‘हमसफर एवरेस्ट’ एक ऐसी किताब है, जिसे घुमक्कड़ी और ट्रैकिंग के हर शौकीन को पढ़ना चाहिए। यह हमें घुमक्कड़ी और ट्रैकिंग की नई राह दिखाती है। इस किताब को लिखा है नीरज मुसाफिर ने। नीरज पेशे से इंजीनियर हैं और दिल्ली मेट्रो में कार्यरत हैं, लेकिन उनकी पहचान एक जीवट ट्रैकर और घुमक्कड़ की है। वह जहां-जहां गए, वहां की यादें, अनुभव और वृत्तांत को अपने ब्लॉग पर लिख मारा। और, इस तरह से वह लेखन की दुनिया में आ गए। फिर शुरू हुआ पुस्तक लेखन का काम। ‘सुनो लद्दाख’ और ‘पैडल-पैडल’ के बाद ‘हमसफर एवरेस्ट’ उनकी तीसरी किताब है।
‘हमसफर एवरेस्ट’ एक रोचक किताब है, जिसमें नीरज अपनी पत्नी के साथ माउंट एवरेस्ट बेस कैंप की यात्रा के वृत्तांत को बताते हुए पाठकों को भी आभासी तरीके से अपने साथ-साथ बेस कैम्प ले जाते हैं। यह आभासी यात्रा पाठकों को यथार्थ रूप से बेस कैम्प जाने के लिए उकसाने का काम करती है और यह इस किताब और नीरज के लेखन की सफलता है।
- किताब का नाम – हमसफर एवरेस्ट
- लेखक – नीरज मुसाफिर
- प्रकाशन – हिंद युग्म
- कीमत – 150 रुपये
27 दिन की यात्रा को दिन के हिसाब से अध्याय के रूप में बांटा गया है। दिल्ली से एक बाइक पर ट्रैकिंग का समान लादकर और अपनी पत्नी को पीछे बैठाकर नीरज निकल पड़ते हैं अपने सफर पर। यात्रा पर निकलने से पहले की तैयारियों का ब्यौरा इस किताब में है, जो हर ट्रैकर के लिए मददगार साबित होगा। रास्ते में एक दोस्त भी अपनी बाइक से साथ हो लेते हैं, लेकिन वह नेपाल के लुकला से वापस हो जाते हैं। खैर, एक 150 सीसी की साधारण बाइक से बेस कैम्प के लिए निकलना और रास्ते भर का ब्यौरा बहुत ही मजेदार है। यह नीरज की जीवटता और ट्रैकिंग के प्रति लगाव को दिखाता है।
नेपाल में भारतीयों के लिए वीसा या पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती। बाइक के लिए एक परमिट की जरूरत होती है। फिर बाइक से आगे की यात्रा – सड़क खत्म हो जाने के बाद भी बाइक से यात्रा। परंपरागत राह के बजाय अलग राह पकड़ना। बेस कैम्प से पहले गोक्यो झील की यात्रा और एक बड़े ग्लेशियर को पार करना। सुनसान जगहों पर कई बार अकेले पड़ जाना। हर दिन, अगले दिन की प्लानिंग करना। अलग-अलग जगहों पर रुकने का अलग-अलग अनुभव लेना। ऐसे तमाम मसले हैं, जिन्हें बड़े ही रोचक और विवरणात्मक रूप में लिखा गया है। कई बार तो ऐसा लगता है कि इस किताब को ही गाइड मानकर बेस कैम्प की यात्रा की जा सकती है।
हां, लंबी राह पकड़ने के कारण ज्यादा थकान होने से वह काला पत्थर नहीं जा पाए, जहां से माउंट एवरेस्ट अपने भव्य रूप में दिखता है। यह पाठकों की ओर से नीरज के लिए अखरता है। किताब में रंगीन फोटो के लिए एक सेक्शन होना चाहिए था। यद्यपि उनके विवरण खुद तस्वीर बनाते हुए चलते हैं। निश्चय ही ‘हमसफर एवरेस्ट’ एक पठनीय और संग्रहणीय किताब है।
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