वैसे तो भोपाल की पहचान झील नगरी के तौर पर है लेकिन इसी नगर में दर्जन भर नायाब संग्रहालय भी हैं। इतने संग्रहालय शायद ही किसी दूसरे शहर में आपको मिलें। इसलिए इस बात पर अफसोस होता है कि जब भी भोपाल का जिक्र होता है तो झीलों के बीच यहां के संग्रहालयों की बात कहीं गुम होकर रह जाती है।
यूं तो संग्रहालय देश के हर शहर में मिल जाएंगे लेकिन भोपाल के संग्रहालयों की बात कुछ अलग है। मध्यप्रदेश पुरा सामग्री के लिहाज से सबसे समृद्ध राज्यों में एक है। इसलिए सामग्री के लिहाज से यहां के संग्रहालय काफी समृद्ध हैं। भोपाल के दर्जन भर संग्रहालय व सांस्कृतिक केंद्र इसको एक अलग पहचान देते हैं। इनमें मानव जीवन की झांकी से लेकर राज्य की पुरा धरोहरों, आदिम जनजीवन, प्रदर्शनकारी कला, समाचार पत्र पत्रिकाओं के विकास, दूरसंचार, इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम की झलक से रु-ब-रु हुआ जा सकता है।
बड़ी छोटी झीलें
भोपाल शहर की बड़ी झील नगर का दिल है जिसे सटी श्यामला पहाड़ी का लैंडस्केप और चारों ओर बनी सड़क एक अलग पहचान देती है। इस झील को मालवा के परमार राजा भोज द्वारा एक सहस्त्राब्दी पूर्व बनवाया था। इसे उनके वैद्य की सलाह पर चर्म रोग के इलाज के लिए बनवाया गया था ताकि जड़ी बूटियों की प्रचुरता वाली श्यामला पहाड़ी की तलहटी में बनी झील के पानी में स्नान करने से राजा की तकलीफ ठीक हो सके। राज भोज द्वारा इसका निर्माण होने से इस झील को भोजताल भी कहते हैं।
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इसके एक ओर भारत की सबसे बड़ी मस्जिद ताज-उल मस्जिद की मीनारें दिखती हैं जबकि दूसरी तरफ श्यामला की पहाड़ी की तलहटी है। भोपालवासियों की प्यास बुझाने के साथ-साथ यह झील हजारों लोगों की रोटी का साधन भी है। नाव वाले, स्ट्रीट फूड वाले, रेस्तरां वाले, किनारे बने होटल, टैक्सी टैम्पो वाले, ट्रेवल गाइड से लेकर मछुआरे व दूसरे कई कारोबारी इस पर काफी हद तक आश्रित हैं। बड़ी झील की सैर भोपाल का प्रमुख मुकाम है और इसकी सैर भोपाल यात्रा को एक तरह से पूर्णता देती है। यही झील कवियों, कथाकारों, रचनाकारों की कल्पनाओं में कविताओं, कहानियों, उपन्यासों में उतरती रही है। इसी के किनारे पर मौजूद भारत भवन नगर की साहित्य, कला व थियेटर गतिविधियों का प्रमुख ठौर है। चाहे कितनी ही शीत या प्रचण्ड गर्मी क्यों न हो सायंकाल में झील का किनारा स्थानीय लोगों व पर्यटकों की आवाजाही से अटा मिलता है। सब अपने-अपने प्रयोजन से यहां आते हैं।
पर्यटक इसका नजारा देखने को यहां आते है व किनारे सैर का आनंद लेते हैं, नौकायन करते हैं, खानपान का लुत्फ लेते हैं व कुछ मटरगश्ती करते हैं। स्थानीय लोग नगर की चहल-पहल से दूर प्रकृति के बीच तरोताजा होने पहुंचते है। प्रात:काल झील किनारे वीआईपी व लेक व्यू रोड भिन्न वय वर्ग के लोगों की पहलकदमी से भरी होती है। दौड़ लगाते युवा स्टैमिना बढाने यहां आते हैं तो जॉगिंग-वॉकिंग वाले भी कम नहीं होते हैं। कुछ के लिए झील किनारे बनी बेंचे, पार्क व नाव प्रणय कहानियों को आगे बढ़ाने का जरिया हैं। झील नगर का एक स्टेटस सिम्बल भी है और किसी बंगले या होटल से यदि इसका एक सिरा भी दिख जए तो इसमें रहने के लिए जेब ज्यादा ढीली करनी होती है।
एक अदभुत जलभूमि भी
यह झील अंतरराष्ट्रीय रामसर जलभूमि भी है सो दूसरी झीलों के मुकाबले इस पर सरकार कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहती है। इन झीलों में आने या रहने वाले लगभग 200 प्रकार के पक्षियों की पहचान की जा चुकी हैं। इनमें कुछ दुर्लभ प्रजातियों के भी है। सुबह शाम बतखों व दूसरे जलपक्षियों के झुण्डों के शोर से यह सड़क कुछ ज्यादा ही गुंजायमान हो जाती है। झील में कभी पक्षियों की भीड़ इतनी होती है कि लगता है कि नाव कैसे बढ़ेगी पर नाव के बढ़ते ही जल पक्षी विनम्रता से रास्ता छोड़ देते हैं।
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इसका जलीय जीवन भी अनूठा है। गर्मियों में जब सूरज आग बरसा रहा होता है तो यह काफी सिमट जाती है और सहमी-सहमी सी लगती है। लेकिन ठीक इसके बाद सावन-भादों की बौछारें इसे सरसब्ज कर जाती हैं और जीवन की नई कोंपलें फूटने लगती हैं। सितंबर के आते-आते यह अनेकानेक प्रकार के कीट, पतंगों व मछलियों से पट सी जाती है। इनका लालच ही यहां पर देशी विदेशी परिन्दों के आने का एक बहाना बनता है और शीतकाल की दहलीज आते-आते यह झील हजारों परिन्दों की अठखेलियों का एक आंगन बन जाती है। गर्मी ही दस्तक से पहले प्रवासी पक्षी तो उड़ निकलते हैं लेकिन स्थानीय पक्षी ही बचे रहते हैं। ऋतु चक्र की तरह से झील का जीवन चक्र भी सदियों से चलता आया है। इसमें लगभग तीन दर्जन प्रजातियों की मछलियां, लगभग 100 प्रकार के कीट-पतंगें, 300 प्रकार के प्लेंकटन व 10 दूसरे सरीसृप पाए जाते हैं।
शीतकाल में पक्षियों के आगमन के साथ यहां पक्षी प्रेमी, पक्षी विशेषज्ञ व स्कूली छात्रों का तांता लगा होता है। छात्रों के लिए यह इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि वे यहां आने वाले पक्षियों से लेकर इसके जलीय जीवन के विवरण को अपनी प्रोजेक्ट फाइलों में कैद कर सकें। इसी से सटी हुई छोटी झील या छोटा तालाब है जिसे भोपाल के नवाब छोटे खान ने 18वीं सदी में बनवाया था। इसमें बड़ी झील से ही पानी रिसकर आता है। यह छोटी व कम आकर्षक है। हालांकि दोनों ही झीलें शहरीकरण के दबाब से जूझ रही है। चूंकि बड़ी झील काफी विस्तारित है इसलिए मानवीय दबाब में होते हुए भी यह प्रभाव दूर से महसूस नहीं होता है, जबकि इससे सटी छोटी झील बुरी तरह से प्रभावित नजर आती है। इनके पानी में कई प्रकार के रासायनिक व जैविक परिवर्तनों के होने से इनके जीवन चक्र को लेकर आए दिन चिंता जाहिर होती ही रहती है। भोपाल में कुछ और भी झीलें है लेकिन इनके सामने बाकी सब गौण हैं। इन्हीं से यह झील नगरी कहलाती है। बहरहाल, भोपाल में बने कई संग्रहालय व संस्थान इसे एक सांस्कृतिक नगरी की पहचान देने को पर्याप्त हैं।
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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय
श्यामला पहाड़ी की पीठ पर अकेले चार संग्रहालय है। इनमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय सबसे प्रमुख व विशाल है। लगभग 200 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस संग्रहालय में मानवजीवन के अनेक पहलुओं को प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय का एक भाग एक भव्य भवन में है तो दूसरा खुले आसमान के तले। खुले आसमान के तले भारतीय जनजीवन की विविधता को दर्शाया गया है जिसमें हिमालयी, तटीय, रेगिस्तानी व जनजातीय पर्यावासों को समझ सकते हैं। इनमें मध्य भारत की जनजातियों के अलावा अन्य जनजातियों को भी पर्याप्त स्थान दिया गया है ओर उनके पर्यावास के अनूठेपन को प्रदर्शित किया गया है। उनमें उनके घरों को उनके मौलिक रूप में उनके भीतर दैनिक उपयोग के साजो-सामान जैसे कि उनके बरतन, रसोई, कामकाज का सामान, औजार, हथियार, अन्न संग्रह के पात्र आदि देखे जा सकते हैं। यह निवास उनके पारंपरिक शिल्प व कलाओं से सज्जित हैं।
इसका भीतरी संग्रहालय भी अनूठा है। भवन की डिजाइन व विशालता अनूठी है। ढालदार भूमि पर बने संग्रहालय का क्षेत्रफल पूरे 10 हजार वर्ग मीटर में विस्तारित है। अन्दर अनेक प्रदर्शनी दीर्घाएं हैं। इनको इस प्रकार से प्रदर्शित किया गया है ताकि प्रवेश करने वाला दर्शक संग्रहालय में एक क्रम से सब चीजों को देख सके। इसकी प्रथम दीर्घा में मानवजीवन के विकास की कहानी को माडलों से समझाने का प्रयास किया गया है। इसके बाद मानव विकास के क्रम को एक चरणबद्ध रूप से दर्शाया गया हैं जिसके लिए विभिन्न माडलों, व स्केचों का सहारा लिया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें देश के विभिन्न भागों से प्राप्त साक्ष्य रखे गए हैं। संग्रहालय में भारत के विभिन्न समाजों के जनजीवन की झलक देखने को मिलती है। भारत के अलग-अलग समाजों में प्रयोग होने वाले परिधान, साजसज्जा, आभूषण, संगीत के उपकरण, पारंपरिक कला, हस्तशिल्प, शिकार, मछली मारने के उपकरण, कृषि उपकरण, औजार व तकनीकी, पशुपालन, कताई व बुनाई के उपकरण, मनोरंजन, उनकी कला से जुड़े नमूनों को रखा गया है। संग्रहालय की विभिन्न वीथिकाओं में प्रवेश करने के बाद दर्शक अपने अतीत के बारे में सोचने को मजबूर हो जाते हैं। पूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी की रुचि व मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के प्रयास से ही यह भोपाल में स्थापित हो सका। उल्लेखनीय है कि श्यामला पहाड़ी पर प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्र भी मिलते हैं।
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राज्य संग्रहालय
समीप में राज्य संग्रहालय है। उन्नीसवीं सदी से पहले नवाब शाहजहां बेगम ने इसे स्थापित किया था। उस समय इसका नाम भोपाल म्यूजियम था। इसमें राज्य के अलावा दुनिया भर से लाई गई पुरानी सामग्री प्रदर्शित की गई थी। उनकी पुत्री ने इसको प्रोन्नत कराया व इसका नाम एडवर्ड म्यूजियम रखते हुए इसे नए भवन में स्थापित किया। आज यह एक नए भवन में हैं जिसमें कुल 17 गैलरी हैं। मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को इसमें विभिन्न माध्यमों से प्रदशित किया गया है। इसमें इतिहास पूर्व काल की सामग्री है तों लाखेां साल पुराने फॉसिल्स भी। उत्खनन से निकली सामग्री, पाण्डुलिपियां वस्त्र, विभिन्न दौर में बनी कलाकृतियां, पेन्टिंग्स, राजाओं के सिक्के, सामग्री व हथियार, आदि भी यहां है। मध्य प्रदेश में अलग-अलग काल और अलग-अलग इलाकों में कई राजवंशों का शासन रहा। इनमें मौर्य, शुंग, सातवाहन, कुशाण, गुप्त, प्रतिहार, चंदेल, कलचुरी, मुगल, बघेल, गोंड, मराठा, होल्कर, सिंधिया आदि शामिल थे। इन्हीं सब विभिन्न धार्मिक व राजनीतिक सत्ताओं से जुड़ी विरासत की विविधता यहां झलकती है।
राज्य आदिवासी संग्रहालय
श्यामला हिल्स से लगा एक और संग्रहालय ‘राज्य आदिवासी संग्रहालय’ है जो सात एकड़ भूमि पर फैला है। इसके प्रथम तल पर पांच वीथिकाएं है जिनमें जनजातियों का परिचय है। प्रदेश में मुख्य रूप से प्रवास करती रही लगभग तीन दर्जन जनजातियों के कलाशिल्पों को यहां रखा गया है। इनमें सहरिया, भील, गोंड, भरिया, कोरबा, प्रधान, मवासी, बैगा, पनिका, खैरवार कोल, पाव भिलाला, बारेला, पटेलिया, डामोर आदि जनजातियों के साक्ष्य शामिल हैं। यहां उनकी जीवन शैली, सांस्कृतिक धरोहरों से संबंधित वस्तुएं, प्रतीक चिन्ह, मूर्तियां, संगीत उपकरण, आभूषण, चित्रकारी, प्रस्तर उपकरण, कृषि उपकरण, शिकार के हथियार, मछलियां पकड़ने के औजार, कपड़े व उनका औषध तंत्र आदि संग्रहीत है।
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क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र
श्यामला पहाडी तलहटी में राज्य का रीजनल साइंस सेंटर है जिसमें एक अंतरग भवन व पार्क है। इसमें लगभग ढाई सौ एग्जीबिट रखे गए हैं जो प्रकाश, उर्जा, ध्वनि, पर्यावरण, यान्त्रिक विषयों आदि पर आधारित है। खुले आसमान के नीचे साइंस पार्क है जहां विज्ञान से संबंधित कई सिद्धान्तों को आधार बनाते हुए सक्रिय मॉडल दिखाए गए हैं। दर्शक इनको चलाकर उनके पीछे के सिद्धांत को समझ सकते हैं। विज्ञान केंद्र में साल भर विज्ञान से सम्बन्धित गतिविधियां चलती रहती हैं। यह विज्ञान के छात्रों में काफी लोकप्रिय है।
भारत भवन
नीचे आते हैं तो लेक व्यू रोड के किनारे पर भारत भवन है। इंदिरा गांधी कला व संस्कृति में बेहद रुचि लेती थीं सो उन्होंने भोपाल में ऐसा सांस्कृतिक केंद्र बनाने का सुझाव रखा जहां भारतीय कलाओं को सहेजने के अलावा उनको प्रदर्शित भी किया जा सके। भारत भवन ऊपरी झील क्षेत्र में वीआईपी रोड पर झील से सटा है। प्रख्यात वास्तुविद चार्ल्स कोरिया ने इसका डिजाइन तैयार किया था। यह एक बहुआयामी कला केंद्र हैं जहां प्रदर्शनकारी कलाओं के हर हिस्से को स्थान मिला है। समकालीन लोक कलाओ से लेकर आदिवासी पेन्टिग्स व चित्रकला, थियेटर रंगमंच आदि के लिए भी पर्याप्त स्थान यहां है। इसकी चार इकायां है। रूपांकर में फाइन आर्ट्स का प्रदर्शन किया गया है जिसके भीतर दो वर्कशाप हैं। यहां पर एक थियेटर भी है जहां पर नाटकों को तैयार किया जाता है और उनका मंचन भी।
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बाहर से देखकर ऐसा नहीं लगता कि यह इस प्रकार का बहुआयामी कला केंद्र होगा। वागार्थ भारतीय कविता का केन्द्र है तो इसमें भारतीय शास्त्रीय व लोक संगीत की एक लाइब्रेरी भी मौजूद है। भारत भवन कुछ इस प्रकार से डिजाइन हुआ है कि इससे झील का नजारा कहीं से भी बाधित नहीं होता है।
क्षेत्रीय अभिलेखगार
श्यामला पहाड़ी के एक किनारे ही राष्ट्रीय आर्काइव्स का क्षेत्रीय केंद्र है। इसमें भोपाल रियासत, पुराने सरकारी गजट, भारत की आजादी के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम संबंधी दस्तावेज, फाइलों व माइक्रोफिल्म के रूप में मौजूद हैं। इस केंद्र में शोधकर्ताओं, छात्रों व इतिहासकारों की खासी रुचि रहती है। इससे कुछ ही दूर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय है जो स्वराज भवन संस्थान का हिस्सा है। यह शोध व दस्तावेजीकरण के लिए बनाया गया। इसमें मध्य प्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान की जानकारी मिलती है। संग्रहालय में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी वस्तुएं, प्रतीक चिन्ह, फिल्में, फोटोग्राफ, पुस्तकें, समाचार पत्र व अन्य सामग्री संग्रहीत है। इसमें पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शर्मा द्वारा प्रदान की गई सामग्री व 30 हजार पुस्तकों को भी रखा गया है।
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बिरला संग्रहालय
पुरानी झील के एक कोने पर बसे विधानसभा भवन के दूसरी ओर बिरला संग्रहालय है। निजी क्षेत्र के इस संग्रहालय में मध्य प्रदेश में एकत्रित पुरा सामग्री को प्रदर्शित किया गया है। इसमें इतिहास पूर्व काल में भोपाल के समीप भीमबेटका में मौजूद मानव जीवन के चिह्नों को त्रिआयामी माडलों से प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय भवन में एक पुस्तकालय भी है।
माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय
हबीबगंज की तीन किमी. की परिधि में तीन अन्य संग्रहालय है। इनमें पत्रकार कालोनी में माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय है। इसमें हिंदी अंगेरजी उर्दू, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं के 100 साल से पुराने समाचार पत्र संग्रहीत है। यहां भारत के कई इतिहास पुरुषों द्वारा समाचार पत्रों में लिखे लेख और कई खास मौकों पर प्रकाशित समाचार पत्र सुरक्षित रखे गए हैं। भारत की आजादी के समय समाचार पत्रों में क्या प्रकाशित हुआ था, यह आप यहां आकर देख सकते हैं। गांधी जी की हत्या, चांद पर मानव के पहले कदम, भारत पाक यु़द्ध के दौरान आदि घटनाओं के समय प्रकाशित इन समाचार पत्रों के अंकों को देखा जा सकता है। इस संग्रहालय में अनेक समाचार पत्र, शोध पत्रिकाएं और दूसरी पत्रिकाओं की कई लाख पृष्ठ सामग्री मौजूद है। यह केंद्र पत्रकारों व शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण केन्द्र है।
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क्षेत्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय
नगर के प्रमुख इलाके अरेरा कालोनी क्षेत्र में दो अन्य संग्रहालय बने हैं। इनमें से एक क्षेत्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय है जो एक विज्ञान संग्रहालय जैसा है। यह पर्यावरण व प्रकृति के प्रति जनता में जागरूकता के प्रसार के लिए समर्पित है। यह समय-समय पर विभिन्न माध्यमों के प्रयोग कर जागरूकता सम्बन्धी शैक्षिक आयोजन करता रहता है। देश में ऐसे कुल पांच क्षेत्रीय संग्रहालय है।
बीजाक्षर संग्रहालय
अरेरा कालोनी में ही बीजाक्षर संग्रहालय है जो एक नए विचार को लेकर बनाया गया। इसमें राज्य के अलग-अलग स्थानों से जुटा कर ऐसी सामग्री रखी गई है जिसे प्रकृति ने गढ़ा है। इसमें कई प्रकार के पत्थर हैं जो कई प्रकार के भूगर्भीय गुण लिए हुए हैं। इसमें इतिहास व संस्कृति का चरित्र, प्रकृति और वातावरण, जीव-जंतुओं, वन्यजीवन, प्राकृतिक आपदाओं जसे कि भोपाल गैस कांड, कला, साहित्य आदि को दर्शाया गया है। इसका संचालन एक स्वयंसेवी संस्था करती है।
गुड़ियाघर संग्रहालय
यह दिल्ली के शंकर्स डॉल म्यूजियम की तरह का ही संग्रहालय है। गुड़ियाघर संग्रहालय अरेरा कालोनी में मौजूद पुरानी सेंट्रल जेल के बैरक में है। इसमें विभिन्न राज्यों की गुड़ियाएं प्रदर्शित हैं। ये कई तरह की नृत्य भंगिमाओं पर आधारित हैं। इन्हें उनके पारपंरिक परिधान, श्रृंगार सामग्री व आभूषणों से सज्जित किया गया है। यह महिला कैदियों द्वारा निर्मित की जाती है। इनमें से कुछ तो संग्रहालय में प्रदर्शित की गई हैं जबकि कुछ सामग्री बिक्री के लिए भी उपलब्ध हैं। शुरू में जब महिला बंदियों को इन्हें बनाने का प्रशिक्षण दिया गया था तो उम्मीद नहीं थी कि वे ऐसा वाकई कर सकेंगी। बाद में इन्हें प्रदर्शित करने के इरादे से ही यह संग्रहालय बनाया गया। गुड़ियाघर संग्रहालय में महिला बंदिनियों की रचनाशीलता का कमाल देखा जा सकता है।
दूरसंचार संग्रहालय
आज भले ही जमाना मोबाइल का आ गया है लेकिन भोपाल में राष्ट्रीय दूरसंचार संग्रहालय भी है जो एक तकनीकी संग्रहालय है। इसमें 1838 के बाद से भारत में दूरसंचार के विकास की झांकी देखी जा सकती है। संग्रहालय में पुरानी टेलीफोन लाइनें, प्रयुक्त उपकरण, विश्वयुद्ध के समय की संचार सामग्री, मोर्स की उपकरण, तरह-तरह के टेलीफोन, टेलीप्रिंटर, पुराने एक्सचेंज, प्रथम दौर के माइक्रोवेव संचार उपकरण, संचार में प्रयोग में आने वाले तरह-तरह के केबल्स, पुस्तकें, छाया चित्र व दूसरे दस्तावेज प्रदर्शित हैं।
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पुरातत्त्व संग्रहालय सांची
भोपाल के संग्रहालयों के अलावा यहां से 45 किमी दूर विश्व विरासत स्थल सांची में भी एक पुरातत्त्व संग्रहालय है जिसमें मौर्य, कुशाण, गुप्त काल से लेकर पूर्व मध्यकाल तक की सामग्री मौजूद है। इनमें पत्थर ही नहीं अपितु धातु निर्मित वस्तुएं भी हैं। उस काल में कला किस उत्कर्ष पर थी, यह यहां आकर पता चलता है। यहां पर रोजाना हजारों देशी व विदेशी पर्यटक व बौद्ध धर्मावलंबियों का तांता लगा रहता है।
इसलिए जब भी भोपाल आएं तो झीलों की नगरी के इन संग्रहालयों की ओर भी नजरें इनायत की जा सकती है। सैर के साथ भारतीय इतिहास की जानकारी मिलना क्या कोई कम है! रही बात भोपाल जाने की व रहने की, तो राज्य की राजधानी होने के कारण यह शहर देश के हर भाग से रेल व वायु सेवा से जुड़ा है और हर प्रकार की सुविधाओं से परिपूर्ण है।
(वरिष्ठ लेखक ललित मोहन कोठियाल ने अपने असमय निधन से पहले यह लेख ‘आवारा मुसाफिर’ के लिए लिखा था।)
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