दक्कन के पठार में अपनी खास भौगोलिक स्थिति की वजह से तेलंगाना को अनूठी जलवायु मिली हुई है। यह जलवायु और यहां का मौसम पेड़-पौधों और वन्य प्राणियों के लिए खासा अनुकूल माना जाता है। समूचे इलाके में कई वन्यजीव अभयारण्य हैं, कुछ टाइगर रिजर्व भी हैं और पक्षी अभयारण्य भी। इनमें कई तो बहुत पुराने हैं और कई महत्वपूर्ण भी। हालांकि तेलंगाना के वन्य अभायरण्यों या टाइगर रिजर्वों को उस तरह की ख्याति नहीं मिली जितनी मध्य भारत में बाकी राज्यों- खास तौर पर कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के टाइगर रिजर्वों को मिली लेकिन इसके बावजूद उनकी अहमियत किसी सूरत में कम नहीं हो जाती। सैलानियों के नजरिये से देखा जाए तो ऐसे अभयारण्यों को घूमने में कम आनंद है जहां सैलानी सफारी करने के लिए टूटे पड़ते हैं। जंगल को कम शोर-शराबे और सुकून में देखने का ही लुत्फ ज्यादा है और यह तेलंगाना के जंगलों में बखूब...
Read MoreTag: रोमांच
मध्य प्रदेश जंगलों से भरा-पूरा है। एक से बढ़कर एक टाइगर रिजर्व हैं यहां। लेकिन इनके बीच भीड़ से दूर कई खामोश सुकून भरे जंगल भी हैं बारिश के दिन हो या गुजरते मानसून वाले दिन, जंगल प्रेमियों के लिए अक्सर ये दिन लुभावने लगते हैं। अक्टूबर से खुलने वाले राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिजर्व की ओर बेतहाशा भीड़ बढ़ जाती है। ऐसे में कुछ ऐसे पड़ाव होते हैं, जो थोड़े सकून से घूमने वालों के लिए पहली पसंद बन जाते हैं। ऐसा ही एक पड़ाव है मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले का नरसिंहगढ़ अभयारण्य। यूं तो यहां गर्मी के दिनों को छोड़कर कभी भी जाया जा सकता है, लेकिन मानसून की उतरन के बाद यहां की सैर वाकई शानदार होती है। तभी तो इस क्षेत्र को मालवा का कश्मीर कहा जाता है। अभयारण्य के बीच चिड़ीखो तालाब यहां की कुदरती खूबसूरती का नायाब तोहफा है। भोपाल के आसपास के जंगलों की हर बार की सैर रोमांचकारी होती है। बाहर से आने...
Read Moreकेरल में ही कई ऐसे नेशनल पार्क व वाइल्डलाइफ रिजर्व हैं जो सैलानियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। लेकिन साइलेंट वैली नेशनल पार्क उन सबसे बहुत अलग है। यहां जो जैव विविधता है, वह कहीं और देखने को नहीं मिलती। यहां जो सुकून है, और जो शांति है, वह भी कहीं और मिलनी मुश्किल ही है। तो जंगल में नीरवता कोई खास बात नहीं। लेकिन किसी वन में इतनी खामोशी हो कि वहां झिंगुरों तक की आवाज सुनाई न दे, तो वाकई हैरानी होती है। दरअसल साइलेंट वैली को अपना नाम इसी खासियत के चलते मिला। साइलेंट वैली यानी खामोश घाटी। लेकिन इस खामोश वन में भी जैव-विविधता की अद्भुत भरमार है। हकीकत तो यह है कि जिस तरह की जैव विविधता यहां देखने को मिलती है, वैसी पश्चिमी घाट में और कहीं नहीं मिलेगी। यहां के कुछ वनस्पति और जीव-जंतु तो पूरी दुनिया में दुर्लभ हैं। कुदरत का यह अनमोल खजाना नीलगिरी पहाडिय़ों में है। साइले...
Read Moreइस ऐतिहासिक कस्बे को देखे बिना कुल्लू-मनाली की यात्रा अधूरी समझी जाती है। दरअसल कई मायनों में इसकी अहमियत आसपास की बाकी प्रमुख जगहों के बराबर ही है कुल्लू-मनाली को दुनिया भर में अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है। हर पर्यटक अपने जीवन में इन जगहों को एक बार तो जरूर निहारने की इच्छा रखता है। यही कारण है कि अमूमन पूरे साल भर यहां सैलानियों का तांता लगा रहता है। कुल्लू से मनाली की ओर थोड़ा सा आगे ही राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 पर पतली कुल्ह से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर व्यास नदी को पार करके हम एक ऐतिहासिक स्थान ‘नग्गर’ पहुंचते हैं। यह वह जगह है जिसे देखे बिना आपकी कुल्लू-मनाली की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी। दरअसल माना जाता है कि कुल्लू के इतिहास और सांस्कृतिक पहलुओं की जड़ें इसी जगह पर विद्यमान हैं। तो आइए, फिर देर किस बात की...
Read Moreहिमाचल प्रदेश सरकार ने अपनी सीमाएं पूरी तरह खोल दी हैं। हालांकि सीमाएं तो उसने पहले ही खोल दी थी लेकिन उसने राज्य की सीमा में प्रवेश करने के लिए लगाई सारी शर्तें भी हटा दी हैं। यानी अब आप बेरोकटोक, बिना किसी कागजात, पास या रजिस्ट्रेशन की जरूरत के हिमाचल प्रदेश जाकर हिमालय की बर्फीली चोटियों और नजारों का आनंद ले सकते हैं। हालांकि यह आपके अपने हित में होगा कि आप कोविड-19 से पूरी तरह बचाव करें क्योंकि पाबंदियां हटाने का मतलब यह नहीं है कि हिमाचल प्रदेश या और कहीं भी कोरोना का खचरा नहीं रहा है। खतरा उतना ही है या हो सकता है पहले से ज्यादा हो लेकिन पर्यटन उद्योग के सामने खड़े अस्तित्व के संकट के देखते हुए ज्यादा से ज्यादा सैलानियों को राज्य में आने का मौका देना निहायत जरूरी हो गया था। गर्मियों का सीजन पहले ही खो चुके पर्यटन उद्योग के लिए एक औऱ सीजन खो देना बहुत घातक हो जाता। ...
Read Moreभूटान के बॉर्डर के नजदीक का आखिरी रेलवे स्टेशन हासिमारा। यहां से लोकल टैक्सी के सहारे पश्चिम बंगाल के जयगांव। भूटान के बॉर्डर पर भारत का आखिरी शहर। फिर जयगांव से टहलते हुए एक दीवार पार करते ही भूटान के फुंटशोलिंग शहर में। यानी ड्रैगन के देश में। कितना आसान और कितना सहज। भारतीय पर्यटकों के लिए देश के किसी हिस्से की सैर की तरह विदेश का पर्यटन। जयगांव और फुंटशोलिंग के बीच कोई फासला नहीं है। है तो बस बीच की एक दीवार, जो भारत और भूटान की सीमा रेखा है। एक गेट के सहारे इस पार से उस पार और उस पार से इस पार करते हुए यहां दो देशों की संस्कृतियों के बीच का जीवन दिखता है। इन दोनों शहरों के बीच दिन में बिना किसी परमिट के आना-जाना किया जा सकता है। लेकिन जब यहां से सड़क के रास्ते भूटान की यात्रा पर निकलने की बारी आती है, तो फुंटशोलिंग से ही परमिट बनवाना पड़ता है। भूटान की राजधानी थिम्फू भूटान की य...
Read Moreशहर की भीड़ भाड़ की जिंदगी से जब कभी मन ऊब जाए तो कुछ दिन पहाड़ों के साथ बिताने चाहिए। इससे मन तरोताजा हो जाता है और अपने निजी जिंदगी के काम में दोगुनी ताकत का एहसास होता है। इस बार तो वैसे भी कोरोना महामारी के कारण हम चार महीने घरों में कैद हो गए थे। उसके बाद उत्तराखंड उन कुछ राज्यों में से है जो सैलानियों को आने की इजाजत दे रहा है। तो क्यों न मौके का फायदा उठाया जाए। लिहाजा इस बार हम गंगोत्री और इसके आसपास की सैर को चल रहे हैं। गंगोत्री मंदिर धार्मिक महत्व के लिहाज से गंगोत्री उत्तराखंड के चार धामों में से एक महत्वपूर्ण धाम है। गंगोत्री समुद्र तल से 3,048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बताया जाता है कि 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक सालों में एक गोरखा कमांडर द्वारा गंगोत्री मंदिर का निर्माण किया गया था। यह मंदिर 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गंगा नदी के मंदिर के लिए गंगोत्री...
Read MoreMalavath Poorna is the youngest female in the world to reach the summit- Mt. Everest, a dream for all adventure seekers around the world. At 6.30 in the morning of 25th May 2014, she unfurled the Indian tricolour at the highest point on this planet. She was just 13 years and 11 months at that time. Born of a very poor family of agricultural labourers, Poorna is also the youngest Indian to reach the summit. In fact she was just one month older then the youngest person ever to climb the Mount Everest successfully, who was a US boy. A ninth standard student at Andhra Pradesh Social Welfare Educational Institutions Society's school, Poorna struggled against all odds to be on top. Hailing from a background, where none of her villager folk have ever seen snow in their lives, Poorna achieved the...
Read Moreयह यकीनन भारत के और शायद दुनिया के भी सबसे चुनौतीपूर्ण लेकिन सबसे खूबसूरत रास्तों में से एक है। हिमाचल प्रदेश में राजधानी शिमला से स्पीति घाटी में काजा तक का रास्ता चरम रोमांच का है। हालांकि यह मनाली से लेह यानी लाहौल घाटी के रास्ते से अलग है। यह दीगर बात है कि आम तौर पर रोमांच-प्रेमी इन दोनों रास्तों को एक ही सांस में याद करते हैं। आइए जरा इस रास्ते की दस सबसे खास बातों पर नजर डालें, जिनका आनंद लेना आप इस रास्ते पर जाते हुए भूल नहीं पाएंगे- काह जिग्स काजा के रास्ते में शिमला से लगभग 290 किलोमीटर दूर यह खाब व काह गांवों के बीच पहाड़ चढ़ती सड़क का नाम है। सर्पाकार तरीके से चढ़ती इस सड़क में कुल सात पट्टियां हैं। लोग कहते हैं इसे देखकर ही इसपर यकीन किया जा सकता है। स्पीति नदी के किनारे-किनारे एक बेहद संकरी घाटी में पहाड़ में कटी सड़क से घुसने के बाद सड़क अचानक ऊपर चढऩे लगती है। यह...
Read Moreकुदरत जब अपनी खूबसूरती बिखेरती है तो सीमाएं नहीं देखती। यही बात उन निगाहों के लिए भी कही जा सकती है उस खूबसूरती का नजारा लेती हैं। हम यहां बात केवल देशों की सीमाओं की नहीं कर रहे, बल्कि धरती व आकाश की सीमाओं की भी कर रहे हैं। हिमालय ऐसी खूबसूरती से भरा पड़ा है। इस बार हम जिक्र कर रहे हैं संदकफू का जो पश्चिम बंगाल से सिक्किम तक फैली सिंगालिला श्रृंखलाओं की सबसे ऊंची चोटी है। नीला आसमान और बर्फ से लदी चोटियां संदकफू की ऊंचाई समुद्र तल से 3611 मीटर है। यहां जाने का रोमांच जितना इतनी ऊंचाई पर जाने से है, वहीं इस बात से भी है कि यह वो जगह है जहां से आप दुनिया की पांच सबसे ऊंची चोटियों में से चार को एक साथ देख सकते हैं। ये हैं दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8848 मीटर), तीसरे नंबर की और भारत में सबसे ऊंची कंचनजंघा (8585 मीटर), चौथे नंबर की लाहोत्से (8516 मी) और पांचवे नंबर की मकाल...
Read More
You must be logged in to post a comment.