नल सरोवर भारत में ताजे पानी के बाकी नम भूमि क्षेत्रों से कई मायनों में भिन्न है। सरदियों में उपयुक्त मौसम, भोजन की पर्याप्तता और सुरक्षा ही इन सैलानी पक्षियों को यहां आकर्षित करती है। सरदियों में सैकड़ों प्रकार के लाखों स्वदेशी पक्षियों का जमावड़ा रहता है। इतनी बड़ी तादाद में पक्षियों के डेरा जमाने के बाद नल में उनकी चहचाहट से रौनक बढ़ जाती है। सितंबर 2012 में इसे अंतरराष्ट्रीय महत्व का रामसर नम भूमि क्षेत्र के रूप में घोषित कर दिया गया था।
नल में इन्हीं उड़ते सैलानियों की जलक्रीड़ाएं व स्वर लहरियों को देखने-सुनने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक यहां प्रतिदिन जुटते हैं। पर्यटकों के अतिरिक्त यहां पक्षी विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, शोधार्थी व छात्रों का भी जमावड़ा लगा रहता है तो कभी-कभार यहां पर लंबे समय से भटकते ऐसे पक्षी प्रेमी भी आते हैं जो किसी खास पक्षी के छायाचित्र भी उतारने की तलाश में रहते हैं।
अनूठा है नल
नम भूमि क्षेत्र नल सरोवर अपने दुर्लभ जीवन चक्र के लिए जाना जाता है जिस कारण यह एक अनूठी जैवविविधता को बचाए हुए है। नल का वातावरण अनेक प्रकार के जीव जन्तुओं के लिए उपयुक्त है और एक भोजन श्रृंखला बनाता है। मूलत: यह वर्षा जल पर आश्रित एक नम क्षेत्र है। गर्मी में जब यह सरोवर सूखने के कगार पर होता है तो मानसूनी वर्षा इस सरोवर को नई जिंदगी देती है। इसके जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा इसे लबालब कर देती है। बरसात की समाप्ति के बाद लगभग मृत प्राय: इस सरोवर में धीरे-धीरे जिंदगी पटरी पर लौटने लगती है। प्रारंभ में पहले इसमें सूक्ष्मजीव पैदा होते हैं उसके बाद छोटे कीट-पतंगे पैदा होते हैं या आस-पास से आकर यहां शरण लेते हैं। वातावरण की अनुकूलता के साथ आस-पास से व जमीन में बचे रह गए अंडों से कई प्रकार का जलीय जीवन तेजी से विकसित होता है। इनमें अनेक प्रकार की मछलियां उत्पन्न होने लगती हैं जिनकी संख्या तेजी से बढऩे लगती है। मछलियों का लालच पक्षियों को यहां आकर्षित करता है। आरंभ में यहां छोटे पक्षी ही आते हैं किन्तु जब नवंबर में मछलियां बड़ी हो जाती हैं तो भोजन की प्रचुरता व उचित वातावरण पाकर प्रवासी जल पक्षी भी यहां आने लगते हैं। दिसंबर व जनवरी में इनकी संख्या अधिकतम होती है।
फरवरी के अंत में नल में भोजन व जलस्तर में कमी व गर्मी के बढऩे के चलते मेहमान पक्षी अपने मूल घरों को लौटने लगते हैं। मार्च में जब क्षेत्र में पारा 40 डिग्री तक पहुंच जाता है तो नल के जल स्तर तेजी से कम होने लगता है। मई का अंत आते सरोवर का क्षेत्रफल पानी के सूखने से काफी कम हो जाता है। इससे उसमें मौजूद जीवन समाप्त प्राय: होने लगता है। गर्मी के बाद प्रकृति बदलती है और एक बार फिर से वही जीवन चक्र शुरू हो जाता है। नल एक खास प्रकार की जैवविविधता को बचाये है। इस सरोवर में पिछली पक्षी गणनाएं बताती हैं कि नल में पक्षियों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है।
कल का सागर आज का सरोवर
गुजरात के अहमदाबाद व सुंदर नगर जिलों से सटा नल सरोवर अभयारण्य अहमदाबाद से लगभग 65 किमी की दूरी पर है। सरोवर क्षेत्र में छोटे-बड़े कुल 300 तक टापू हैं जिनमें से 36 ऐसे बड़े टापू है जिनके अपने स्थानीय नाम हैं। नल की संरचना के बारे में भूगर्भवेताओं का मानना है कि जहां पर आज नल सरोवर है वह कभी समुद्र का हिस्सा था जो खंभात की खाड़ी को कच्छ की खाड़ी से जोड़ता था। भूगर्भीय परिवर्तनों से जब समुद्र पीछे चला गया तो यह एक बन्द संरचना में बदल गया। वर्षाकाल में जब यह भर जाता है तो 120 वर्ग किमी क्षेत्रफल की विशाल उथली झील में बदल जाता है। आकार में तब भले ही यह विशाल लगता हो किंतु इस सरोवर की गहराई अपने सर्वाधिक विस्तार के समय भी 2.5 मीटर से अधिक नही होने पाती है। इसका कारण यह है कि इससे अधिक मात्रा में जल इस बेसिन से बाहर बह निकलता है। शीतकाल आते-आते यह स्तर घट कर 1 से 1.5 मीटर तक रह जाता है।
क्या और कैसे देखे
नल सरोवर का परिवेश विशिष्ट प्रकार की वनस्पतियों, जल पक्षियों, मछलियों, कीट पतंगों व जीव-जंतुओं की शरण प्रदान करता है। 1969 में अभयारण्य का दर्जा मिलने के बाद से उठाए गए कदमों से इसमें मेहमान विदेशी व स्वदेशी पक्षियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है कभी कुछ हजार तक सीमित रहने वाली संख्या आज 2.5 लाख प्रतिवर्ष से ऊपर ही है। सरोवर क्षेत्र में 225 प्रकार के मेहमान पक्षी तक देखे गए हैं जिनमें से सौ प्रकार के प्रवासी जल पक्षी हैं। इसके अतिरिक्त सरोवर क्षेत्र में 19 प्रकार की मछलियां,11 प्रकार के सरीसृप, 13 स्तनपायी जानवर मिलने का पता चला है। इनमें से कुछ को घूमते हुए देखा भी जा सकता है। इन पक्षियों में हंस, सुर्खाब, रंग-बिरंगी बतखें, सारस, स्पूनबिल, राजहंस, किंगफिशर, प्रमुख हैं। इनकी बड़ी संख्या आपको सरोवर क्षेत्र में विचरित करती मिल जाएगी। कई बार यहां पर ऐसे पक्षी भी देखे गए हैं जिनको दुर्लभ की श्रेणी में रखा गया है।
सरोवर में मौजूद पक्षियों की जिंदगी में मानवीय आवागमन से अधिक हस्तक्षेप न हो इसके लिए एक निश्चित मार्ग से इस सरोवर में घूमने की अनुमति है। यही कारण है कि जैसे ही आप नल सरोवर के करीब पहुंचते है एक गहरी निशब्दता का अहसास होता है। नल के इर्द-गिर्द ऐसी गतिविधियों की इजाजत नहीं है जिनसे पक्षियों के विचरण में खलल पहुंचता हो। शोर न हो इसलिए सरोवर में मोटरबोट पूर्णतया प्रतिबंधित है। सरोवर की सैर के लिए यहां पर बांस के चप्पुओं से खेने वाली नावें सबसे उपयुक्त हैं जो हर वक्त उपलब्ध रहती है। ये नावें अलग-अलग क्षमता वाली होती है। जैसे ही आप सरोवर में आगे बढ़ते है दूर-दूर मेहमान पक्षी नजर आने लगते हैं। पानी के अन्दर झांकने पर तलहटी में मौजूद जलीय जीवन भी आप देख सकते हैं। सरोवर में आपको निकटतम टापू तक ले जाया जाता है जिस तक आने जाने में दो से तीन घंटे तक लग जाते हैं। जाते समय पक्षियों की कलरव और नाव के पानी को चीरने की आवाज कानों को एक सकून सा प्रदान करती है।
सरोवर में नौका से भ्रमण से पहले अच्छा हो कि आप अभयारण्य प्रबन्धन द्वारा पार्क में लगे बोर्ड, अन्य डिस्प्ले माध्यमों से आगन्तुक पक्षियों व अभयारण्य के नक्शे आदि के बारे में जानकारी ले लें। अभयारण्य के प्रकाशनों से भी जानकारी ली जा सकती है। फिर भी अच्छा हो यदि नौका भ्रमण के समय एक गाइड भी साथ ले लें ताकि और जानकारी मिल सके। समीपवर्ती गांव के लोग ही यहां पर गाइड का काम करते हैं और एक विशेषज्ञ की तरह ही आपके प्रश्नों का उत्तर देते हैं।
यदि आप फोटोग्राफी के शौकीन हैं और यहां के पक्षियों की हलचल को कैमरे में कैद करना चाहते हैं तो इसके लिए आवश्यक है कि आपके पास टैलीलेंस युक्त कैमरा होना आवश्यक है। पक्षियों को करीब से देखने के लिए दूरबीन हो तो क्या बात है क्योंकि आगन्तुक पक्षी मनुष्य से कुछ दूरी बना कर रखते हैं। पर्यटक सरोवर के किनारे कुछ दूरी तक घुड़सवारी का आनंद भी ले सकते हैं।
कैसे पहुंचे
नल सरोवर आने के लिए आपको अहमदाबाद आना होता है जो देश के प्रमुख नगरों से अच्छी हवाई व रेल सेवा से जुड़ा है। वहां से बस या टैक्सी से नल सरोवर पहुंचा जा सकता है। साठ किमी दूरी को तय करने में डेढ़ घंटे लग ही जाते हैं। अभयारण्य की सीमा में गुजरात पर्यटन विकास निगम का एक गेस्ट हाउस है जो यहां पर एक रेस्तरां भी चलाता है। यहां पर रुक कर नल के शांत वातावरण का और लुत्फ लिया जा सकता है। एक दिन में यदि आप नल सरोवर के अलावा कुछ और देखना चाहते हों तो सरोवर की सैर के बाद 60 किमी दूर लोथल जा सकते है जहां सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष देखे जा सकते हैं और शाम में अहमदाबाद लौट सकते हैं।
अहमदाबाद एक आधुनिक नगर है जहां हर श्रेणी के पर्यटक के लिए हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध है। अहमदाबाद में रहकर कई स्थान देखे जा सकते हैं। गांधी जी के ऐतिहासिक आश्रम साबरमती के अलावा यहां अक्षरधाम मंदिर भी है। भारत की सबसे बड़ी साइंस सिटी अहमदाबाद में ही है। अहमदाबाद में कई मुगलकालीन दर्शनीय इमारतें भी हैं। यदि गुजरात की मेहमानवाजी, वहां के भोजन व संस्कृति से रूबरू होने का आपके पास कम समय है तो रात्रि में विशाला जा सकते हैं जहां पर आपको एक परिसर में सब कुछ देखने को मिल जाएगा।
(वरिष्ठ लेखक ललित मोहन कोठियाल ने कुछ समय पूर्व अपने असमय निधन से पहले यह लेख ‘आवारा मुसाफिर’ के लिए लिखा था।)
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