फ़ारस का इतिहास बहुत ही नाटकीय रहा है। ईरानी इतिहास में साम्राज्यों की कहानी ईसा के 600 साल पहले के हख़ामनी शासकों से शुरु होती है। इनके पश्चिम एशिया और मिस्र पर ईसापूर्व 530 के दशक में जीत हासिल करने से लेकर अठारहवीं सदी में नादिरशाह के भारत पर आक्रमण करने तक कई साम्राज्यों ने फ़ारस पर शासन किया। इनमें से कुछ फ़ारसी सांस्कृतिक क्षेत्र के थे तो कुछ बाहरी। फ़ारसी सांस्कृतिक प्रभाव वाले क्षेत्रों में आधुनिक ईरान के अलावा इराक का दक्षिणी भाग, अज़रबैजान, पश्चिमी अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान का दक्षिणी भाग और पूर्वी तुर्की भी शामिल हैं। ये सब वो इलाके हैं जहाँ कभी फारसी शासकों ने राज किया था और जिसके कारण उनपर फारसी संस्कृति का प्रभाव पड़ा था।
सातवीं सदी में ईरान में इस्लाम आया। इससे पहले ईरान में जरदोश्त के धर्म के अनुयायी रहते थे। ईरान शिया इस्लाम का केन्द्र माना जाता है। कुछ लोगों ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें यातनाएं दी गई। इनमें से कुछ लोग भाग कर भारत के गुजरात तट पर आ गए। ये आज भी भारत में रहते हैं और इन्हें पारसी कहा जाता है। सूफ़ीवाद का जन्म और विकास ईरान और संबंधित क्षेत्रों में 11वीं सदी के आसपास हुआ। ईरान की शिया जनता पर दमिश्क और बग़दाद के सुन्नी ख़लीफ़ाओं का शासन कोई 900 साल तक रहा जिसका असर आज के अरब-ईरान रिश्तों पर भी देखा जा सकता है। सोलहवीं सदी के आरंभ में सफ़वी वंश के तुर्क मूल लोगों के सत्ता में आने के बाद ही शिया लोग सत्ता में आ सके। इसके बाद भी देश पर सुन्नियों का शासन हुआ और उन शासकों में नादिर शाह तथा कुछ अफ़ग़ान शासक शामिल हैं। औपनिवेशक दौर में ईरान पर किसी यूरोपीय शक्ति ने सीधा शासन तो नहीं किया पर अंग्रेज़ों और रूसियों के बीच ईरान के व्यापार में दखल पड़ा। 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान की राजनैतिक स्थिति में बहुत उतार-चढ़ाव आता रहा है।
ईसा से सात सौ साल पहले ईरान के एक जनसमूह ने जो अपने को आर्य कहता था, एक बहुत बड़ा साम्राज्य बनाया था। यह पूर्व में सिंध नदी से लेकर पश्चिम में डनदुब नदी और उत्तर में अरल झील से लेकर ईरान की खाड़ी तक फैला हुआ था। इतिहास में इस साम्राज्य को ‘हख़ामनश साम्राज्य’ के नाम से याद किया जाता है। अंग्रेजी में इसे ‘अकामेनिडियन’ साम्राज्य कहते हैं। बड़े आश्चर्य की बात है कि यह अपने समय में तो महत्वपूर्ण था ही हमारे समय में भी इसका महत्व बना हुआ है। इस साम्राज्य के एक महान शासक दारुस प्रथम ( 486 ई.पू.) ने विश्व का पहला मानव अधिकार दस्तावेज़ जारी किया था जो आज भी इस दस्तावेज़ का महत्वपूर्ण है। 1971 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने अनुवाद विश्व की लगभग सभी भाषाओं में कराया था ओर यह बांटा गया था। दस्तावेज़ मिट्टी के बेलन जैसे आकार के पात्र पर खोदा गया था और उसे पकाया गया था ताकि सुरक्षित रहे। दारुस ने बाबुल की विजय के बाद इसे जारी किया था। कहा जाता है कि यह मानव अधिकारों संबंधी दस्तावेज़ फ्रांस की क्रांति (1789-1799 ई.) में जारी किए गए मानव अधिकार मैनेफ़ैस्टो से भी ज्यादा प्रगतिशील है।
पिरानशहर इरान में 8000 साल के इतिहास के साथ सबसे पुरानी सभ्यता मानी जाती है। शीराज़ सबसे अधिक करीब 4,000 साल पुराना शहर माना जाता है। शीराज़ का नाम शहर के दक्षिण-पश्चिमी कोने में 2000 ई.पू. के आसपास के क्यूनिफार्म शिलालेखों में वर्णित है। शीराज़ को कविता, साहित्य, शराब (ईरान के एक इस्लामी गणराज्य होने के बावजूद) और फूलों के शहर के रूप में जाना जाता है। 13वीं सदी में, शीराज़ अपने शासकों के प्रोत्साहन और कई फारसी विद्वानों और कलाकारों की मौजूदगी के कारण कला का प्रमुख केंद्र बन गया। यह ज़ेड वंश के दौरान 1750 से 1800 तक फारस की राजधानी भी रहा। ईरान के दो प्रसिद्ध कवि, हाफ़िज़ और सादी शीराज़ से हैं, जिनकी कब्रें शहर की सीमाओं के उत्तर की ओर हैं।
हाफिज़ का मकबरा संगमरमर का बना है। संसार का वह एक महान कवि वहां सो रहा है जो जीवन-भर अपनी प्रेमिका शाख़े नाबात, शीराज़ और अपने गुरु उत्तर के माध्यम से संसार को संबोधित करता रहा। हाफ़िज़ का पूरा नाम ख्वाजा शम्सउद्दीन मुहम्मद हाफ़िज़ शीराज़ी था। उनका जन्म 1310 ई. में हुआ था। हाफ़िज़ को मक़बरे के चारों तरफ़ बाग है। पानी की नहरें हैं, फ़व्वारे हैं, फूल हैं और पत्थर पर लिखी हाफ़िज़ की ग़ज़लें हैं। एक तरफ़ हाफ़िज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट हैं यहां कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर का चित्र देखा जिसमें वे हाफ़िज़ के मकबरे के सामने बैठे हैं। शीराज़ अपने इतिहास को सुनाता है। बाज़ारे वकील, शाहे चिराग़ का मक़बरा, बागे-इरम जैसी जगहें ईरानी वास्तुकला के श्रेष्ठ नमूने हैं। ‘हख़ामनश’ युग से ईरान के इतिहास में प्राय: महत्वपूर्ण रहा यह शहर 11वीं सदी में बग़दाद से टक्कर लेता था। तेरहवीं और चौदहवीं सदी में ऐसा माना जाता था कि शीराज़ इस्लामी संसार का सबसे बड़ा, सुंदर और आकर्षक शहर है। विश्व विख्यात पर्यटक इब्ने बतूता शीराज़ से बहुत प्रभावित हुआ था। इब्ने बतूता ने लिखा है- ‘शीराज पहुंचे जो दुनिया भर में मशहूर बहुत पुराना शहर है। इसकी श्रेष्ठता को सभी मानते हैं। इमारतें बहुत खूबसूरत और मज़बूत हैं। हर पेशे के लिए अलग-अलग बाज़ार है, जिनमें कोई और पेशा करने वाला नहीं बैठ सकता। यहां के लोग हसीन जमील, खुश पोशाक हैं। सारे पूर्व में दमिश्क ही ऐसा शहर है जो बाग़ों और हुनरमंदी में शीराज़ का मुक़ाबला कर सकता है, वरना कोई और शहर इसके सामने नहीं ठहरता. . .शहर को चारों तरफ़ से बाग़ों ने घेर रखा है शहर के अंदर से होकर पांच नहरें निकलती हैं। एक नहर रुकनाबाद कहलाती है, जिसका पानी बहुत मीठा होता है, सर्दी में गर्म होता है और गर्मियों में ठण्डा। इस नहर का चश्मा एक पहाड़ के किनारे है।’ अब नहरें सूख चुकी हैं। बाग उतने नहीं हैं। गर्मी में सूरज से शहर बहुत तपता है।
शीराज़ में 18वीं सदी में बनी वकील मस्जिद दिखने में बहुत आकर्षित है। इसके स्तंभों और टाइलों पर फूलों की शानदार नकाशी देखने लायक है। यदि आप शीराज़ जाएं तो वकील बाजार ज़रूर घूमकर आएं। यहाँ आप हैंडीक्राफ्ट, मसाले और कालीन खरीद सकते हैं। पर्सेपोलिस का अर्थ है पर्शियन सिटी। यह वास्तुकला की अर्कमेनिड शैली का उदाहरण देता है। यूनेस्को ने 1979 में पर्सेपोलिस के खंडहरों को वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया था। नासिर अल-मुल्क मस्जिद, जिसे पिंक मस्जिद भी कहा जाता है, शीराज़ में एक पारंपरिक मस्जिद है। सादी का मकबरा शीराज़ शहर के पर्यटन आकर्षणों में से एक है। सादी महान ईरानी कवियों में से एक हैं। उनकी कब्र पर नीला गुम्बद है। मकबरे के अंदर दीवारों के चारों ओर सादी की कविताओं के छंद लिखे हुए हैं। शाह चिराग मस्जिद को देखकर तो कोई भी उसका दीवाना हो जाएगा। मस्जिद के अंदर हर तरफ चमकीले पत्थर और शीशे गड़े हुए हैं जो इस जगह को आध्यात्मिक और संरचनात्मक रूप से अलग बनाता है।
राजधानी तेहरान बहुत खूबसूरत है। जब हवाई जहाज से शहर नज़र आता है तो एक ही रंग दिखाई देता है। मिट्टी का सा मटमैला रंग। इसी रंग के पहाड़ जिनके दामन में तेहरान बसा हुआ है, इसी रंग की इमारतें, इसी रंग की सड़कें और इसी रंग का मेहराबाद हवाई अड्डा। यह बात नहीं कि हरियाली नहीं है, वह है पर इतनी नहीं है कि शहर का रंग बदल सके। ईरान की पुरानी इमारतों में ‘टायल्स’ से की गयी कलाकारी यह सोचकर और भी चमत्कृत करती है कि सैकड़ों साल पहले भी कलाकार ईरान की प्राकृतिक एकरंगता को समझते थे और उसके साथ तारतम्य बिठाने वाले रंगों के ही ‘टायल्स’ की कला में प्रयोग करते थे। मुख्य रंग के साथ तारतम्य बैठाते हल्का-नीला, पीले रंग का एक गहरा शेड, हल्का हरा जैसे रंगों का प्रयोग ‘टायल्स’ में किया गया है। ये रंग मुख्य रंग के साथ आंखों को चुभते नहीं बल्कि भले लगते हैं।
यहां बना गोलेस्तान पैलेस क़ाजार वंश के समय का है। इस पैलेस में संगमरमर से बना सिंहासन कभी क़ाज़र वंश की गद्दी हुआ करता था। नेशनल ज्वेलरी म्यूज़ियम में क़ाज़र के कई राजाओं के गहने हैं, जबकि ईरान के नेशनल म्यूज़ियम में पैलियोलिथिक काल की कलाकृतियाँ हैं। तेहरान में दुनिया की सबसे ऊँची मीनार मिलाद टावर है।
खूबियों का देश: बाज़ार शब्द ईरानी है जो आज अंतर्राष्ट्रीय शब्द बन चुका है। यह देश केसर, कालीनों, पिस्ता, फलों आदि के लिए मशहूर है और अपनी जातीय विविधता के लिए भी जाना जाता है। तेहरान के बाज़ार तो इतने बड़े हैं कि उसे पूरा घूम पाना काफ़ी मुश्किल काम है।
पिछले सौ साल में तेहरान के चेहरे कई बार बदले हैं आज तेहरान राजनैतिक और बौद्धिक दृष्टि का केन्द्र है। राजधानियों की तरह तेहरान पर बेहिसाब धन व्यय किया गया है और किया जा रहा है जो साफ़ दिखाई पड़ता है। तेहरान जनसंख्या की दृष्टि से मुंबई से बड़ा शहर है। सड़कों और यातायात की व्यवस्था हमारे यहां के मुकाबले कहीं अच्छी है। शहर तीन तरफ़ पहाड़ों से घिरा है। बीच में अनगिनत बहुमंजिला इमारतों का विशाल क्षेत्र है।
तेहरान की सड़कों पर अगर इस्लाम दिखाई देता है तो लड़कियों/औरतों के हिजाब में या दीवारों पर लगे ऊंचे-ऊंचे धार्मिक पोस्टरों में। किसी भी नये आदमी को तेहरान की सड़कों के किनारे बनी विशाल इमारतों के ऊपर लगे बहुत बड़े चित्र अपनी ओर खींचते हैं। इसमें दो तरह के चित्र हैं। एक तो वे जो धार्मिक नेताओं विशेष रूप से अयातउल्ला खुमैनी के विचारों और उनके क्रियाकलापों को दर्शाते हैं। दूसरे वे हैं जो ईरान-इराक युद्ध; 1980-88 ई. से संबंधित हैं।
ईरान दो तरह के बाज़ारों के लिए प्रसिद्ध है। पहले वे बाज़ार हैं जो सड़कों के किनारे दुकानों में लगते हैं। तेहरान पहाड़ों के दामन में बसा हुआ है और ढलान उत्तर से दक्षिण की तरफ़ है। पहाड़ों से जो पानी के झरने फूटते हैं उनसे बहता पानी शहर के अंदर से होता नीचे तक पहुंचता है। यह पानी आमतौर साफ़ और ठण्डा होता है। इसके बहने के लिए फुटपाथ और सड़क के बीच चौड़ी और पक्की नालियां बना दी गयी हैं जिनसे पानी लगातार बहता रहता है। दुकानों के सामने फुटपाथ है, उसके बाद साफ़ और ठण्डे पानी की चौड़ी नालियां हैं। इसके पास चिनार के पेड़ और फिर सड़क है। कहीं-कहीं सड़क के बीच में भी चिनार के पेड़ और छोटे-छोटे पार्क है। पानी और हरियाली इरान के बाज़ारों को एक श्रेष्ठता प्रदान करते हैं। पुराने शहरों जैसे इस्फ़हान आदि में पेड़ों, पानी, पार्कों के साथ-साथ पुरानी दुकानों में ‘टायल्स’ से की गयी कलाकारी और इमारतों की बनावट, दरों और दीवारों पर किया गया ‘टायल्स’ के बेल बूटे और दूसरे आकार बाज़ारों को अलौकिक बना देते हैं। कुछ साल पहले तक और कुछ शहरों में अब भी दुकानों के सामने बहने वाले साफ़ पानी के ऊपर तख्त रख दिए जाते हैं, उन पर कालीन बिछा दिए जाते हैं यहां बैठकर कबाब खाये जा सकते हैं और चाय पी जा सकती है। इस्लामी क्रांति आने से पहले वाइन या विस्की का भी चलन था लेकिन अब यहां पूरी तरह शराबबंदी है। हुक्का पिया जा सकता है जो तेहरान में इतना प्रचलित नहीं जितना अन्य शहरों में है।
दूसरी तरह की बाजारें इमारतों के अंदर है, हमारे देश में चूंकि सर्दी इतनी नहीं पड़ती इस वजह से ऐसी बाजारें शायद नहीं बनती। आमने-सामने बनी दुकानों के ऊपर छत होती है जो ठण्डी हवा और बर्फ़ से बचाती हैं। दुकानें एक लाइन में होती है इस तरह छत पूरे बाजार पर होती है तेहरान में इस तरह की एक बाज़ार विश्व की सबसे बड़ी बाज़ार मानी जाती है। इस बाज़ार में आप चले जायें तो लगता है कि एक लंबी सड़क और उसके दोनों तरफ़ दुकानें हैं। सड़क पर भी छत है। छत की बनावट ईंटों के रोचक और खूबसूरत जुड़ाव की वजह से बहुत दर्शनीय हो जाती है। बाज़ार चौराहों पर चार तरफ़ बंट जाती है। छत वाली सड़कों पर कारें और दूसरे वाहन भी लाये ले जाये जाते हैं। पर प्राय: लोग पैदल ही नज़र आते हैं। इस तरह की बाजारें ईरान के सभी पुराने शहरों में हैं।
ईरान की सड़कों और बाज़ारों में दुकानों के नामों के विज्ञापन और दूसरे व्यवसायिक विज्ञापनों के बोर्ड इतने कलात्मक होते हैं कि कहना ही क्या। ऐसी डिज़ाइन, ले-आउट, ग्राफिक वर्क, रंगों का समायोजन, संक्षिप्तता अगर और कहीं देखने को मिलती है तो पश्चिमी योरोप या अमेरिका में। ईरान में किताबों के ‘कवर’ , नाटक के पोस्टर , फिल्म के इश्तिहार भी बहुत कलात्मक होते हैं। इसकी पहली वजह तो शायद यह है कि फ़ारसी में ‘कैलीग्राफ़ी’ अर्थात ‘खत्ताती’ की कला बहुत विकसित है और दूसरे यह कि फ़ारसी लिपि के लेखन में तरह-तरह के प्रयोग किए जा सकते हैं। तीसरी वजह यह है कि लिखावट की कला हज़ारों साल से चली आ रही उत्कृष्ट कला परंपरा है।
तेहरान विश्वविद्यालय देश के बुद्धिजीवियों का गढ़ माना जाता है। राष्ट्रीय चेतना के विकास और साम्राज्यवादी शक्तियों से संघर्ष के इतिहास में भी तेहरान विश्वविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। शाह विरोधी आंदोलन और सुधारवादी प्रवृत्तियों की शुरुआत भी यहीं से हुई थी। इसमें शक नहीं कि तेहरान विश्वविद्यालय देश की नब्ज़ है। एक ज़माना था जब वहां वामपंथ का ज़ोर था, लेकिन अब ऐसा नहीं है, यह जरूर है कि इस्लामी क्रांति के बाद जो उदारवाद की लहर आयी है उसके सूत्र भी तेहरान विश्वविद्यालय में मिलते हैं।
ईरान में रंगमंच का भी इतिहास बहुत पुराना है। ‘कॉमिक एंरटेनमेंट’ पर केन्द्रित नाट्य विधाएं ईरान में इस्लाम आने से पहले प्रचलित थीं जिन्हें ‘बक्फालबाज़ी’, ‘तख्त हाउज़ी’, ‘सियाहबाज़ी’, ‘ख्यालबाज़ी’, ‘ख़ेमाशबाज़ी’ के नाम दिए गए थे। इन सबकी अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। इसके अतिरिक्त ‘कठपुतली’ का तमाशा भी ईरान की लोकनाट्य शैलियों में है। इन लोक नाट्य शैलियों की कथावस्तु घरेलू झगड़े, प्रेमियों का संघर्ष, धनवान और गरीब की लड़ाई आदि हुआ करते थे। प्राय: नाटक लिखे हुए नहीं होते थे और इनका प्रमुख उद्देश्य समाज व्यवस्था की आलोचना करना और मखौल उड़ाना ही होता था।
तेहरान से 340 किलोमीटर दक्षिण में इस्फ़हान सैकड़ों वर्षों तक ईरान की राजधानी था। आज राजधानी न होते हुए उसकी हैसियत राजधानी से कम नहीं है। एक ज़माने में इस्फ़हान के बारे में कहा जाता था यह शहर ‘आधी दुनिया’ है इस्फ़हान का सही या मूल उच्चारण निस्फ़ (आधा) और जहान (संसार) है। मतलब यह कि इस्फ़हान देखने का मतलब था कि आधी दुनिया देख ली और आधी दुनिया ही देख पाना असंभव जैसा था उस युग में। ईरानी संस्कृति तेहरान में नहीं बल्कि इस्फ़हान की रगों में धड़कती है। शहर में अतीत का गौरव ही नहीं बल्कि वर्तमान का सौंदर्य भी है। कला और संस्कृति के क्षेत्र, फिल्म और साहित्य के मैदान में, संगीत और स्थापत्य कला में आज इस्फ़हान आगे है। यहां बाज़ारों में घूमते हुए उस इतिहास को महसूस किया जा सकता है जिसके कारण इस्फ़हान को आध संसार कहा जाता था। सैकड़ों श्रेष्ठ ऐतिहासिक इमारतों, दसियों बाग़ों और प्राचीन बाज़ारों को अपने अंदर समेटे यह शहर क़दम-क़दम पर चौंका देता है। सड़क पर चलते हुए पेड़ों के झुरमुट के पीछे किसी पुरानी इमारत का ऐसा फ़ाटक दिखाई पड़ता है कि पैर अपने आप ठहर जाते हैं। लगता है कि कुछ भी ऐसा नहीं है जिसके पीछे गहरी कलात्मक दृष्टि न हो। दुकानों के बोर्ड और इश्तिहार तक कला कृतियों जैसे लगते हैं। यही वजह है कि यूनेस्को ने इस शहर को विश्व धरोहर की मान्यता दी है।
(आलेख के कुछ अंश वरिष्ठ कवि व लेखक असग़र वजाहत के ईरान यात्रा संस्मरण से लिए गए हैं)
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