Monday, May 20
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किश्तवाड़-किल्लर: आपकी हिम्मत का इम्तिहान लेता रास्ता

कश्मीर में पश्चिमी सीमा पर कामन चौकी से लौटते हुए हम गढ़वाल के उत्तरकाशी में अपने घर जाने के लिए वादियों को पार करने के इरादे से पूर्व की तरफ बढ़ लिए। लेकिन श्रीनगर को पार करने के बाद हम बनिहाल और जवाहर टनल पार करके जम्मू की तरफ जाने के बजाय अनंतनाग और किश्तवाड़ की तरफ मुड़ लिए। अछबल में हम चिनार के पेड़ों के साये तले बने उस शानदार बगीचे में थोड़ा ठहरे जो कभी नूरजहां की सैरगाह हुआ करता था।

अछबल का खूबसूरत नजारा

रात में हम कोकरनाग में सीआरपीएफ के कैंप में रुके। कोकरनाग अपने पानी के सोतों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इन्हीं का पानी वहां बने शानदार बोटैनिकल गार्डन को सींचता है। अगले दिन अल्लसुबह रवाना होकर हमने राष्ट्रीय राजमार्ग 1बी पकड़ लिया। उसी से हम 3748 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सिंथन टॉप पहुंचे। सिथंन टॉप तक का रास्ता बहुत बढिय़ा था, काली पक्की सड़क। टॉप के बाद जाकर दूसरी तरफ नीचे उतरते हुए सड़क कच्ची हो गई। तेज हवा में धुंध घूमती हुई उड़ी जा रही थी। जुलाई के आखिरी दिन होने के बावजूद बर्फ के काफी निशान आसपास मौजूद थे। लगभग 15 किलोमीटर के सफर के बाद हम आईटीबीपी की चेकपोस्ट पर पहुंचे। आसपास थोड़े ढाबे थे। इस जगह को सिंथन मैदान कहा जाता है। एक आदमी तंदूर में ताजे बन व ब्रेड सेक रहा था। लवासा, गिरदा और बाकरहनी कश्मीर में मिलने वाली बेक की गई ब्रेड में लोकप्रिय हैं। वहां लगभग हर गांव में कोई न कोई बेकरी मिल जाएगी। हमने गिरदा के साथ खालिस कश्मीरी चाय पी। आगे के रास्ते के लिए भी हमने थोड़ी गिरदा और लवासा अपने साथ रख ली और किश्तवाड़ की ओर बढ़ चले।

सिंथन मैदान में एक बेकरी

बंदरकूट के रास्ते में खूबसूरत छतरू नदी के किनारे का नजारा बेहद आकर्षक है। पहले ही मामूली ट्रैफिक आगे जाकर और कम हो जाता है, जिससे सफर का आनंद थोड़ा बढ़ जाता है। किश्तवाड़ शहर सिंथन से 83 किलोमीटर की दूरी पर है और रास्ता भी कमोबेश ठीक-ठाक है। किश्तवाड़ पद्दर घाटी में है। उत्तर में कश्मीर व झंस्कार हैं। यहां से चेनाब नदी जम्मू की तरफ दक्षिण में मुड़ जाती है। यह इलाका कुदरत की खूबसूरती से लबरेज है। इधर-उधर कई रास्ते व ट्रैकिंग रूट निकल जाते हैं जिनपर या तो आप दिन भर की मस्ती के लिए जा सकते हैं या फिर लंबे रोमांच पर। रात हमने कम भीड़भाड़ वाली पद्दर रोड पर होटल स्नो वैली में गुजारी।

सिंथन टॉप के रास्ते का नजारा

किश्तवाड़ शहर (1634 मी) अपने आपमें कोई खूबसूरत नहीं। हम शहर में घुसे और एक मैदान के किनारे-किनारे आगे बढ़े जिसमें कुछ सालों पहले की एक घटना के निशान के बतौर कई जले हुए वाहन खड़े थे। रास्ते में एक छोटे से रेस्तरां में हमने नाश्ता किया, रास्ते की थोड़ी पड़ताल की और ऐतिहासिक हिमालयी रास्ते पर आगे बढ़ गए। लगभग 70 किलोमीटर तक हम गुलाबगढ़ तक चेनाब के किनारे-किनारे चलते रहे। सड़क अच्छी थी इसलिए हम तेजी से बढ़ते गए ताकि आगे कुख्यात कच्चे रास्ते को पार करने के लिए थोड़ा समय मिल सके।

ये है सिंथन टॉप

सड़क के इस हिस्से का बहुत कम ही इस्तेमाल आता है इसलिए सड़क का रखरखाव भी नहीं है। इसका इस्तेमाल बस मछेल यात्रा के समय ही होता है जब हिमाचल प्रदेश और कश्मीर से श्रद्धालु मछेल देवी की पूजा के लिए आते हैं। सड़क को पहाड़ की चट्टानी सतह में से काटा गया है। पहाड़ के ढलान पर एक दरार सरीखी सड़क आगे बढ़ती जाती है और दूसरी तरफ सैकड़ों फुट नीचे खड़ी खाई में चेनाब नदी अपने पूरे प्रवाह में बहती रहती है। जाहिर है, चलते समय चूक की कहीं कोई गुंजाइश नहीं होती। पूरे रास्ते में इस तरह से चलना होता है कि कहीं कोई अड़ंगा न लगे। एक पल के लिए भी ध्यान अगर चूक जाए तो पहिया फिसल जाए, या कोई नाला पार करने में लापरवाही हो जाए या कोई सड़क पर बीच में खड़े पत्थर पर ध्यान न जाए तो नीचे गहराई में उफनती चेनाब नदी तक लुढ़क जाने का खतरा हो सकता है। यह इलाका पूरे साल भर वीरान रहता है। ऐसे में अगर आपका वाहन किसी गड़बड़ी की वजह से अटक भी जाए तो आपको लंबे समय तक फंसना पड़ सकता है।

धुंध में घिरा किश्तवाड़ जाने का रास्ता

गुलाबगढ़ से तियारी का रास्ता 20 किलोमीटर का है। तियारी से एख खड़ा ट्रैक इश्तियारी गांव की तरफ जाता है। दरअसल इस रास्ते का असली बीहड़ सफर तो तियारी के बाद ही शुरू होता है। आपको रास्ते में न खाना मिलेगा, न चाय और न कोई नाश्ता। इसलिए बेहतर होगा कि खुद को सफर के लिए तैयार रखिए। हमने आखिरी चाय तियारी में पी औ्र वह भी तब मिली जब हमें चाय के लिए परेशान देखकर किसी आदमी ने अपने घर से चाय बनाकर हमें पिला दी। उस आदमी ने हमें चेताया कि इस रास्ते पर जाकर हम बहुत जोखिम ले रहे हैं, लेकिन जब किल्लर जाने के लिए इस रास्ते पर चलने का रोमांच हिलोरे ले रहा हो ऐसी चेतावनियों पर कौन ध्यान देता है।

चेनाब पर बनी दुलहस्ती परियोजना

क्या करें

इस रास्ते पर चलने के लिए हर-रास्ते का वाहन या कोई एसयूवी ले लें। दोपहिया वाहन बेहतर रहेंगे।

अपने साथ पर्याप्त मात्रा में खाना व पानी रखें

अपने वाहन के जरूरी स्पेयर पाट्र्स साथ में रखें और ध्यान रखें कि सफर पर जाने से पहले आपके वाहन की सर्विसिंग और पूरा चेकअप हुआ हो।

इस रास्ते पर तभी सफर करें जब आप अपने भीतर हिलोरे ले रहे रोमांच को काबू में न कर पा रहे हों।

बच्चों के साथ इस रास्ते पर सफर न करें तो बेहतर।

यह यकीनन दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में से एक है। खास तौर पर उनके लिए रहा होगा जिन्होंने इन सख्त चट्टानों को चीरकर इन रास्तों को बनाने का कष्टसाध्य काम किया। पहाड़ में कुरेद दिए गए कई लंबे सर्पाकार रास्तों पर यहां बेहद दुष्कर चढ़ाई है। सड़क बमुश्किल इतनी ही चौड़ी है कि एक वाहन उस पर से निकल सके। हम सामने से आते हुए वाहन दो बार मिले। लेकिन किस्मत से दोनों ही बार उस समय मिले जब सड़क का सबसे संकरा हिस्सा खत्म हो गया था। अगर उसके अलावा कहीं आमना-सामना हुआ होता तो वह बिलकुल मेक्सिकन अंदाज का फंसान हो जाता और दोनों से किसी एक वाहन को रिवर्स करना होता। एक तरफ तो बिलकुल पहाड़ से रगड़ कर चलना होता और दूसरी तरफ से उस खड़ी गहरी खाई से बचकर जिसमें संभवतया भारत की सबसे तेज गति से बहती नदियों में से एक उफान पर थी।

खूबसूरत लेकिन खतरनाक रास्ता

इस जोखिम के बावजूद पांगी रेंज के नाम से पहचाने जाने वाले इस मध्य-हिमालयी इलाके का आनंद अलग ही है। रास्ते में कई झरनों से होकर गुजरना होता और उनका प्रवाह इतना तेज होता है कि गाड़ी एक झटके में धुलकर साफ हो जाती है। इस रोमांच को न तो तस्वीरों में दिखाया जा सकता है और न ही शब्दों में इस ‘कातिल रास्ते’ का रोमांच बयां किया जा सकता है। तियारी के बाद रास्ते के कई हिस्से तो मानो पानी से होकर गुजरते हैं। नाले में कम से कम आधे पहिए पानी में डूबे  रहते हैं।

तियारी की तरफ जाने का रास्ता

हमारा अगला पड़ाव संसारी नाला था। यह जम्मू-कश्मीर की आखिरी चौकी है और हिमाचल प्रदेश की पहली। पांगी घाटी का कच्चा रास्ता अब नालीदार रास्ते में तब्दील हो रहा था। कई जगहों पर तो यह रास्ता इतना खराब था कि गाड़ी को पहले गियर से दूसरे गियर में नहीं डाला सकता था। कई हेयरपिन मोड़ तो इतने तीखे हैं कि तीन-चार गाड़ी को आगे-पीछे करके ही गाड़ी को पूरी तरह से मोड़ा जा सकता था। ऐसे रास्तों पर चलने के लिए ऊंचे ग्राउंड क्लीयरेंस वाले वाहन जरूरी हैं। सफर खत्म करने के बाद मजबूत से मजबूत गाड़ी के लिए भी व्हील अलाइमेंट फिर से दुरुस्त करना जरूरी हो जाता है। हमारी गाड़ी के बढिय़ा ग्राउंड क्लीयरेंस के बावजूद हमें 15 किलोमीटर का रास्ता तय करने में लगभग तीन घंटे का समय लग गया। बीच में कई बार तो कार में बैठे लोग कार से उतरकर साथ-साथ पैदल चलने लगते क्योंकि वह कार में बैठने से ज्यादा आरामदेह था। जाहिर है कि सबसे ज्यादा मुश्किल तो कार चलाने वाले की थी।  यह बड़ा तकलीफदेह सफर था।

तियारी से संसारी का रास्ता

रास्ता कितना भी कच्चा, नालीदार, पथरीला, खड़ा दुष्कर क्यों न हो, रास्ते का नजारा मंत्रमुग्ध करने वाला था। खड़े पहाड़, झरने और नालों को छोड़ भी दें तो कई जगहों पर तस्वीरें उतारने के लिए रुकने का मोह छोड़ा नहीं जा सकता था। कई बार शरीर को रास्ते की हलचल से आराम देने के लिए भी रुकना पड़ता था। किल्लर से थोड़ा पहले ही एक दोराहा है जो वहां से 38 किलोमीटर दूर सच पास के लिए जाता है। नदी की दूसरी तरफ ऊपर सच पास दिखाई भी देता है। सच पास हिमालय के सबसे मुश्किल दर्रो में से एक है। उसके दूसरी तरफ सड़क पर 130 किलोमीटर का खड़ा ढलान है जो लगभग 3400 मीटर नीचे चंबा (1000 मीटर) तक उतरता है। इसे सबसे रोमांचक ढलानों में से एक कहा जा सकता है।

दिल्ली से किश्तवाड़ की दूरी: 775 किलोमीटर

किश्तवाड़ से किल्लर: 118 किलोमीटर सफर में लगा वक्त: 9 घंटे

निकवर्ती हवाईअड्डा: जम्मू में सतवारी

जाने का सबसे उपयुक्त समय: जून-अक्टूबर

किश्तवाड़ के पास रुचि की अन्य जगहें: अछबल, कोकरनाग, सिंथन पास

किल्लर के पास रुचि की अन्य जगहें: उदयपुर, किब्बर, कांगला झंस्कार, सच पास

संसारी में बना पुल

किल्लर में हमें दो होटलों का पता चला। शायद एक और रहा होगा। किल्लर पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई थी। दिनभर के सफर में शरीर हिल गया था। मल कर रहा था कि बस खाएं, बीयर पिएं और जल्द से जल्द सो जाएं। बाद में हमें पता चला कि किल्लर में रुकने की सबसे बढिय़ा जगह पीडब्लूडी का गेस्ट हाउस है। अगली सुबह हमने उदयपुर के लिए 73 किलोमीटर का रेंगता हुआ सफर शुरू किया। पांगी घाटी उसके बाद एक संकरी खाई में तब्दील हो जाती है। दोनों तरफ खड़े पहाड़ हैं। सड़क के कई हिस्से वहां भी सीधे चट्टानों में से काटे गए हैं। किल्लर से 12 किलोमीटर आगे मडग्राम नाला है जो बहुत चौड़ा है। मानसून के महीने में उसे पार करना लगभग नामुमकिन है। मध्य-जून के बाद उसे पार करने की सलाह नहीं दी जाती। जुलाई में तो उसे पार करना मूर्खता है और उसके बाद आत्मघाती।

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