क्यों न चलें नेतरहाट, जहां पत्थर गाते हैं और पेड़ सुनते हैं। जहां चट्टानों के संगीत के बीच सूर्य जागता है और सोता है। जहां आकाश की नीलिमा और धरती की हरीतिमा सूर्य की लालिमा के साथ एक नया रंग रचती है भोर की पहली किरण फूटने को है। रात के सितारे पहले ही आकाश में छाती नीलिमा में खोने लगे हैं। आसमान भी हर पल अपना रंग बदलने को आतुर है। तभी परिंदे भी सब तरफ से आकर उड़ने लगे हैं- गाते, नाचते और चहचहाते। आसमान में कहीं-कहीं बादल के टुकड़े हमेशा की तरह आवारा टहल रहे हैं। आखिरकार सूरज की चमक दिखलाई दी और क्षितिज में उसकी लालिमा सब तरफ फैल गई है। आसमान मानो सुनहरा हो गया। आखिर सूरज अपने काम से कब चूका है! नेतरहाट में सूर्यास्त का नजारा यह नेतरहाट का नजारा है। यह झारखंड का देहात है, राजधानी रांची से लगभग 155 किलोमीटर दूर। जैसे मसूरी को पहाड़ों की रानी कहा जाता है, उसी तरह से नेतरहाट को छोटा न...
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