Sunday, November 24
Home>>सैर-सपाटा>>भारत>>पश्चिम बंगाल>>संदकफू- एवरेस्ट का खूबसूरत नजारा
पश्चिम बंगालभारतसैर-सपाटा

संदकफू- एवरेस्ट का खूबसूरत नजारा

कुदरत जब अपनी खूबसूरती बिखेरती है तो सीमाएं नहीं देखती। यही बात उन निगाहों के लिए भी कही जा सकती है उस खूबसूरती का नजारा लेती हैं। हम यहां बात केवल देशों की सीमाओं की नहीं कर रहे, बल्कि धरती व आकाश की सीमाओं की भी कर रहे हैं। हिमालय ऐसी खूबसूरती से भरा पड़ा है। इस बार हम जिक्र कर रहे हैं संदकफू का जो पश्चिम बंगाल से सिक्किम तक फैली सिंगालिला श्रृंखलाओं की सबसे ऊंची चोटी है।

नीला आसमान और बर्फ से लदी चोटियां

संदकफू की ऊंचाई समुद्र तल से 3611 मीटर है। यहां जाने का रोमांच जितना इतनी ऊंचाई पर जाने से है, वहीं इस बात से भी है कि यह वो जगह है जहां से आप दुनिया की पांच सबसे ऊंची चोटियों में से चार को एक साथ देख सकते हैं। ये हैं दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8848 मीटर), तीसरे नंबर की और भारत में सबसे ऊंची कंचनजंघा (8585 मीटर), चौथे नंबर की लाहोत्से (8516 मी) और पांचवे नंबर की मकालू (8463 मी). खास तौर पर कंचनजंघा व पंडिम चोटियों का नजारा तो बेहद आकर्षक होता है। यही हर साल देश-विदेश से रोमांच-प्रेमियों को यहां खींच लाता है। यही आकर्षण है कि खुले मौसम में सूरज की पहली लाल किरण इन बर्फीली चोटियों पर पड़ते देखने के लिए सवेरे चार बजे से सैलानी हाड़ जमाती ठंड में भी मुस्तैद नजर आते हैं।

इस इलाके से सूर्योदय का नजारा

कुछ-कुछ ऐसा ही आकर्षण मनयभंजन से संदकफू पहुंचने के रास्ते का भी है। पूरा रास्ता ठीक भारत-नेपाल सीमा के साथ-साथ है, या यूं कहे कि ये रास्ता ही सीमा है। आपके पांव कब नेपाल में हैं और कब भारत में, यह आपको पता नहीं नहीं चलेगा। दिन में चलेंगे तो भारत में, रात में रुकेंगे तो नेपाल में। थोड़ी-थोड़ी दूर पर लगे पत्थरों के अलावा न सीमा के कोई निशान हैं और न कोई पहरुए। काश, सारी सीमाएं ऐसी हो जाएं।

इस रास्ते की हर बात में कुछ खास है- चाहे वो संदकफू तक ले जाने वाली लैंडरोवर हो जो देखने में किसी संग्रहालय से आई लगती है, या यहां के सीधे-सादे मेहमानवाज लोग हों जो ज्यादातर नेपाल से हैं लेकिन आर्थिक-सामाजिक तौर पर भारत से भी गहरे जुड़े हैं, या फिर यहां की संस्कृति हो जो बौद्ध धर्म की अनुयायी है। पूरे इलाके में फैले गोम्पा व मठ इसके गवाह हैं।

इस तरह पहाड़ पर चढ़ता है रास्ता

खास बात यहां के बादलों में है जो पूरे रास्ते आपक साथ आंख-मिचौनी खेलते रहते हैं- इस कदर कि इन मेघों के चलत गांवों के नाम मेघमा पड़ जाते हैं। खास बात इस बात में है कि मनयभंजन से निकलकर चित्रे, तुंबलिंग (टोंगलू), कालापोखरी, संदकफू, फालुत, गुरदुम व रिम्बिक तक हर जगह पर आपको शेरपाओं के लॉज मिल जाएंगे जहां आपको बेहद किफायती दामों पर (दाम तय करवाना आपके गाइड पर भी निर्भर करता है) ठहरने की साफ-सुथरी, गरम जगह और घर जैसा खाना मिल जाएगा।

खास चीज तुम्बा भी है जो सीधे लफ्जों में कहा जाए तो इस इलाके की देसी बीयर है। इसे बनाने और पीने, दोनों का तरीका इतना अनूठा है कि आप इसका स्वाद लेने से खुद को रोक नहीं पाएंगे। खान-पान की बात करें तो खास चीज यहां की चाय है जो पहाड़ों पर तमाम बागानों में उगाई जाती है और वह सुखाया गया पनीर भी जो याक के दूध से बनाया जाता है। यहां जाएं तो थुप्पा व मोमो का स्वाद भी लेना न भूलें क्योंकि वह स्वाद आपको अपने शहर में नहीं मिलेगा।

यहां सब तरफ हरी पहाड़ियां नजर आती हैं

रास्ता व रोमांच

  • मनयभंजन से संदकफू का रास्ता बेहद खूबसूरत है। रास्ते की खूबसूरती प्राकृतिक तो है ही, उसे तय करने के तरीके में भी है।
  • मनयभंजन से संदकफू होते हुए फालुत तक का रास्ता सड़कनुमा है। लेकिन यह सीधी-साधी सड़क नहीं बल्कि ज्यादातर जगहों पर खड़ी चढ़ाई वाली और पूरे रास्ते पथरीली है।
  • माना जा सकता है कि सड़क है तो कोई वाहन भी चलता होगा। सही है, और यह वाहन भी संदकफू जाने के अनुभवों में से सबसे खास है। यह वाहन यानी जीप है- लैंडरोवर, पचास साल से भी पुराना ब्रिटिश मॉडल। इसे इस रास्ते पर चलते देखना हैरतअंगेज है तो इसपर बैठकर सफर करना साहस का काम। इसीलिए जो शारीरिक रूप से सक्षम हैं, वे केवल एक दिन या कुछ दूरी का सफर इस लैंडरोवर में करते हैं ताकि इसका अनुभव ले सकें।
  • इस रास्ते पर ट्रैकिंग ज्यादा कष्टदायक नहीं क्योंकि फालुत तक का सफर लैंडरोवर के रास्ते पर ही होता है। लेकिन वापसी का सफर जंगल के रास्ते होता है। संदकफू या फालुत से वापसी करने वाले जंगल के रास्ते रिम्बिक तक उतरते हैं।
रास्ते में रुकने के लिए गेस्टहाउस

कैसे पहुंचें

  • संदकफू जाने का असली सफर मनयभंजन से शुरू होता है।
  • मनयभंजन जाने के दो सड़क मार्ग हैं- पहला सीधा जलपाईगुड़ी से जो मिरिक होते हुए जाता है। इस रास्ते पर न्यूजलपाईगुड़ी से मनयभंजन की दूरी नब्बे किलोमीटर है। लेकिन, चूंकि इस रास्ते पर आने-जाने के साधन बहुत सीमित हैं, इसलिए लोग दूसरे रास्ते का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं जो घूम होते हुए है।
  • न्यूजलपाईगुड़ी से दार्जीलिंग के रास्ते पर घूम शहर दार्जीलिंग से नौ किलोमीटर पहले है। इस रास्ते पर छोटी लाइन की ट्रेन सड़क के साथ-साथ चलती है, इसलिए घूम सड़क व ट्रेन, दोनों से पहुंचा जा सकता है।
  • घूम से मनयभंजन का सफर लगभग एक घंटे का है। इन रास्तों पर बसें कम ही मिलेंगी। आने-जाने का ज्यादा सुलभ व किफायती साधन जीप है। न्यूजलपाईगुड़ी या दार्जीलिंग से पूरी जीप भी बुक कराई जा सकती है या फिर प्रति सवारी सीट भी इस रास्ते की जीपों में आप ले सकते है।
  • न्यूजलपाईगुड़ी रेल मार्ग से दिल्ली, हावड़ा व गुवाहाटी से सीधा जुड़ा है। सबसे निकटवर्ती हवाईअड्डा सिलीगुड़ी के पास बागडोगरा है।
संदकफू के आगे घने जंंगलों से नीचे उतरना पड़ता है

खास बातें

  • संदकफू सिंगालिला राष्ट्रीय पार्क के दायरे में है। बारिश के तीन महीनों में यानि 15 जून से 15 सितंबर तक यह पार्क सैलानियों के लिए बंद रहता है।
  • बारिश से पहले यानि मई-जून में जाने वालों को रास्ते में गरमी का अहसास हो सकता है। लेकिन सितंबर के बाद से मौसम में ठंडक बढ़ती जाएगी। संदकफू में ऊंचाई की वजह से मौसम हमेशा ठंडा मिलेगा। सर्दियों में यहां खासी बर्फ भी गिरती है। वैसे भी पहाड़ों पर मौसम पलभर में बदलता है। एक पल में धूप में आपको गरमी लगेगी तो दूसरे ही पल बादल छाते ही आप ठिठुरने लगेंगे। इसलिए अपने साथ कपड़ों का पूरा इंतजाम रखें।
  • रास्ते में अपने साथ एक गाइड जरूर रखें। यह न केवल रास्ता दिखाने व रुकने की जगह बताने के लिए बल्कि राष्ट्रीय पार्क होने की वजह से भी नियमानुसार जरूरी है। मनयभंजन से ये गाइड मिल जाएंगे। इनकी दरें भी तय हैं- 250 से तीन सौ रुपये प्रति दिन। सामान ज्यादा हो तो पोर्टर भी करना होगा। थोड़ा सामान तो गाइड भी अपने साथ उसी फीस में उठा लेता है। स्थानीय गाइड तमाम अनजान मुश्किलों में भी मददगार रहते हैं।

Discover more from आवारा मुसाफिर

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading