निचले हिमालय की तलहटी में बीड़ गांव हिमाचल प्रदेश की जोगिंदर नगर घाटी के पश्चिम में स्थित है। इसे आम तौर पर भारत की पैराग्लाइडिंग राजधानी कहा जाता है। लेकिन इसके अलावा बीड़ इको टूरिज्म, आध्यात्मिक अध्ययन और ध्यान आदि गतिविधियों का भी केंद्र है। यह इलाका तिब्बती शरणार्थियों का बसेरा रहा है इसलिए बीड़ गांव में और आसपास कई बौद्ध मठ व स्तूप हैं। इसलिए पर्यटन के लिहाज से देखा जाए तो बीड़ का महत्व पैराग्लाइडिंग के अलावा भी बहुत है। लेकिन फिलहाल यहां आने वाले सैलानियों में बहुतायत पैराग्लाइडिंग के शौकीनों की है।
बिलिंग दरअसल पैराग्लाइडिंग के लिए टेक-ऑफ साइट है और बीड़ गांव मं लैंडिंग साइट है। दोनों को मिलाकर बीड़-बिलिंग कहा जाता है और वे इसी साझे नाम से ही ज्यादा लोकप्रिय भी हैं। बिलिंग करीब 16 किलोमीटर दूर है बीड़ गांव से, उत्तर की तरफ धौलाधार पर्वत श्रृंखला में। बिलिंग की ऊंचाई समुद्र तल से करीब 2400 मीटर है। वहीं बीड़ गांव के दक्षिणी सिरे पर एक बड़ा सा मैदान है जिसे चौगान कहा जाता है, वही पैराग्लाइडर्स के लिए लैंडिंग साइट है जो बिलिंग से करीब 3700 फुट नीचे है। बीड़ में सैलानियों के लिए रहने के ठिकाने औऱ बढ़िया रेस्तरां भी वहीं चौगान के आसपास हैं और तिब्बती कॉलोनी भी नजदीक ही है।
पैराग्लाइडिंग के लिए यहां देशी-विदेशी रोमांचप्रेमी दोनों ही आते हैं। दरअसल, बीड़-बिलिंग को दुनिया में पैराग्लाइडिंग के लिए दूसरा सबसे बेहतरीन स्थान माना जाता है। सबसे बढ़िया जगह इटली में लेक कोमो को माना जाता है, उसके बाद हमारे बीड़-बिलिंग का नंबर है। इसीलिए यहां कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुकाबले भी पैराग्लाइडिंग के होते रहते हैं। साल 2015 में अक्टूबर में यहां पहली बार पैराग्लाइडिंग वर्ल्ड कप आयोजित हुआ था। भारत ने पहली बार इस तरह की किसी स्पर्धा की मेजबानी की थी। इसमें दुनिया भर के 150 शीर्ष पैराग्लाइडिंग पायलटों ने हिस्सा लिया था। इसके अलावा करीब 500 फ्री-फ्लाइंग पायलट भी उस समय यहां पहुंचे थे। कई स्थानीय पैराग्लाइडिंग पायलटों के लिए भी वह अपना कौशल दुनिया को दिखाने का मौका था।
वैसे तो बारिश के मौसम को छोड़कर यहां तकरीबन पूरे सालभर पैराग्लाइडिंग चलती रहती है। लेकिन अच्छी उड़ान के लिए मौसम व हवा का रुख बहुत मायने रखता है। उस लिहाज से सितंबर से नवंबर और फिर मार्च से जून के महीने लंबी उड़ान के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि बाकी समय आप वहां जाकर पैराग्लाइडिंग नहीं कर सकते। बस, बारिश, आंधी-तूफान, बिजली आदि के समय पैराग्लाइडिंग नहीं होती। इसी वजह से जुलाई-अगस्त के महीनों में पैराग्लाइडिंग यहां बंद रहती है। धर्मशाला का इलाका वैसे भी भारत में सबसे ज्यादा बारिश वाले इलाकों में आता है। वरना वहां अलग-अलग मौसम में पैराग्लाइडिंग का अलग मजा भी है। जैसे सितंबर से नवंबर के समय सब कुछ हरा-भरा होगा तो फरवरी-मार्च में सब तरफ बर्फ की सफेदी छाई रहेगी। अब जरा कल्पना कीजिए कि बिलिंग में सब तरफ बर्फ की चादर बिछी हो और आप उसमें से दौड़ते हुए अपने पैराग्लाइडर के साथ हवा में छलांग लगा दें।
बीड़-बिलिंग में पैराग्लाइडिंग के लोकप्रिय होने की बड़ी वजह इस जगह की भौगोलिक स्थिति है। पीछे धौलाधार पर्वत श्रृंखला है और सामने कांगड़ा घाटी पसरी हुई है। यह भौगोलिक संरचना पहाड़ की तरफ से घाटी की तरफ नरम हवाओं के बहने की स्थिति पैदा करती है। इन हवाओं को पैराग्लाइडिंग की भाषा में थर्मल कहा जाता है। यह हवा बड़े ही सहज तरीके से टेक-ऑफ और लैंडिंग करने में मदद देती है। हवा में उड़ान भरते समय पीछे पहाड़ों का और सामने दूर तक फैली घाटी का नजारा मिलता है सो अलग। इसी से यह जगह पैरासेलिंग और पैराग्लाइडिंग के लिए माफिक बन जाती है। बिलिंग को आसान और सुरक्षित टेक-ऑफ के लिए जाना जाता है और आप कभी यहां जाकर पैराग्लाइडिंग करेंगे तो खुद महसूस करेंगे कि अक्सर टेक-ऑफ साइट पर आपको दौड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती और पैराग्लाइडर पूरा फैलते ही खुद-ब-खुद आपको हवा में उठा लेता है। यदा-कदा ही ऐसा होता है कि आपको दस-पंद्रह कदम दौड़ लगाने की जरूरत टेक-ऑफ के वक्त पड़े।
यकीनन पैराग्लाइडिंग एक रोमांचक गतिविधि है और इसके लिए हौसले का मजबूत होना जरूरी है लेकिन यह उतनी ही सुरक्षित भी है। पहली बार निश्चित रूप से आपतो थोड़ भय लग सकता है लेकिन उसी से अलग तरह का थ्रिल भी मिलता है। जरूरी यह है कि आप उड़ने से पहले तमाम इंतजामों व सुरक्षा जरूरतों के बारे में पूरी एहतियात कर लें। पैराग्लाइडिंग दो तरीके से की जाती है। पहली वो लोग करते हैं जो आधिकारिक तौर पर प्रशिक्षित, प्रमाणित व अभ्यस्त पायलट होते हैं। वे अपने अनुभव व आनंद के लिए सिंगल सीटर पैराग्लाइडर में उड़ान (सोलो फ्लाइट) भरते हैं। दूसरी टैंडम पैराग्लाइडिंग होती है जो टू-सीटर पैराग्लाइडर में की जाती है। इसमें पीछे पायलट इंस्ट्रक्टर बैठता है और वही पैराग्लाइडर को संचालित करता है और आगे वाली सीट पर दूसरा व्यक्ति बैठता है जो सिर्फ उड़ान का आनंद लेता है। सैलानियों, शौकीनों और पहली बार उड़ने वालों के लिए यही टैंडम उड़ान होती है। इंस्ट्रक्टर पायलट बनने के लिए भी आपको इम्तिहान देकर लाइसेंस लेना होता है। स्थानीय पायलट को हवा की गति, ऊंचाई, बादल, मौसम, तापमान, रूट व इलाके की सारी जानकारी होती है जो सुरक्षित उड़ान के लिए बहुत जरूरी है। वह जितना अनुभवी होगा, साथ में उड़ने वाले को उतना ही मजा आएगा। इसीलिए यह भी जरूरी है कि तमाम पैराग्लाइडिंग ऑपरेटर अपने पायलटों को नियमित रूप से परखते रहें, उन्हें प्रशिक्षण देते रहें, मौसम व हवा के रुख पर हमेशा निगाह रखी जाए, उनके उपकरणों की जांच की जाती रहे औऱ उड़ान भरने वालों की सुरक्षा के साथ मामूली सा भी समझौता नहीं किया जाए। सैलानियों को भी चाहिए कि उड़ान पर जाने से पहले इन सारी बातों को जांचकर खुद की तसल्ली कर लें।
पैराग्लाइडिंग का रोमांच इसमें है कि आप खुली हवा में उड़ रहे होते हैं। पैराग्लाइडर आपके ऊपर होता है और पायलट आपके पीछे। आप खुली हवा में सीट हार्नेस से एक कुर्सी से बंधे होते हैं और उड़ रहे होते हैं। दाएं-बाएं-नीचे, सब तरफ खुली हवा। यह अहसास ही रोमांच देता है (और कुछ लोगों को डर भी)। सामान्य उड़ानें आधे घंटे तक की होती है, यानी आप आधे घंटे तक खुली हवा में परिंदे की तरह उड़ते रहते हैं। फिर पायलट आपको धीरे-धीरे लैंडिंग साइट तक नीचे लेकर आता है। आप चाहें तो इससे लंबी उड़ान भी ले सकते हैं।
बीड़-बिलिंग का इलाका पैराग्लाइडिंग के लिए तो पिछले कुछ सालों से तो लोकप्रिय हो ही चला है, धीरे-धीरे अब वह रोमांचक गतिविधियों का भी गढ़ बनता जा रहा है। इनमें कैंपिंग, एंगलिंग और माउंटेन बाइकिंग शामिल हैं। ट्रेकिंग के लिए तो यह जगह पुराना बेस रही है। थमसर पास ट्रेक का रास्ता यहीं से शुरू होता है जो बिलिंग होते हुए जाता है। वहीं से आगे छोटा भंगाल और बड़ा भंगाल के आदिवासी इलाकों का रास्ता जाता है। बिलिंग के नाम के बारे में भी एक रोचक बात बताई जाती है। कुछ लोग कहते हैं कि यह नाम एक अंग्रेज के नाम पर पड़ा है जिसने सबसे पहले इस जगह को खोज निकाला था। बीड़ के आसपास पहाड़ों में कई झरने, गुफाएं आदि हैं। इस इलाके का संबंध पांडवों से भी बताया जाता है। बीड़ और उसके आसपास की मोनस्ट्री भी देखने लायक हैं। खास तौर पर चोकलिंग, न्यिंगयांग और सेरिंग मोनेस्ट्र देखने लायक हैं। तिब्बती मार्केट से अच्छी खरीदारी भी की जा सकती है। अब यहां बंजी जंपिंग, वैली क्रॉसिंग और जिप-साइक्लिंग जैसे रोमांच भी शुरू हो गए हैं।
पैराग्लाइडिंग के लिए एहतियात
- हमेशा अच्छे मौसम में ही उड़ान भरें जब हवा अच्छी हो और बारिश का कोई संकेत न हो। बादलों पर निगाह रखें क्योंकि पहाड़ों में मौसम तेजी से पलटता है।
- जब आप थके हों, बीमार हों या किसी तरह के नशे में हों तो उड़ान पर न जाएं। उड़ान भरते समय आपको हमेशा सतर्क औऱ होशियार होना चाहिए। आखिर तभी तो आप पूरा मजा भी ले पाएंगे।
- लैंडिंग के लिए नीचे उतरते समय ध्यान रखें कि कोई तार, इमारत, पेड़ या कोई अन्य चीज रास्ते में न आ रही हो जो उतरने में दिक्कत दे
- पैराशूट की उम्र भी जांच लें। हर पैराशूट पर उसका स्टिकर लगा होता है। सात-आठ साल से ज्यादा पुराने पैराग्लाइडर पर सवारी न करें। टैंडम फ्लाइट में पायलट अपने साथ एक रिजर्व पैराशूट भी रखते हैं।
कहां व कैसे
तिब्बती असर होने से यहां अच्छे तिब्बती खाने का लुत्फ लिया जा सकता है। लेकिन बाकी भी सब तरह का खाना यहां मिलता है। रुकने के लिए हर बजट के होटल हैं, हॉस्टल हैं और कई शानदार कैंपिंग साइट्स भी हैं। आपके रुकने की ज्यादातर जगहें ही आपकी पैराग्लाइडिंग का भी इंतजाम करा देती हैं। वैसे आप चाहें तो अलग से भी किसी ऑपरेटर से बात कर सकते हैं। पैराग्लाइडिंग ऑपरेटर ही आपको बीड़ से अपने वाहन में बैठाकर ऊपर बिलिंग तक लेकर जाते हैं। वापस बीड़ तो आप उड़ते हुए पहुंच ही जाते हैं। आम तौर पर 30-40 मिनट के पैराग्लाइडिंग सेशन के लिए 2000 रुपये तक प्रति व्यक्ति की रेट है। इसमें सौ-दो सौ रुपये की सौदेबाजी की गुंजाइश हमेशा रहती है। इसके अलावा ऑपरेटर आपकी उड़ान की फोटो व वीडियो ऊपर आसमान में गो-प्रो कैमरे से खींचने की भी पेशकश करते हैं और उसके लिए पांच सौ रुपये प्रति व्यक्ति तक फीस लेते हैं। साथ ही लैंडिंग करते वक्त आपको चौगान में कई फोटोग्राफर आपकी तस्वीरें खींचते मिल जाएंगे जो बाद में आपको कीमत के बदले वे फोटो देने की पेशकश करेंगे। ये फोटोग्राफर हाथों-हाथ फोटो आपके फोन में डिजिटली ट्रांसफर कर देंगे। यह सब आप अपनी इच्छा व सौदेबाजी की ताकत से तय करें।
वीकेंड डेस्टिनेशन
कैसे पहुंचे: बीड़ के लिए दिल्ली, चंडीगढ़ व पठानकोट से रोजाना कई लग्जरी बसें चलती हैं। कांगड़ा, जोगिंदर नगर व धर्मशाला जाने वाली बसों से भी यहां पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से लग्जरी बस में बीड़ पहुंचने में करीब 12 घंटे का वक्त लगता है। धर्मशाला यहां से 70 किलोमीटर की दूरी पर है। वहां के गग्गल हवाईअड्डे तक दिल्ली या चंडीगढ़ से फ्लाइट लेकर भी आप वहां से बीड़ सड़क के रास्ते आ सकते हैं। कांगड़ा शहर यहां से महज 12 किलोमीटर की दूरी पर है। आप पठानकोट तक बड़ी रेल लाइन से और वहां से जोगिंदर नगर जाने वाली छोटी लाइन की गाड़ी से भी कांगड़ा या जोगिंदर नगर उतरकर बीड़ जा सकते हैं।
बीड़ एक लोकप्रिय वीकेंड डेस्टिनेशन भी है। लेकिन दिल्ली व उत्तर भारत के कई शहरों से लोग सिर्फ पैराग्लाइडिंग के लिए बीड़ जाते हैं। बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो अपने शहरों से रात में बसों में बैठते हैं, सवेरे बीड़ पहुंचते हैं, दिन में पैराग्लाइडिंग करते हैं और शाम को बीड़ से फिर बस में बैठकर अगली सुबह अपने शहर में पहुंच जाते हैं। इसलिए आपको कई होटल ऐसे भी मिल जाएंगे जो आपको कुछ घंटे के लिए आराम करने के लिए कमरे उपलब्ध कराते हैं। इसी वजह से शनिवार व रविवार को आपको यहां खूब भीड़ मिल जाएगी। अब यह बार-बार पैराग्लाइडिंग के लिए वहां जाने वालों के लिए तो जायज है लेकिन पहली बार बीड़ जाने वालों को वहां जरूर एक-दो रात रुककर उस जगह का पूरा लुत्फ लेना चाहिए।