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कृष्णा व गोदावरी की गोद में कोलेरु

आंध्र प्रदेश की कोलेरु बर्ड सैंक्चुअरी को भारत में पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में माना जाता है

कोलेरु मीठे पानी की विशाल झील है। दरअसल इसकी गिनती एशिया में मीठे पानी की सबसे बड़ी उथली झीलों में होती है। यह आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित है। झील गोदावरी नदी और कृष्णा नदी के डेल्टाओं के बीच है। इस छिछली और दीर्घ वृत्ताकार आकृति की झील का स्वरूप मानसून के समय लगभग 250 वर्ग किलोमीटर व्यास तक विस्तृत हो जाता है। दरअसल यह झील दोनों नदियों के बाढ़ के पानी को प्राकृतिक रूप से समायोजित करने का काम करती है।

कोलेरु झील 63 तरह की मछलियों, मीठे पानी के कछुए और अन्य जलचरों का घर है। इस झील में बड़ी संख्या में झींगा भी होते हैं। स्थानीय मछुआरे उन्हें पकड़कर बाजार में बेचते हैं। लेकिन सबसे खास बात यह है कि छिछली झील होने के कारण इसके आसपास का नम इलाका प्रवासी पक्षियों का गढ़ बन जाता है। इस पक्षी विहार में पानी की औसत गहराई चार मीटर की है। यह नम इलाका दरअसल कोलेरु पक्षी अभयारण्य का हिस्सा है। इस तरह इस पक्षी अभयारण्य में 673 वर्ग किलोमीटर का इलाका आता है। इसका कुछ हिस्सा कृष्णा जिले में आता है तो कुछ हिस्सा पश्चिमी गोदावरी जिले में। इसीलिए भले ही आम लोगों में यह भारत की बाकी बर्ड सैंक्चुअरियों की तरह लोकप्रिय न हो लेकिन पक्षी प्रेमियों के लिए यह उनकी पसंदीदा जगहों में से एक है। नवंबर 1999 में इसे अभयारण्य का दर्जा दे दिया गया था। दरअसल कोलेरु झील के नम इलाके को 2002 में अंतरराष्ट्रीय महत्व के लिहाज से रामसर कनवेंशन का हिस्सा बना लिया गया था।

यहां दूर दराज से प्रवासी पक्षी आते हैं- आस्ट्रेलिया, मिस्र, साइबेरिया और यहां तक कि फिलीपींस से भी। पक्षी यहां आते हैं और घोंसले बनाते हैं, अंडे देते हैं और बच्चों को बड़ा करते हैं और सीजन खत्म होने पर बच्चों के साथ वापस उड़ जाते हैं। फिर अगले सीजन में यही प्रक्रिया दोहराई जाती है। इसीलिए इन प्रवासी पक्षियों को देखने का सबसे बेहतरीन समय सर्दियों का ही है। वैसे इस झील को देखने के लिए पूरे सालभर जाया जा सकता है। बताया जाता है कि सीजन में हर साल लगभग दो लाख पक्षी इस झील में आकर डेरा डालते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यहां लगभग दो सौ किस्म के पक्षी डेरा डालते हैं।

यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों में ग्रे या स्पॉट बिल्ड पेलिकन, गारेनीज, टील, पोचार्ड, स्पॉट बिल, ब्राह्मणी बत्तख, ओपन बिल स्टॉर्क, हेरॉन, फ्लेमिंगो आदि शामिल हैं। यहां के स्थानीय निवासी पक्षियों में ग्रे पेलिकन, एशियाई ओपन बिल्ड स्टॉर्क, पेंटेट स्टॉर्क, ग्लॉसी आइबिस, सफेद आइबिस, टील, पिनटेल, शोवलर, आदि शामिल हैं। रेड-क्रेस्टेज पोचार्ड, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट्स,  एवोसेट, कॉमन रेड शैंक, वीजन, गैडवेल, कॉरमोरेंट आदि भी यहां अक्सर दिख जाते हैं। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार सीजन में यहां लगभग 6000 स्पॉट बिल्ड पेलिकन, 5000 पेंटेट स्टॉर्क और 5000 एशियाई ओपनबिल्ड स्टॉर्क पहुंच जाते हैं। बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी ने इसकी पहचान महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के तौर पर की है।

खास बात यह भी है कि जिस तरह से यहां चारों तरफ से प्रवासी पक्षी आकर डेरा डालते हैं, उसी तरह पक्षी प्रेमी भी इस पक्षी विहार में चारों तरफ से पहुंच सकते हैं। यानी कोई एक मुख्य इलाका नहीं और किसी एक जगह पर सैलानियों की भीड़ जमा होने का खतरा भी नहीं। हरा-भरा इलाका और झील का विस्तार इसे मनमोहक बना देता है।

इस पक्षी विहार में आप नाव से सैर कर सकते हैं और पक्षियों को नजदीक से देखने का आनंद ले सकते हैं। उसके अलावा इस अभयारण्य में कई वॉच टावर भी बने हैं। सैलानी इनपर चढ़कर परिंदों और विहार का विहंगम नजारा ले सकते हैं। इस अभयारण्य में एक खास तरह की घास होती है जो दस फुट की ऊंचाई तक पहुंच जाती है। यह घास कई तरह के पक्षियों की भी शरणस्थली है। यहां और भी कई तरह की वनस्पतियां पैदा होती हैं।

कई हैं खतरे

कोलेरु झील के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोग अपने भरण-पोषण के लिए मछली-पालन, खेती और बत्तखें पालने का काम किया करते हैं। लगभग तीस-पैंतीस साल पहले तक ये तमाम गतिविधियां पारंपरिक तरीकों पर आधारित थीं जो झील की जैव-विविधता को किसी भी तरह से खतरा नहीं पहुंचाती थी।  बड़ी संख्या में लोग बत्तखें पालते थे- हरेक के पास कुछ सौ से लेकर हजारों बत्तखों तक के झुंड होते थे। बत्तखें पारंपरिक रूप से कोलेरु के दलदली इलाकों और झील के आसपास के धान के खेतों से भोजन लेती थीं। रात में उनका ठिकाना धान के खेतों में होता था। वहां उनका मल झील में मछलियों की आबादी बढ़ाने में सहायक होता था। पहले यहां से ट्रक भर-भरकर अंडे पश्चिम बंगाल तक जाया करते थे। लेकिन अब बत्तख पालन का काम काफी गट गया है। लेकिन इस झील के सामने अब अवैध मछली टैंक एक बड़ा खतरा हैं। झील में पानी का निरंतर कम होता प्रवाह भी चिंता का विषय है। ऊपर से आसपास के इलाकों से सीवेज व औद्योगिक प्रदूषक बड़ी संख्या में झील में आकर गिर रहे हैं। अभयारण्य का इलाका भी करने की कोशिश हो रही है जिसका कई पक्षियों पर प्रभाव पड़ेगा।

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