Sunday, November 24
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अनूठी नावों की अद्भुत रेस

यह लगातार तीसरा साल है जब केरल की नौका प्रतिस्पर्धाओं की पहचान माने जाने वाली नेहरु ट्रॉफी बोट रेस को स्थगित किया गया है। यह बोट रेस एक तरह से केरल के टूरिस्ट सीजन का आगाज़ मानी जाती है, लेकिन पहले 2018 में भीषण बाढ़ की वजह से और फिर 2019 में भी उसी के अंदेशे में आगे खिसकने के बाद इस साल कोविड-19 महामारी के कारण इसका आयोजन आगे खिसका दिया गया है। इसे इस साल 8 अगस्त 2020 को होना था, और यह इसका 68वां संस्करण होता। पिछले साल से केरल ने इस दौरान होने वाली तमाम नौका दौड़ों को मिलाकर एक चैंपियंस बोट लीग (सीबीएल) का ऐलान किया था जिसमें नेहरु ट्रॉफी से शुरू होकर नवंबर तक होने वाली कुल 12 नौका दौड़ों के लिए टीमों को उनके प्रदर्शन के आधार पर अंक मिले और अंत में सबसे ज्यादा अंक पाने वाली टीम सीबीएल विजेता बनी। इस साल सीबीएल का दूसरा सीजन होना था। फिलहाल, जब तक नौका दौड़ें फिर से शुरू हों, हम आपको ले चल रहे हैं नेहरु ट्रॉफी के यादों के सफर पर…

दिल मोहनेवाले लगभग 654 किलोमीटर लंबे समुद्र तटों, ताल-तलैयों, 44 से ज्यादा नदियों, झील-झरनों-नहरों, टीले-पहाडों, वन-पर्वतों और खेतों की हरियाली से समृद्ध केरल वाकई दुनियाभर के सैलानियों के लिए जन्नत सरीखा है। इसमें चार चांद लगाती हैं यहां की जल यात्राएं और जल-मेले।

चुण्डन नौकाएं सौ-सवा सौ फुट लंबी और साढ़े पांच-छह फुट चौड़ी होती हैं

मानसून के महीनों में जब केरल की नदियां, नहरें-नाले उमड़-घुमड़कर बहने लगते हैं, तो जलोत्सवों का मौसम भी शुरू होता है। केरल के उत्तर से दक्षिण तक बीसियों जल मेले आयोजित किए जाते हैं। इनकी शुरुआत चंपक्कुलम मूलं (नक्षत्र) के नौकोत्सव से होती है और आरन्मुला उत्तराषाढ़ (नक्षत्र) के नौकोत्सव के साथ ये संपन्न होते हैं।  इन जलोत्सवों में सबसे प्रमुख स्थान आलप्पुष़ा (आलप्पी) की पुन्नमडा झील में हर साल अगस्त महीने के दूसरे शनिवार को होने वाला ‘नेहरु ट्रॉफी बोट रेस’ का है। नाम से ही स्पष्ट है कि इस रेस का आयोजन देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के नाम पर किया जाता है।

हर साल इस जल मेले में 60-70 क्रीड़ा नौकाएँ हिस्सा लिया करती हैं। लेकिन इनमें से पन्द्रह-बीस ही चुण्डन नौकाएं होती हैं। इन चुण्डन नौकाओं की प्रतियोगिता में विजयी नौका को ही ‘नेहरु ट्रॉफी’ प्रदान की जाती है। चुण्डन नौकाएं सौ-सवा सौ फुट लंबी और साढ़े पांच-छह फुट चौड़ी होती हैं। इनमें 80 से लेकर 100 तक खेवैये होते हैं और उनके अलावा नाव के, अग्रभाग, मध्य भाग या पिछले भाग में दस-पंद्रह आदमी और रहते हैं। ‘ओडी’ अथवा ‘इरुट्टुकुत्ति’, ‘बेप्पु’, ‘चुरूलन’ आदि अन्य किस्मों की नौकाएं भी आयोजन में शामिल होती हैं। ये अपेक्षाकृत छोटी होती हैं और इनमें खेवैये भी तुलनात्मक रूप से कम रहते हैं- तकरीबन 30-40 तक। महिलाओं और छात्रों की क्रीड़ा नौकाएं भी प्रतियोगिताओं में शामिल होती हैं। प्रतियोगिताएं शुरू होने से पहले सभी नौकाएं मिलकर एक ‘मास ड्रिल’ पेश करती हैं जो बहुत ही आकर्षक होती है। उसके बाद अलग-अलग किस्मों की नौकाओं की विभिन्न पारियों में प्रतियोगिता होती हैं। प्रतियोगिता में विजयी चुण्डन नौका को ‘नेहरु ट्रॉफी’ प्रदान की जाती है और साथ ही उसे करीब दस लाख रुपये तक की इनामी राशि भी मिल जाती है।

सर्प नौका दौड़ें केरल के लिए बड़ा आकर्षण हैं

प्रतियोगिता के लिए झील के 4850 फुट के फासले को ये चुण्डन नौकाएं पांच मिनट या उससे कम समय में पार कर लेती हैं। कारिच्चाल चुण्डन ने 1982 में 4 मिनट 47.3 सेकेंड का कीर्तिमान स्थापित किया था लेकिन वेल्लंकुलगरा चुंडन ने बाद में उसे भंग कर चार मिनिट 42 सेकेंड का कीर्तिमान स्थापित किया। इन नौकाओं के नौजवान खेवैये जब अपनी मजबूत मांसपेशियों से पतवार जोर-जोर से पानी में फेंक-फेंक कर खेते हैं और नौका जल-अश्व की तरह पानी की सतह पर उडऩे-सी लगती हैं तो प्रतियोगिता की चरम घडिय़ों में दर्शकों की शिराएं भी तनाव से कसने-सी लगती है और यह एक अपूर्व अनुभूति बन जाती है। चंपक्कुलम, कल्लूपरंपन, आलंगाडन, कारिच्चाल, वेल्लंकुलंगरा, चेरुतना,  पायिप्पाटू, जवाहर तायंकरी, श्रीगणेशा आदि कुछ चुंडन नौकाएं हैं जिन्होंने हाल के सालों में नेहरु ट्रॉफी जीती है। ये नौकाएं विभिन्न बोट-क्लबों की तरफ से रेस में उतरती हैं।

‘नेहरु ट्रॉफी’ की शुरुआत

हर नाव में 80 से लेकर 100 तक खेवैये होते हैं

22 दिसंबर 1952 को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु अपनी बेटी इंदिरा गांधी और दोनों नातियों संजय गांधी व राजीव गांधी के साथ केरल के दौरे पर आए थे तो उन्होनें कोट्टयम से आलप्पी तक की यात्रा नाव में की थी। आलप्पी पहुंचने पर स्थानीय लोगों ने परंपरागत नौकोत्सव का आयोजन कर पंडितजी का भव्य स्वागत किया। पंडित नेहरु इससे इतने आकृष्ट हुए कि सुरक्षा अधिकारियों को भी असमंजस में डालकर वे उन नौकाओं में से एक ‘नटुभागं’ नामक नौका पर चढ़ गए और थोड़ी दूर तक उन्होंने उनके साथ यात्रा भी की। वह इस जल उत्सव से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने दिल्ली लौटकर अपने हस्ताक्षर युक्त रजत-नौका का नमूना ट्रॉफी के रूप में जलोत्सव के आयोजकों को भेज दिया। उन्होंने लिखा था कि यह आयोजन केरल के सामाजिक जीवन का अनूठा अंग है। तभी से हर साल अगस्त महीने के दूसरे शनिवार को इस ट्रॉफी के लिए चुण्डन नौकाओं की प्रतियोगिता आयोजित की जाने लगी। पहले इसे ‘प्राइममिनिस्टर्स ट्रॉफी’ कहा जाता था और नेहरु जी की मृत्यु के बाद यह प्रतियोगिता ‘नेहरु ट्रॉफी बोट रेस’ के नाम से आयोजित की जाने लगी। अब इसकी ख्याति दुनियाभर में फैल चुकी है और यह केरल के पर्यटन नक्शे पर अपनी खास जगह बना चुकी है। साल 1953 के बाद से तो हर साल इसका आयोजन निर्बाध तरीके से होता आ रहा है।

जब नेहरु केरल में नौकाओं की अनूठी रेस देखने पहुंचे थे

टिकट-दर

रेस को देखने के लिए रु 2000 से लेकर रु 200 तक की टिकटें उपलब्ध रहती हैं। चार-पांच बोट जेट्टियों से दर्शकों को पेवेलियन तक नावों में ले जाने की व्यवस्था रहती है। दोपहर बारह बजे के पहले दर्शकों को पेवेलियन में बैठ जाना होता है।

नेहरु ट्रॉफी बोट रेस का आनंद लेने के बाद आप आसपास घूमना चाहें तो आलप्पी जिले की कई दर्शनीय जगहों और तीर्थस्थानों, जैसे- आलप्पुष़ा का समुद्र तट, पातिरामणल में देशांतर पक्षी संकेत, करुमाटि कूट्टन में 11वीं सदी की बुद्ध प्रतिमा, तकषी संग्रहालय, कुंचन नंपियार स्मारक, कुमारकोटी, कृष्णपुरम राजमहल, अंपलप्पुषा कृष्ण मंदिर, चक्कुलत्तुकाव भगवती का मंदिर, चेट्टिकुलंगरा मंदिरर, चेंगन्नूर महादेव मंदिर, तुरवूर नरसिंह मंदिर, मण्णाराशाला नागराजा का मंदिर, मुल्लक्कल राजराजेश्वरी का मंदिर, इडत्वा का गिरजाघर, अर्थुगल बेसेलिका, कनिच्चुकुलंगरा मंदिर, हरिप्पाड सुब्राहृण्यन का मंदिर, मारारिक्कलम महादेव मंदिर, आदिक्काट्टू कुलंगरा दरगाह शरीफ, काक्काषं मुहियूदीन मुधस्ल जमात, मस्तान मस्जिद आदि को भी देख सकते हैं। आलप्पुष़ा के स्वादिष्ट भोज्य पदार्थों में आम तौर पर विभिन्न प्रकार की मछलियों व झींगों का स्वाद लिया जा सकता है और हाउसबोट (शिकारा) में रुकने का अनुभव लिया जा सकता है।

अब हर साल नौका दौड़ों की चैंपियंस बोट लीग होने लगी है

कैसे पहुंचे-कहां ठहरें

कोच्चि इंटरनेशनल एयरपोर्ट से लगभग किमी की दूरी पर एर्णाकुलम रेलवे स्टेशन है और वहां से 60 किमी आलप्पुष़ा है। कोच्चि व अर्णाकुलम से बस और टैक्सी की भी सुविधायें है। तिरुवनंतपुरम हवाईअड्डा यहां से लगभग 160 किमी की दूरी पर है। वहां से भी बसें व टैक्सी आलप्पुष़ा आने के लिए आसानी से मिल जाते हैं।

आलप्पुष़ा में रुकने के लिए हर बजट के अनुकूल होटल, रिजॉर्ट, होम स्टे, हाउसबोट आदि की सुविधाएं भी उपलब्ध है। आप अपने हिसाब से चुन सकते हैं।

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