दृश्य 1
गाड़ी के आगे अचानक दो सींग वाला लहीम-शहीम गैंडा (राइनो) आ गया। मुंह से चीख निकली और साथ ही दिल बल्लियों उछलने लगा। अरे, पृथ्वी का यह दुर्लभ जीव सामने, बिल्कुल लबे-सड़क खड़ा है। थूथन पर बड़ा-सा सींग, दूसरा सींग कुछ आधा-अधूरा सा दिख रहा था। गाड़ी खटाक से रुकी और हाथ दरवाजा खोलने की ओर गया…
दृश्य -2
सामने दौड़ लगी हुई है। लंबे-लंबे जिराफ एक दूसरे के साथ रेस लगा रहे हैं। उनके शरीर की लय इतनी मंत्रमुग्ध करने वाली है कि पता ही नहीं चलता है कि कब एक छोटा जिराफ गाड़ी के बिल्कुल बगल में, तकरीबन सटते हुए खड़ा हो जाता है…
दृश्य 3
ऐसा लगता है कि सड़क पर गाड़ी के आगे-आगे धूल का बवंडर चल रहा है। सहसा कुछ अनदेखा सा घटित होता है। धीमी रफ्तार से चल रही गाड़ी, अचानक रोक दी जाती है। फर्लांग भर दूरी पर गाड़ी के आगे जंगली भैंसों का दल खड़ा है। वे बहुत उग्र और परेशान नजर आ रहे हैं। अपने पैर जमीन पर पटके जा रहे हैं, मानों गहरी नाराजगी का इजहार कर रहे हों। सब अपना सिर आपकी गाड़ी की तरफ किए हुए हैं और आप दूर से ही उनकी आंखों की तपिश को देख पा रहे हैं। पगडंडी भी पतली सी है, गाड़ी को मोड़ कर उलट दिशा में दौड़ाने का मौका भी नहीं है…
पढ़ते हुए आप सोच रहे होंगे कि ये किसी फिल्म के शॉट हैं या फिर किसी किताब के…। ये दृश्य असल जिंदगी के हैं। कहां के… सोचिए जरा…
इस जगह का नाम है, टाला प्राइवेट गेम रिजर्व। यह दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर के बाहर बसा हुआ एक प्राइवेट गेम रिजर्व है। इस रिजर्व की खासियत यह है कि यहां किसी भी जानवर से आपको डरने की जरूरत नहीं, चाहे वह आपके कितने की करीब क्यों न हों। वजह? यहां सारे जानवर शाकाहारी है, इंसान को बेवजह नुकसान पहुंचाने की फितरत किसी में नहीं है। इन तमाम बातों का मतलब यह नहीं है कि आप इस रिजर्व में खुलेआम घूम सकते हैं। आपको अपनी कार या रिजर्व के सफारी वाहन में ही घूमना होता है, पैदल नहीं।
डरबन के क्वाजुलू नटाल में स्थित इस टाला रिजर्व में आने के बाद किसी का भी वापस जाने का मन नहीं करता। इतनी सुंदरता और नैसर्गिकता को छोड़कर जाना मुश्किल भी है। टाला रिजर्व ऊंची पहाड़ियों के बीच-बीच बसा हुआ है और इसकी खूबसूरती आपको सहज ही मंत्रमुग्ध कर देती है। खुले विशाल चारागाह ऐसे हैं कि मानो सारी हरियाली आपको आंखों से उतारने में ही कठिनाई होने लगे। किसी भी प्रकृति प्रेमी के लिए यह एक बेहतरीन अड्डा हो सकता है निर्बाध रूप से पहाड़ों-नदी, चारागाह के दरम्यान हिरनों, ज़ेबरा, जंगली सूअर को दौड़ लगाते देखने का।
यहां का सफर बचपन के सपने का सच होने जैसा ही था। आसमान को छूने वाला जिराफ अपनी गर्दन को झुका कर कार में हमारा इस्तकबाल करे। हरियाली दूब की चादर सी बिछे घास के मैदान पर आंखों के आगे पकड़न-पकड़ाई खेलें जिराफ के जोड़े और उनका परिवार। कभी किसी को ज्यादा बदमाशी सवार हो तो दूसरे जिराफ को हल्के से लंगड़ी भी लगा दे…यानी जंगल में जानवरों की अठखेलियां हम सामने से देखें। दूरी बस हाथ बराबर की हो..बस चाहें तो भाग कर जिराफ की चमकदार टांगों को छू आएं…। है न यह सब बचपन के सपने सरीखा!
मेरे लिए दक्षिण अफ्रीका की यात्रा के दौरान टाला रिजर्व में गुजरा एक-एक पल सिहरन पैदा करने वाला था। चटक सफेद देह पर काले रंग की जोरदार पट्टियों को समेटे ज़ेबरा झुंड के झुंड में बस हाथ भर दूरी पर खुले मैदान में अठखेलियां कर रहे थे। ज़ेबरा और जिराफ एक-साथ दौड़ते-भागते, एक-दूसरे को प्रेम में चाटते, एक-दूसरे के ऊपर लुढ़कते प्रेम का एक अद्भुत वितान रचते हैं।
ज़ेबरा और जिराफ समूह में रहना पसंद करते हैं। अक्सर उनके छोटे बच्चे समूह से बाहर मटरगस्ती करते हुए वाहनों के लिए बनी छोटी पगडंडियों पर आ जाते हैं। ऐसे ही पांच-छह जिराफ अपने ज़ेबरा दोस्तों के साथ जब हमारी कार के बिल्कुल सामने आए, तो खुद को कार में कैद रखना बहुत ही मुश्किल लगने लगा। मन बार-बार कर रहा था कि बस एक पल के लिए ही सही, बस एक बार उन्हें छू लूं। कार का शीशा और गेट दोनों ही खोल दिया। छोटे जिराफ से मानो मेरे मन की सुन ली और वह अपनी लंबी-सी गर्दन को आसमान से झुकाते हुए कार के पास तक ले आया। यह क्षण मानो आज भी मेरी आंखों में पूरी ताजगी के साथ बसा हुआ है। ऐसे में कहां मुझे याद रहता कैमरा क्लिक करना। मैं तो बस उस सुंदर जानवर को देखने में मशगूल थी। कार में साथ चल रहे मित्र शॉकील ने बकायदा मुझे झकझोर कर कहा, फोटो खींचो, शॉट चला जाएगा। जब तक मैं कैमरा क्लिक करती, तब तक यह झुंड वापस अपने बड़ों के साथ जाने के लिए मुड़ चुका था। सामने से शायद उनकी टोह लेने को दौड़ते हुए दो बड़े जिराफ भी आ रहे थे। ज़ेबरा और जिराफ के साथ-साथ और भी ढेरों जानवरों की फौज टाला प्राइवेट रिजर्व में जंगल में मंगल करती दिखाई देती है।
शुतुर्मुर्ग भी एक ऐसा ही निराला जीव है, जिसके बड़े दिलचस्प अंदाज में यहां दीदार होते हैं। बचपन से यही मुहावरा सुनती आ रही हूं कि क्या शुतुर्मुर्ग की तरह गर्दन रेत में घुसा लेते हो, यानी संकट के समय उससे लड़ने के बजाय, बचने के लिए रास्ता खोजना। अब इस कहावत के पीछे बताया जाता है कि शुतुर्मुर्ग की यह आदत है कि जब तेज आंधी आती है तो वह अपनी गर्दन रेत में घुसा लेता है। लेकिन टाला रिजर्व में जो शुतुर्मुर्ग (ऑस्ट्रिच) नजर आए, वह अपनी पूरी लंबाई के साथ मस्ती में विचरण करते दिखाई दिए।
बड़ा ही खूबसूरत पक्षी है शुतुर्मुर्ग। इसकी चाल खास तौर से आपका ध्यान खींचती है। काफी झेंपू टाइप होता है यह पक्षी। आसपास जरा सी आवाज होते ही दौड़ लगा लेता है। शुतुर्मुर्ग ऐसा पक्षी है जो उड़ नहीं सकता। साथ चल रहे गाइड ने बताया कि शुतुर्मुर्ग सबसे चौकन्ना पक्षी होता है। किसी भी तरह के मौसम में तब्दीली को भी यह भांप लेता है। मौसम में बदलाव के हिसाब से इसका भी व्यवहार बदल जाता है और यह आने वाले संकट से सबको आगाह करने के लिए विचित्र किस्म की आवाजें निकालता है।
अभी हम शुतुर्मुर्ग की दुनिया में ही थे कि अचानक गाड़ी के ठीक सामने आ गया भीमकाय मिट्टी में सना सींग में घास फंसाए गैंडा। दिल धक्क से हो गया। हालांकि टाला गेम रिजर्व में घुसने से पहले ही हमें बता दिया गया था कि यहां कोई भी जानवर हिंसक नहीं है, लेकिन सच बताऊं तो इस गैंडे की अचानक इंट्री ने तो हमारी सिट्टी-पिट्टी ही गुम कर दी। दो-तीन मिनट तक हमें निहारने के बाद गैंडा अपनी राह चल निकला। वह पास में बह रही नदी के कीचड़ में खूब खेलकर अपनी उस तरफ बढ़ रहा था, जहां नदी गहरी थी। इसके बाद तकरीबन 10 गैंडे नजर आए। इन गैंडो की खासियत यह है कि इनकी दो सींग होते हैं। एक बड़ा और एक बिल्कुल नामालूम सा—सिर्फ जगह सी बनी होती है। यह भीमकाय जानवर टाला गेम रिजर्व में खूब मस्ती करते नजर आते हैं। खेल-खेल में भिड़ भी जाते हैं। कई बार उनकी सींग आपस में फंस जाते हैं और वे चीखते हैं। फुर्सत हो तो इस नजारे का लुत्फ उठाने के लिए पूरा दिन यहीं खर्च किया जा सकता है।
टाला में जितने जानवर हैं, उन सबके अगर आप दर्शन करना चाहे तो आप कर सकते हैं, बशर्तें आपके पास समय हो। जंगली सूअर और जंगली भैंसों से मुलाकात का जिक्र किए बिना न मुझे अपना अनुभव बयां करने में मजा आएगा और न आपको पढ़ने में। पहले बात जंगली सूअरों के। टाला में सड़क पर चलते हुए अगर यह आपकी कार को दौड़ाएं नहीं तो समझिए कि आपका शगुन अच्छा नहीं है। ऐसा यहां स्थानीय लोगों का मानना है। हमारे गाइड मोजेक ने बताया कि जंगली सूअर अगर नहीं दौड़ाएं तो इसका मतलब है कि कुछ अनिष्ट होने वाला है। आपकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो सकती है या सांप-अजगर परेशान कर सकता है या कुछ भी…और जैसे ही मोजेक ने कहा, कुछ भी- तो हमें कार के बगल में दौड़ रहे जंगली सूअर भले से दिखने लगे।
जंगली सूअर अपनी तेजी के लिए जाने जाते हैं। ये अपनी रफ्तार और बाहर निकले पैने दांतों से शेर तक को परास्त करने की क्षमता रखते हैं। इनके छोटे-छोटे बच्चे भी बहुत तेज दौड़ते हैं और जरूरत पड़ने पर अपने माता-पिता की शिकार में मदद भी करते हैं। पूरे टाला रिजर्व में जंगली सूअर फैले हुए हैं।
अचानक ही हमें रास्ते में बहुत धूल सी उड़ती दिखाई दी। ड्राइवर थोड़ा चौकन्ना हो गया और धीरे-धीरे उसने ब्रेक लगाना शुरू किया। ब्रेक लगाने का फैसला सही था। सामने दस-बारह जंगली भैंसे (बाइसन) खड़े थे। शायद हम गलत रास्ते पर मुड़ गए थे, अब याद आया मोड़ पर खतरे का निशान बना था। हम यू-टर्न भी नहीं ले सकते थे, पगडंडी पतली थी। शॉकील ने इशारा किया चुपचाप बैठने का, किसी भी तरह की कोई आवाज न निकालने का। तकरीबन 3-4 मिनट पर हम दम साधे बैठे रहे और सामने बाइसन भी उसी स्थिति में रहे। फिर वह वापस मुड़े और हमने भी बिना कोई शोर किए गाड़ी को पीछे खिसकाना शुरू किया। जंगल में जानवरों से सीधे-सीधे मुठभेड़ करने का रोमांच सिर चढ़ बोल रहा था।
टाला प्राइवेट रिजर्व करीब 3,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है। पहाड़, नदी, जंगल के साथ-साथ करीब 300 किस्म की दुर्लभ चिड़िया भी हैं यहां। दरियाईघोड़ा, मगरमच्छ, मछलियों के अलावा बाकी तमाम जानवर यहां हैं ही, जिनका जिक्र हम कर चुके हैं।
इन तमाम जानवरों को हम चिड़ियाघरों में देखते रहे हैं, लेकिन यहां टाला रिजर्व में वह आजाद थे। आजादी कितना बड़ा फर्क लाती है, इसका आभास कराता है टाला रिजर्व और उसके जैसे कई और रिजर्व। हां, यह तो मैं बताना भूल ही गई कि मुझे टाला प्राइवेट गेम रिजर्व घूमने का मौका डरबन में रहने वाले अपने वैज्ञानिक मित्र शॉकील की बदौलत हासिल हुआ। शॉकील ने तकरीबन बाध्य किया कि मैं थोड़ा समय निकाल कर टाला रिजर्व का कम से कम एक चक्कर लगाऊं। और, इस अनुभव के लिए मैं आजीवन शॉकील की आभारी रहूंगी। वाकई अगर वहां नहीं गई होती तो कितनी निराली दुनिया से वंचित रह गई होती।
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