जब कोई जगह दुनिया में अकेली हो तो उसे देखने का रोमांच कुछ ज्यादा ही होता है। गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित गिर नेशनल पार्क के साथ कुछ ऐसी ही बात है। वह दुनिया में एशियाई शेरों का अकेला बसेरा है। यहां के अलावा खुले जंगल में शेर दुनिया में केवल अफ्रीका में हैं लेकिन वे अफ्रीकी शेर हैं। गिर नेशनल पार्क 16 अक्टूबर से 15 जून तक सैलानियों के लिए खुला रहता है।
गिर का परमिट
देश के तमाम राष्ट्रीय पार्कों की ही तरह गिर राष्ट्रीय पार्क में जाने के लिए भी परमिट की आवश्यकता होती है। लेकिन अक्सर इसकी औपचारिकताओं के बारे में लोगों को जानकारी कम होती है, जिससे सैलानियों को वहां पहुंचकर परेशानी का सामना करना पड़ता है। गिर में मुख्य नेशनल पार्क में जाने के लिए रोजाना तीन सफारी होती हैं। एक सवेरे छह बजे से, दूसरी सवेरे नौ बजे से और तीसरी दोपहर बाद तीन बजे से। हर सफारी के लिए कुल 46 परमिट आधिकारिक तौर पर जारी किए जाते हैं- 23 परमिट ऑनलाइन (गिर नेशनल पार्क की वेबसाइट- http://girlion.in/ से) और 23 परमिट रोजाना सासन-गिर में स्थित सिंह सदन से जो पार्क का मुख्यालय है।
ऑनलाइन परमिट तो महीनों पहले सैलानी बुक करा लेते हैं, इसलिए बेहतर होगा कि गिर जाने की योजना अगर पहले बन जाए तो तुरंत ऑनलाइन परमिट हासिल कर लें। या फिर वहां जाकर परमिट लेने के झंझट से बचना चाहते हैं तो ऑनलाइन परमिट की उपलब्धता के अनुसार जाने का कार्यक्रम बनाएं। चूंकि रोजाना हर सफारी से पहले मिलने वाले परमिट की संख्या भी सीमित यानी 23 ही है, इसलिए उनके लिए सीजन में वहां लंबी कतार लगती है। यह कतार खास तौर पर सवेरे छह बजे और दोपहर तीन बजे की सफारी के लिए ज्यादा लंबी होती है क्योंकि ये दोनों वक्त जंगल में जानवर देखने के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। इनमें भी सवेरे छह बजे वाली सफारी की मांग तो इतनी ज्यादा होती है कि ज्यादा भीड़ वाले दिनों में तो रात दो-तीन बजे से सासन-गिर में सिंह सदन के मुख्य द्वार के बाहर परमिट लेने वालों की लाइन लग जाती है। मुख्य द्वार के बाहर इसलिए क्योंकि सिंह सदन के दरवाजे सवेरे पांच बजे ही खुलते हैं। उसके बाद वह कतार उसी क्रम में भीतर परमिट खिड़की तक आ जाती है। सवेरे की दूसरी और दोपहर की सफारी के लिए कतार परमिट विंडो के सामने ही लगती है।
दरअसल कतार के नाम पर परमिट विंडो के सामने 23 कुर्सियां लगी हैं। उन 23 कुर्सियों पर बैठे लोगों को ही परमिट मिलते हैं। लेकिन 23 परमिट का मतलब 23 लोगों के प्रवेश से कतई नहीं है। हर परमिट पर अधिकतम छह व्यक्तियों का एक समूह एक वाहन में बैठकर सफारी के लिए जा सकता है। यानी 23 परमिट कुल 23 वाहनों के लिए होते हैं। हर समूह से किसी भी एक व्यक्ति को परमिट के लिए अपने किसी फोटो पहचान पत्र के साथ कतार में लगना होता है। जंगल में जाने के लिए परमिट और गाइड अनिवार्य होते हैं। वाहन आप चाहें तो अपना भी ले जा सकते हैं लेकिन परमिट व गाइड के साथ, अन्यथा सफारी के लिए खुली जीप वहां उपलब्ध होती हैं। सामान्य तौर पर परमिट के साथ, सफारी वाहन और गाइड का भी शुल्क लिया जाता है। यह सब मिलाकर मौजूदा शुल्क के हिसाब से 2550 रुपये बैठता है। ग्रुप में प्रत्येक कैमरे के लिए 200 रुपये की फीस अलग से देनी होती है। एक परमिट केवल एक सफारी के लिए ही मान्य होता है। यानी अगर आप दो सफारी अलग-अलग समय पर या अलग-अलग दिनों में करना चाहते हैं तो हर बार नया परमिट और सारे शुल्क देने होंगे। ऑनलाइन परमिट में केवल परमिट का शुल्क लिया जाता है। वाहन, गाइड व कैमरे की फीस गिर में पहुंचकर सफारी के लिए जाने से पहले जमा करानी होती है। ऑनलाइन परमिटधारियों के लिए इसकी अलग खिड़की है।
जाहिर है कि कई सैलानी इस सारी जानकारी के बिना ही गिर में शेर देखने पहुंच जाते हैं और वहां जाकर उन्हें परेशानी उठानी होती है। ऊपर जिस व्यवस्था का जिक्र हमने किया है, उसके अनुसार रोजाना लगभग डेढ़ सौ वाहन सफारी के लिए जा सकते हैं। छुट्टियों के सीजन में यहां आने वालों की संख्या काफी ज्यादा हो जाती है। क्या इसका मतलब यह है कि बाकी सारे सैलानी निराश लौटते होंगे? जाहिर है, कुछ हद तक। लेकिन उनकी निराशा को कम करने का एक और उपाय यहां हैं।
देवलिया सफारी पार्क
गिर नेशनल पार्क यानी सासन गिर से लगभग 11 किलोमीटर दूर देवलिया में एक इंटरप्रिटेशन जोन है। यह मानो गिर का एक मिनियेचर पार्क है। यह पार्क बहुत कम क्षेत्र में फैला है और एक चाहरदीवारी से घिरा है। यहां लगभग दस शेर और कुछ बाकी जानवर रखे गए हैं। इनमें ज्यादातर शेर वही हैं जो कुछ उम्र दराज हो चले हैं। इस देवलिया सफारी पार्क में भी अंदर जानवर देखे जा सकते हैं। हां, अब एक खुले घने जंगल में घूमने और एक बंद पार्क में सफारी करने के रोमांच में तो फर्क है ही। यहां कई तेंदुए भी हैं लेकिन उन्हें किसी चिड़ियाघर की तरह एक बड़े बाड़े में रखा गया है, जहां से वे बाहर नहीं आ सकते। शेर यहां खुले में विचरण करते हैं और उनके शिकार के लिए यहां हिरण भी है। देवलिया पार्क में सफारी मिनी बस से कराई जाती है। इसलिए जिन सैलानियों को गिर नेशनल पार्क की सफारी के परमिट नहीं मिल पाते हैं, उन्हें अक्सर इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वे निराश घर लौटने की जगह देवलिया जाकर बस सफारी कर लें। देवलिया में इलाका काफी छोटा और बंद होने की वजह से जानवर, खास तौर पर शेर देखने की संभावना काफी बढ़ जाती है, लगभग सौ फीसदी। देवलिया में परमिट प्रणाली नहीं है, बस तय समय में जाकर वहां बस का टिकट लेना होता है। देवलिया सफारी सवेरे 8 बजे से 11 बजे के बीच और फिर दोपहर 3 बजे से 5 बजे के बीच होती है। हालांकि देवलिया सफारी के टिकट भी ऑनलाइन लेने की गुंजाइश है। यहां गाइड, वाहन या कैमरे का अलग से कोई शुल्क नहीं है।
कब, कैसे, कहां
गिर नेशनल पार्क गुजरात के जूनागढ़ जिले में है। पार्क के सबसे निकट या ठीक सामने सासन-गिर कस्बा है जिसकी बसावट मुख्य रूप से इसी पार्क की वजह से है। जूनागढ़ शहर यहां से लगभग 55 किलोमीटर और वेरावल शहर लगभग 45 किलोमीटर दूर है। ये दोनों शहर ही ब्रॉडगेज लाइन से जुड़े हैं। आप देश के बाकी हिस्सों से अहमदाबाद या राजकोट पहुंचकर वहां से जूनागढ़ या वेरावल के लिए दूसरी ट्रेन पकड़ सकते हैं। जूनागढ़ या वेरावल से सासन-गिर आने के लिए बसें व टैक्सी आसानी से मिल जाती हैं। अहमदाबाद से या राजकोट से सीधे सड़क रास्ते से भी गिर आया जा सकता है, उसमें लगभग सात का घंटे का वक्त लग जाता है। जूनागढ़ से सोमनाथ तक एक छोटी रेललाइन भी है जो सीधे सासन-गिर तक जाती है। उससे सफर करना हो तो ट्रेनों के समय पहले पता कर लें। यह छोटी रेललाइन नेशनल पार्क के बीच से होकर गुजरती है और कई बार उसमें बैठे-बैठे जंगली जानवर दिख जाते हैं।
गिर नेशनल पार्क 16 अक्टूबर से 15 जून तक खुला रहता है। इस दौरान कभी भी जाया जा सकता है। लेकिन भीड़ से बचना हो और शांत माहौल में जंगल का आनंद लेना हो तो छुट्टियों के दिनों में वहां जाने से बचें।
सासन-गिर कस्बे में कुछ गेस्ट हाउस और होमस्टे उपलब्ध हैं। यहां काफी सस्ते में कमरे (हजार-डेढ़ हजार रुपये प्रतिदिन) मिल जाते हैं। हालांकि भीड़ के दिनों में टिकने का संकट हो सकता है। इसलिए हो सके तो पहले बुकिंग करा लें। आसपास आठ-दस किलोमीटर के दायरे में कई शानदार रिजॉर्ट और होटल हैं। सवेरे की पहली सफारी करने के लिए नेशनल पार्क के जितना नजदीक रुका जाए, बेहतर है। सासन-गिर में खाने-पीने के लिए भी कई रेस्तरां हैं।
आसपास
गिर घूमने जाएं तो आसपास भी देखने की काफी जगहें हैं। इसलिए उन्हें भी साथ देखने की योजना बनाई जा सकती है।
जूनागढ़ः जूनागढ़ नवाबों का इलाका रहा है। दरअसल जूनागढ़ के नवाब को ही गिर में शेरों के संरक्षण की शुरुआत करने का श्रेय जाता है। जूनागढ़ गिरनार पर्वत के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। यहां कई पर्वतों का समूह है। यह हिंदुओं व जैनियों, दोनों के लिए धार्मिक मान्यता का प्रमुख स्थल है। जैनी इसे नेमिनाथ पर्वत के रूप में मानते हैं। यह स्थान कृष्ण से भी जुड़ा है। मुख्य पर्वत पर चढ़ने के लिए 9999 सीढ़ियां हैं। ऊपर चढ़ने के रास्ते में कई हिंदू व जैन मंदिर हैं। यहां के लिए चढ़ाई सवेरे शुरू कर देनी चाहिए क्योंकि दिन चढ़ने पर चढ़ना कष्टकारी हो जाता है। समूचे पश्चिम भारत में गिरनार की बड़े तीर्थ के रूप में मान्यता है। इसके अलावा जूनागढ़ में किला व संग्रहालय भी देखा जा सकता है।
सोमनाथः वेरावल से सात किलोमीटर और सासन-गिर से 40 किलोमीटर दूर समुद्र के किनारे सोमनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। सोमनाथ और वेरावल शहर दरअसल मिले-जुले हैं। दोनों ही समुद्र के किनारे हैं। सोमनाथ का मंदिर इतिहास में तो काफी अहम स्थान रखता ही है, धार्मिक रूप से भी बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के कारण इसकी बड़ी मान्यता है। यहां सालभर बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आते हैं। मंदिर में दर्शन तो दिनभर खुले रहते हैं लेकिन विशेष अर्चनाओं के अलग-अलग समय निर्धारित हैं। सोमनाथ में रुकने के लिए कई अच्छे व सस्ते गेस्टहाउस और खाने के लिए भी भोजनालय हैं।
You must be logged in to post a comment.