Thursday, December 26
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सुकून भरा कोपेनहेगन

प्राचीन इमारतें और बेहतरीन रखरखाव हैं खास

कोपेनहेगन यात्रा हमारे सामने एक ऐसी दुनिया की खिड़की को खोलती है जहाँ सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और उत्साह है। बहुत साल पहले जब हम डेनमार्क के बारे में पढ़ते थे कि—“वहां दूध की नदियाँ बहतीं हैं”—तो  गहरा आश्चर्य मन में जागता था कि कैसा होगा ऐसा देश? और अब उसी देश में कुछ सप्ताह के लिए आकर रहना बेहद सूकून भरा अनुभव है।  

जब हमारा प्लेन कोपेनहेगन के  आसमान पर मंडरा रहा था तो नीचे समुद्र में चारों ओर अपनी हरियाली पटी बाँहों को फैलाये हुए डेनमार्क अपने तटों के संग पसरा हुआ दिखाई पड़ रहा था। विस्तृत समुद्रीय तटों वाले शहर के एअरपोर्ट पर हमारा विमान इस बार दुपहरिया  में उतरता है। जुलाई के पहले सप्ताह में यहाँ का मौसम अपने हिसाब से गर्म है यानि साल के कई-कई महीनों तक ग्रे-स्काई और बर्फ से पटी रहने वाली जगहों वाले इस देश में उन दिनों धूप खिली हुई थी। एअरपोर्ट से बाहर निकलने पर चटक धूप ने हमारा स्वागत किया। जुलाई में यहां भारत के दिसंबर के महीने वाली ठंडक है, लेकिन धूप के कारण लगता है कि शहर का कोना-कोना रोशन है!

कोपेनहेगन के उत्तर में स्थित है यह खूबसूरत फ्रेडरिक्सबोर्ग कैसल जिसे राजा क्रिश्चियन IV ने 17वीं सदी के पहले दशक में बनवाया था। यहां 1878 से म्यूजियम ऑफ नेशनल हिस्ट्री चल रहा है जिसकी शुरआत कार्ल्सबर्ग के संस्थापक जे.सी. जैकबसन ने की थी। इस कैसल का बगीचा भी बेहद खूबसूत है फोटोः डेनियल रासमुसेन

एअरपोर्ट से अंदर ही अंदर मेट्रो जुडी हुई है जो सीधी नार्रेपोर्ट जाएगी, शहर का सबसे बड़ा यातायात का हब! बीच में क्रिश्चनहावन या फोरम पर उतारकर सोबोर्ग एरिया के लिए बस पकड़ी जा सकती है, जो हमारा गंतव्य है। लेकिन पाखी (हमारी छोटी बेटी) सुविधा के ख्याल से हमारे लिए टैक्सी मंगवा लेती है। इस बार बेटी–दामाद का घर शहर के बीचोंबीच नहीं है। यानि कि आमरगर में नहीं है, बल्कि थोड़ी दूर है सोबोर्ग में, जहाँ घर के साथ लगे बगीचे में सेब और अंजीर के पेड़ हैं और छोटे से सुन्दर बगीचे में तरह-तरह की बेरी लगी हैं।

मुझे शहर के मध्य में स्थित उस खुली जगह की याद आती है, जहाँ पहली यात्रा के दोरान हम कई बार गए थे। वहाँ से वाकिंग स्ट्रीट की शुरुआत होती है और हरे रंग के स्टेच्यू हैं। उसके नीचे हम लोग जा खड़े हुए थे, उस खुली जगह में सिटी हाल के सामने कोपेनहेगेन के ज्यादातर कन्सर्ट और सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते ही रहते हैं। मिलने-जुलने के लिए प्रसिद्ध वह जगह हमेशा जाग्रत रहा करती है। इस देश  की करेंसी क्रोनर है जो काफी महंगी है। खर्च करते हुए एक भारतीय मन बार-बार ठिठक जाता है – तीन सो रुपए की एक कॉफी? साढ़े पांच हजार का मंथली बस-ट्रेन-मोविया (स्टीमर) टिकट?  

कोपेनहेगेन का इतिहास खासा दिलचस्प है। इस शहर ने स्वयं को ग्यारहवीं शताब्दी के करीब इतिहास के पन्नों पर दर्ज करना शुरू किया। अनेक लोक-कथाओं और किवदंतियो की गूँज अब भी यहाँ की हवा में है,  समय पर अपनी छाप छोड़ते हुए बारहवीं शताब्दी के करीब बिशप ऐबसलोन का नाम आता है, जिन्हें इस शहर के सन्दर्भ में भुलाया नहीं जा सकता। कहा जाता है कि इस शहर (कोपेनहेगेन) की परिकल्पना, 1254  के आस-पास जैकॉब इन्देंसो के समय मिली। तेरहवीं शताब्दी में इसके चारों तरफ पत्थर की दीवार खड़ी की गई। राजा के आदेशानुसार 1596 के आस-पास जर्मन और डच आर्किटेक्ट्स ने शहर में इमारतों को खड़ा करना शुरू किया।

यहाँ की कई इमारतें बहुत प्राचीन हैं, लेकिन उनका रखरखाव अद्भुत है जो यहाँ के निवासियों, प्रशासकों की भावनाओं को प्रचारित करता दिखाई पड़ता है। सत्रहवीं शताब्दी में बनी इमारतों में से कई अब भी शहर में शान से खड़ीं हैं—राजपरिवार का अष्टकोणिक आँगन वाला महल भी—जिनपर डेनिश लोगों को गर्व है और क्यों न हो। पुरखों और अपने इतिहास के प्रति गर्व का भाव एक डेनिश व्यक्ति हमेशा अपने मन में बनाए रखता है और इस कारण विश्व में अपनी पहचान बड़े ठसके से बना कर रखता है। अपने देश भारत  में इस बात की बड़ी कमी महसूस होती है। हम तो अपने इतिहास को जानना ही नहीं चाहते। उसपर गर्व करना तो दूर की बात है, अपने से ही मुंह छिपाते फिरते हैं। लेकिन डेनमार्क के निवासियों को तो अपनी धरती से अथाह प्यार है। वे जो हैं और जो थे – सभी बातों पर उन्हें गर्व है। इसे वे हर बार यह कहते हुए जाहिर करते हैं- वी आर डेनिश!!

सिटी हॉल स्क्वायर में स्थित कोपेनहेगन का सिटी हॉल जो यहां की म्यूनिसिपल काउंसिल का मुख्यालय है और साथ ही लॉर्ड मेयर का दफ्तर भी। साल 1892 से 1905 के दरम्यान बनी यह इमारत कोपेनहेगन की सबसे ऊंची इमारतों में से एक है। इन इमारत में कोई भी कभी भी आ-जा सकता है सिवाय इसके टॉवर के जिसके लिए एक गाइड जरूरी होता है। टॉवर से शहर का शानदार नजारा दिखता है। फोटोः वंडरफुल कोपेनहेगन

मछलियों का व्यापार बहुत पहले से यहाँ था लेकिन सोलह सौ अड़तालीस में कोपेनहेगेन डेनमार्क का  महत्वपूर्ण बंदरगाह बना और इस व्यापार के बल पर खासा अमीर भी बनाअपने खुलेपन, कम भीड़-भाड़ और सकारात्मकता के कारण यह शहर बेहद प्रभावित करता है। यहाँ कई नियम हैं, लिखित तो हैं ही कई अलिखित भी हैं, लेकिन लोग उनका भी भरपूर पालन करते हैं।

स्टार्क फाऊंटेन नाम से प्रसिद्ध चौक पर हर वक़्त चहल-पहल रहती है। वहां आप कुछ देर खड़े रहेंगे तो थोड़ी-थोड़ी देर में सामने से एक लंबी नौका गुजरती दिखाई देगी है, जिसपर बैठकर सैलानी कोपेनहेगेन की सुंदर जगहों को निहार कर आनन्दित होते हैं। इसी चौराहे से पेडेस्ट्रियन स्ट्रीट की शुरुआत होती है जो कोंगेन्स नैटोर्व को जोड़ती है। यह वाकिंग स्ट्रीट बड़ी-बड़ी दुबगली दुकानों के बीच से गुजरकर सीधी आगे बढ़ती है। इस सड़क पर किसी भी वाहन का चलना वर्जित है, सभी पैदल चलते हैं। इस सड़क पर चलते हुए दोनों ओर रंगीन इमारतें नजर आती हैं।

न्यूहाउन की यह सड़क अंत में नदी किनारे ख़त्म होती है, जहाँ पीले रंग का स्टीमर मिलता है। वही लिटिल मरमेड नामक दर्शनीय स्थल तक जाता है, जहाँ किनारे से थोड़ी दूर पानी में लिटिल मरमेड (पुरातन जलपरी ) की कांसे की सुन्दर मूर्ति है। लिटिल मरमेड के कांसे के बुत की मौजूदी इस शहर को अलग किस्म की ताब देती है। कभी बीते समय में परी सी सुन्दर मत्स्य राजकुमारी एक जमीनी राजकुमार के प्रति गहन प्रेम में पड़ गई थी। लेकिन राजकुमार उसे पहचान नहीं पाया था और वह प्रेम कथा असफल रही। लेकिन लिटिल मरमेड की याद शहर को अब भी है, वह बुत बनी ठगी सी अब भी पत्थर की शिला पर बैठी है, स्वयं  भी पत्थर बनी हुई। उसे देखकर न जाने क्यों मुझे अहिल्या की कथा याद आई थी- पत्थर की शिला!

सूर्यास्त के समय लिटिल मरमेड का शानदार नजारा। कांसे की बनी यह मत्स्य सुंदरी कोपेनहेगन की सबसे लोकप्रिय जगहों में से एक है। फोटोः रासमस पेडरसन

यहां बीच के रास्ते पर चलते हुए  एक ओर छोटे-छोटे रेस्तरां हैं, खुली जगह है और ऊपर शेड है। वहाँ तरह-तरह की वाइन–बीयर और कई तरह की शराब के संग सैंडविच और अनेक व्यंजन उपलब्ध रहा करते हैं। मुश्किल यही है कि कोई भी भारतीय खाना इस जगह पर नहीं मिलता। उसके लिए बहुत दूर इंडियन रेस्तरां में जाना पड़ता है। बीच में बहती नदी और दूसरी ओर अन्य रंगीन इमारतें मिलकर बहुत ही सुंदर नजारा प्रस्तुत करते हैं।

यह शहर पैदल चलने वालों का और साइकिल चलाने वालों का है। पूरे शहर में पैदल चलना और साइकिल पर चलना शान की बात मानी जाती है। कोपेनहेगन सड़कों के जाल से पटा हुआ है। यहां किसी भी नुक्कड़ पर हरे-भरे बगीचों, फव्वारों नहरों या जलाशय के रूप स्वच्छ निर्मल जल की शीतलता को महसूस किया जा सकता है। धन-वैभव से छल-छलाते इस शहर में पश्चिम के अन्य महानगरों की फर्राटेदार गाडिय़ों से कहीं ज्यादा साइकिलों की रेलमपेल दिखाई देती हैं। साइकिलें भी यहाँ तरह-तरह की दिखाई देती हैं- एक बच्चे को पीछे बैठा कर ले जाने वाला स्टैंड तो साधारण सी बनावट लगती है, जो आम तौर पर साइकिल में लगा दीखता ही है। लेकिन कई साइकिलों के आगे बड़ी चौकोर बनावट लगी रहती है जिसमें एक साथ दो बच्चों को, बड़े बच्चे को या पत्नी को भी बैठा कर यहाँ से वहां ले जाते हुए लोग दिखाई पड़ते हैं। इस दृश्य को देखना, उसे मन में संजो लेना एक अनुभव जैसा है – इस देश की सकारात्मक सोच और स्वावलंबन के प्रतिबिम्ब जैसा है यह।

यहाँ लोग शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक पैदल या साइकिल से आते-जाते हैं। बसें भी हैं – लाल, पीली, नीली। फाइव-सी बस दुगुनी लम्बी है, बीच में जुडी हुई। यहाँ का परिवहन मात्र बस, मेट्रो या लोकल ट्रेन पर निर्भर नहीं है। स्टीमर (जिन्हें मोविया कहते हैं) भी शहर के इस छोर को उस छोर से समान रूप से जोड़ते हैं। स्टीमर और नाव – मोटरबोट वगैरह का लगातार चलायमान रहना पर्यटन के गर्वीला और आकर्षक आयाम जैसा महसूस होता है।

पदयात्रियों का स्वर्ग कहलाने वाले कोपेनहेगन में पूर्व से पश्चिम तक विराट सर्प सी मीलों लंबी विस्तारित सड़क ‘स्ट्रोगेट’ को 1962 में विश्व का सर्वश्रेष्ठ पदयात्री मार्ग घोषित किया गया था। साफ-सुथरी इस सड़क के दोनों तरफ डेनिश डिजाइनों के अत्यंत उच्च कोटि की गुणवत्ता वाले यांत्रिक उपकरणों की दुकानें और कलापूर्ण एंटीक वस्तुओं के अंबार वाली दुकानें मिलेंगी। स्ट्रोगेंट सड़क कई चौकों में विभक्त हैं। पूर्व में नया चौक नाइतोव है तो पश्चिम में सिटी हॉल चौक। रॉयल थिएटर, रॉयल अकादमी ऑफ आर्ट, सन् 1898 में बने ईलम्स के डिपार्टमेंटल स्टोर की ललचाती शो विंडोज को निहारते हुए मुख्यद्वार से गुजर कर सदियों पुराने निकोल चर्च के दर्शन कर गलियारों में लगी प्रतिष्ठित कलाकारों की नुमाइशों का नजारा लेते हुए पद यात्रा सिटी हॉल चौक पर खुद-ब-खुद संपन्न हो जाती है, जहां 209 मीटर सर्पाकार सीढिय़ों पर चढ़कर पूरे कोपेनहेगन के विहंगम दृश्य को जीभरकर निहारा जा सकता है।

ओरेसंड ब्रिज 16 किलोमीटर लंबा है और यह डेनमार्क को स्वीडन से जोड़ता है। इसकी शुरुआत साल 2000 में हुई थी। इसमें पुल के अलावा एक टनल और पेबेरहोमेन नाम का कृत्रिम द्वीप भी शामिल है। फोटोः विग्गो लुंडबर्ग

कोपेनहेगेन में घूमते हुए इस बात की लगातार याद बनी रहती है कि यह बाल कथाओं के जादूगर कहे जाने वाले एच.सी.एंडरसन का शहर है। लिटिल मरमेड और अन्य कई बाल कथाओं के विश्व प्रसिद्ध कथाकार। अब भी जल-स्रोत के किनारे उनका बीस नंबर का मकान कितनी ही घटनाओं के साक्षी स्वरूप खड़ा हुआ है। एच.सी. एंडरसन बुलवर्ड नाम की सड़क शहर की व्यस्त सडक है। ऊँची बिल्डिंग पर बोर्ड लगा हुआ है – पॉलिटिकेन हस, जो दैनिक अखबार का ऑफिस है और अत्यधिक सुरक्षा और अत्यधिक चौकसी वाली इमारत है। उसके सामने वाली सड़क पर चलते-चलते हम आगे, और आगे बढ़ते हैं। खूब आगे चलने पर यानी एक–दो चोराहा पार करने के बाद थोड़ा बाएं मुड़कर एच.सी. एंडरसन बुलवर्ड रोड पर आ जाते हैं। फिर  पैदल चलते–चलते पुल पार करके सड़क रॉयल लाइब्रेरी की तरफ बढ़ जाती है।

कोपेनहेगेन में रहते हुए हर वक्त यह महसूस होता है कि आप एक ऐसी अनन्त साफ़-सुथरी जगह पर हैं, जहाँ नियम पालन का जुनून है, सौन्दर्य और कर्मठता है। हाँ, क्रिश्चैनिया नामक इलाके में जाकर यह भ्रम थोडा सा दरक जाता है, जहाँ बहुत कुछ अलग से नियमों का पालन वहां के रहने वाले करते हैं। उसके बारे में फिर कभी, तब तक कोपेनहेगन की सैर का मजा लें।

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