से रोवोस रेल कॉपर ट्रेल नाम से 15 दिन की 3100 किलोमीटर की एक और यात्रा शुरू कर रही है जो विक्टोरिया फॉल्स से शुरू होकर लोबितो तक जाएगी और चार देशों जिंबाब्वे, जांबिया कोंगो व अंगोला से गुजरेगी।

इनके अलावा पांच रातों से लेकर 11 रातों तक के कई विशेष कलेक्शन टूर भी रोवोस रेल के चलते हैं। इन नियमित यात्राओं के लिए भी हर महीने तारीखें तय हैं। अब इस साल तो कोई यात्रा संभव नहीं है, लेकिन अगले साल आप कोई यात्रा रोवोस रेल में करना चाहें तो जेब व संभावना तलाश लीजिए।

खर्च भी राजसी

दरें महंगी लगती हैं लेकिन यह ध्यान में रखना होगा कि यह लग्जरी ट्रेन है। केपटाउन से प्रीटोरिया तक सबसे सस्ते पुलमैन स्यूट में एक व्यक्ति का, एक तरफ के सफर का किराया 24,250 अफ्रीकी रैंड यानि लगभग एक लाख सात हजार रुपये है। वहीं डीलक्स स्यूट के लिए यह 36,500 रैंड (लगभग 1.62 लाख रुपये) और रॉयल स्यूट के लिए 48,900 रैंड (यानी 2.17 लाख रुपये) है। अब बाकी यात्राएं कितने-दिन व कितनी रातों की हैं, उसी के हिसाब से उनके किरायों का अंदाजा लगा लीजिए। उदाहरण के तौर पर केपटाउन से दार-ए-सलाम की यात्रा के लिए रॉयल स्यूट में किराया 22,900 डॉलर यानी 16.8 लाख रुपये है। अब कोई युगल साथ में सफर कर रहा हो तो जोड़ लीजिए कि दोनों को मिलाकर 33 लाख रुपये से ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे। इन रास्तों पर वापसी का सफर भी उसी ट्रेन से करना हो तो समय व किराये दोगुना कर लीजिए।

है न वाकई राजसी यात्रा!

(सभी फोटो रोवोस रेल के सौजन्य से.)

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