क्यों न चलें नेतरहाट, जहां पत्थर गाते हैं और पेड़ सुनते हैं। जहां चट्टानों के संगीत के बीच सूर्य जागता है और सोता है। जहां आकाश की नीलिमा और धरती की हरीतिमा सूर्य की लालिमा के साथ एक नया रंग रचती है
भोर की पहली किरण फूटने को है। रात के सितारे पहले ही आकाश में छाती नीलिमा में खोने लगे हैं। आसमान भी हर पल अपना रंग बदलने को आतुर है। तभी परिंदे भी सब तरफ से आकर उड़ने लगे हैं- गाते, नाचते और चहचहाते। आसमान में कहीं-कहीं बादल के टुकड़े हमेशा की तरह आवारा टहल रहे हैं। आखिरकार सूरज की चमक दिखलाई दी और क्षितिज में उसकी लालिमा सब तरफ फैल गई है। आसमान मानो सुनहरा हो गया। आखिर सूरज अपने काम से कब चूका है!
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यह नेतरहाट का नजारा है। यह झारखंड का देहात है, राजधानी रांची से लगभग 155 किलोमीटर दूर। जैसे मसूरी को पहाड़ों की रानी कहा जाता है, उसी तरह से नेतरहाट को छोटा नागपुर की रानी के नाम से जाना जाता है। नेतरहाट का पठार लगभग 41 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला है। इस पठार की समुद्र तल से औसत ऊंचाई लगभग 3,700 फुट है। यह लातेहार जिले में आता है। नेतरहाट में हर मौसम में पर्यटकों की आमद रहती है। यहां का नजारा लेने दूर-दूर से लोग आते हैं। छोटा नागपुर के दक्षिण-पश्चिम हिस्से की पहाड़ियों में बसा नेतरहाट उन सैलानियों की बाट जोहता है, जो प्रकृति के सौन्दर्य के प्रेमी होते हैं। हर सुबह नेतरहाट की वादियों में सूरज के आने का इंतजार बड़ी शिद्दत से होता है। उतना ही खूबसूरत यहां के सूर्यास्त का नजारा भी होता है।
रांची से जब नेतरहाट की और बढ़ते हैं तो नेतरहाट से 55 किलोमीटर पहले घागरा में ही पहाड़ दिखने शुरू हो जाते हैं, मानों सैलानियों के स्वागत में अगवानी के लिए खड़े हों। बनारी गांव से शुरू होता है 20 किलोमीटर लंबा, सर्पीला, घने जंगलों का पहाड़ी रास्ता, जो मन में रोमांच भर देता है। हरे-हरे लंबे बांस, पलाश, जंगली केले, करम, साल, सेमल, खैर, सिद्ध और अचर जैसे पेड़ झूमते हुए नजर आते हैं।
नेतरहाट शब्द की उत्पत्ति मूलत: नेतुर और हातु शब्द के मिलने से बनी है। नेतुर का अर्थ होता है बांस और हातु का मतलब बाजार। संभवत: बहुतायत में पाए जाने के कारण यहां बांस का बाजार लगा करता था, जिसके कारण इसका नाम नेतरहाट पड़ा। कहावत यह भी है कि अंग्रेजी के दो शब्द ‘नेचर’ और ‘हार्ट’ आपस में मिलकर नेतरहाट बन गए।
सचमुच नेतरहाट प्रकृति का हृदय स्थल लगता है, जो घने जंगल के पेड़-पौधों, फूलों से सजी प्रकृति के सौंदर्य के रूप में हमारे सामने है। बारिश के मौसम में कभी-कभी बादल नीचे घाटी में और ऊपर विचरण करते हैं, तो ऐसा लगता है, जैसे नेतरहाट बादलों की सवारी कर रहा है। चलते-फिरते बादल इसके सौन्दर्य के अनुपम अंग हैं। लहरियादार ढलानों पर दूर-दूर तक फैले विशाल वनों को देखकर प्रतीत होता है, मानो कोई प्यारा-सा पिक्चर पोस्टकार्ड हो।
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नेतरहाट पठार के निकट की पहाडियां पात (पाट) कहलाती हैं- नेतरहाट पाट, पसेरी पाट, डूमर पाट, जोभी पाट, जमेडूरा पाट, दासवान पाट आदि। पूरे क्षेत्र के उत्तरी दक्षिणी भाग का निर्माण उत्तरी कोयल और शंख नदी के प्रवाह से बना है। पाट क्षेत्र में बैसाल्ट चट्टान की औसत मोटाई 174 फीट है। नेतरहाट में वार्षिक वर्षा 152 से.मी. होती है। गर्मी में अधिकतर तापमान 38 डिग्री सेंटीग्रेड और न्यूनतम 16 डिग्री रहता है, जबकि जाड़े में अधिकतम 10 डिग्री सेंटीग्रेड और न्यूनतम 1 डिग्री तक पहुंच जाता है। नेतरहाट का जंगल बेतला टाइगर रिजर्व से मिला हुआ है। भालू, बंदर, सूअर, भेड़िया, तरह-तरह के सर्प, हिरण, चितराला आमतौर पर दिख जाते हैं। कभी-कभी बाघ और जंगली हाथी भी नेतरहाट में घूमने चले आते हैं। बिरहोर, किसान, उरांव और बिरजीया यहां के मुख्य निवासी हैं, जो मूलत: आदिवासी हैं।
इंडियन पब्लिक स्कूल कांफ्रेंस के संस्थापक सदस्य और ऋषि वैली स्कूल के प्राचार्य एफ.जे. पीयर्स को जब 1951 में बिहार में एक पब्लिक स्कूल बनाने की योजना तैयार करने को कहा गया, तब पीयर्स ने नेतरहाट को स्कूल के लिए सबसे बेहतरीन स्थल बताया। पीयर्स नेतरहाट के सौन्दर्य से इतने अभिभूत थे कि वह नेतरहाट को दुनिया की चंद खूबसूरत जगहों में से एक बताते थे। उन्हीं की योजना पर बना नेतरहाट आवासीय विद्यालय अब उत्कृष्ट शिक्षा का अनूठा केंद्र माना जाता है।
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सूर्योदय के नजारे के अलावा नेतरहाट और इसके आसपास कई रमणीक स्थल हैं। ‘मैग्नोलिया प्वाइंट’ के नाम से जाना जाने वाला सूर्यास्त स्थल भी इसकी प्रसिद्धि का कारण है जहां डूबते सूरज के रूप-लावण्य से मुग्ध होने का इंतजार होता है। बल्कि यूं कहें कि जिस उत्साह के साथ प्रात: बेला में उसका स्वागत किया जाता है, उसी प्यार के साथ सायं बेला में उसे विदा किया जाता है, ताकि कल वह फिर आए।
नेतरहाट से मैग्नोलिया प्वाइंट से दूर पहाड़ों में ऊपर से गिरती पानी की तीन पतली-पतली धाराएं दिख रही हैं। नजदीक जाइए तो पता चलेगा कि दरअसल यह लोध जलप्रपात है, जो 468 फीट की ऊंचाई से गिरता है। बूढ़ा नदी पर बना यह प्रपात बूढ़ा घाघ भी कहलाता है। घने जंगलों के बीच यह प्रपात झारखंड का सबसे ऊंचा प्रपात है। ऊंचाई से गिरता प्रपात विशालता का बोध तो कराता ही है, साथ ही प्रकृति प्रेमी होने का आग्रह भी। दरअसल, लोध प्रपात नेतरहाट से 61 किलोमीटर की दूरी पर है, पर यदि जंगल-पहाड़ गोते हुए पैदल जाएं तो 16-17 किलोमीटर से ज्यादा नहीं है। कहा जाता है कि इस झरने की गिरने की आवाज आस-पास के 10 किमी दूर तक सुनाई देती है।
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सूर्यास्त स्थल से 12 किलोमीटर की दूरी पर लोअर घाघरी जल प्रपात है, जो आमतौर पर ऊपर से ही देखा जाता है, पर यदि आप हिम्मतवर हैं तो घने जंगलों के बीच सरकते हुए नीचे चले जाइए। लोअर घाघरी संपूर्ण सौन्दर्य के साथ मिलेगा। शुभ्र धवल जलधारा जब नीचे गिर रही होती है और उस पर सूरज की किरणें पड़ती हैं तो इंद्रधनुषी छटा देखने को मिलती है। लोअर घाघरी की यात्रा दरअसल पैदल करने में ही आनंददायक और रोमांचक है। 5 किलोमीटर घने जंगलों में यात्रा करनी होगी। जगह-जगह पर ढहाए गए दीमक के घर अपने आसपास भालू की उपस्थिति का अहसास कराएंगे तो कहीं-कहीं खींसें निपोरते बंदर मिलेंगे। जंगल के सन्नाटे को तोड़ने का प्रयास करती है छोटी-छोटी जलधाराओं की आवाज। हर खटका आपको रोमांचित कर देगा। सूरज भी इस जंगल में तीव्रता के साथ प्रवेश नहीं कर पाता है। साल के लंबे-लंबे पेड़ों से छनकर आती सूरज की किरणें गुनगुनी धूप का आनंद देंगी। इस प्रपात तक जाने में आपका साथ देगी पंडरा नदी, जिस पर यह प्रपात है।
इसी नदी पर लोअर घाघरी से 7 किलोमीटर पहले ‘अपर घाघरी’ जल प्रपात है, जो पिकनिक स्थल के रूप में लोकप्रिय है। इसकी ऊंचाई ज्यादा नहीं है। नेतरहाट के निकटस्थ दर्शनीय स्थलों में से एक है सदनी जल प्रपात, जो शंख नदी पर है और नेतरहाट से 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नैना, ताहिर, परेवा, निंदी, मिरचईया आदि कई ऐसे छोटे-छोटे जल प्रपात हैं, जो प्रकृति की खूबसूरती में वद्धि करते हैं।
काली मंदिर यहां के आदिवासी
कैसे व कहां
नेतरहाट में ठहरने के लिए झारखंड राज्य पर्यटन विकास निगम का होटल प्रभात विहार है, जो सूर्योदय स्थल भी है। कमरों की बनावट ऐसी है कि यदि आपने कमरे की खिड़की खोली तो भोर का सूरज हंसता नजर आएगा और यदि आपने खिड़की से बाहर झांका तो खिड़की के कांच के जरिये से अंदर आई लालिमा दीवारों का रंग तो बदलेगी ही, आपको भी पता चल जाएगा कि सूरज आ चुका है। निगम के होटल के अलावा वन विभाग, पी.एच.ई.डी., पी.डब्ल्यू.डी. राजस्व विभाग और डिस्ट्रिक्ट बोर्ड का पलामू बंगला है। पंचायत कैंटीन भी है।
नेतरहाट बस द्वारा रांची से डाल्टनगंज से जा सकते हैं। निकटस्थ हवाई अड्डा रांची 155 किलोमीटर पर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन रांची है, पर यदि पलामू की ओर से आना हो तो डालटनगंज उतना होगा। पटना से 480 किलोमीटर और गया से 376 किलोमीटर की दूरी पर नेतरहाट है। विभिन्न विश्रामालयों में ठहरने के लिए अग्रिम आरक्षण कराना होगा।
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