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इस बियाबान में है इतनी खामोशी क्यों

केरल में ही कई ऐसे नेशनल पार्क व वाइल्डलाइफ रिजर्व हैं जो सैलानियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। लेकिन साइलेंट वैली नेशनल पार्क उन सबसे बहुत अलग है। यहां जो जैव विविधता है, वह कहीं और देखने को नहीं मिलती। यहां जो सुकून है, और जो शांति है, वह भी कहीं और मिलनी मुश्किल ही है।

तो जंगल में नीरवता कोई खास बात नहीं। लेकिन किसी वन में इतनी खामोशी हो कि वहां झिंगुरों तक की आवाज सुनाई न दे, तो वाकई हैरानी होती है। दरअसल साइलेंट वैली को अपना नाम इसी खासियत के चलते मिला। साइलेंट वैली यानी खामोश घाटी। लेकिन इस खामोश वन में भी जैव-विविधता की अद्भुत भरमार है। हकीकत तो यह है कि जिस तरह की जैव विविधता यहां देखने को मिलती है, वैसी पश्चिमी घाट में और कहीं नहीं मिलेगी। यहां के कुछ वनस्पति और जीव-जंतु तो पूरी दुनिया में दुर्लभ हैं। 

कुदरत का यह अनमोल खजाना नीलगिरी पहाडिय़ों में है। साइलेंट वैली एक नेशनल पार्क है और नेशनल पार्क होने के बावजूद यह सैलानियों की भीड़ से उतना लदा नहीं रहता, जितना कि बाकी नेशनल पार्क आम तौर पर रहते हैं। यहां तक कि केरल जाने वाले देश-विदेश के सैलानियों में भी साइलेंट वैली जाने की प्राथमिकता कम ही रहती है। लेकिन जो लोग यहां के दीवाने हैं, उन्हें यहां जाए बिना सुकून नहीं मिलता।

साइलेंट वैली नेशनल पार्क केरल के पल्लकड जिले में है। यह केरल का सबसे उत्तरी जिला है। पल्लकड के भी उत्तर-पूर्वी कोने में साइलेंट वैली पार्क स्थित है। नीलगिरी पहाड़ियां केरल व तमिलनाडु के इस इलाके में फैली हुई हैं। साइलेंट वैली नेशनल पार्क उत्तर में नीलगिरी पठार को छूता है तो उसके दक्षिण में मन्नारकड़ के मैदान हैं। यह नीलगिरी बायोस्फेर रिजर्व का मुख्य केंद्र है। दरअसल अपनी जैव-विविधता के लिए ही यह वैज्ञानिकों और वनस्पतिविज्ञान व जीवविज्ञान के छात्रों और शोधकर्ताओं के बीच खासा लोकप्रिय रहता है। 

अब उदाहरण के तौर पर देखिए। साइलैंट वैली नेशनल पार्क में फूल देने वाले पौधों की हजार से भी ज्यादा किस्में पाई जाती हैं। इनमें 110 किस्म के तो ऑर्किड ही हैं। इनमें मालाबार ऑर्किड तो बहुत दुर्लभ है। इसी तरह यहां स्तनधारी जंतुओं की 34 से अधिक प्रजातियों मिलती हैं। लगभग 200 किस्मों की तितलियाँ, 400 किस्मों के शलभ (मॉथ), 128 किस्मों के भृंग (बीटल) हैं, जिनमें से 10 तो जीव विज्ञान के लिए बिल्कुल नए हैं। और तो और चिडिय़ों की 150 प्रजातियाँ यहां पाई जाती हैं जिनमें से 16 प्रजातियां सिर्फ दक्षिण भारत में ही देखने को मिलती हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह इलाका जैविक तौर पर कितना संपन्न है। यहां की वनस्पतियों की 17 प्रजातियां आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कनजर्वेशन ऑफ नेचर) की लाल किताब (रेड डाटा लिस्ट) में शामिल हैं। इस लाल किताब में उनको शामिल किया जाता है जो लुप्त होने के खतरे में हैं। 

भारत में तमाम वनों की ही तरह साइलेंट वैली नेशनल पार्क भी कई मिथकों से भी जुड़ा है। भारत में ज्यादातर मिथक या तो रामायण काल से जुड़े हैं या फिर महाभारत काल से। साइलेंट वैली नेशनल पार्क को स्थानीय भाषा में सैरंध्रीवनम् कहा जाता है यानी सैरंध्री का वन। मिथकीय रचनाओं में महाभारत में सैरंध्री द्रौपदी का एक नाम था। स्थानीय लोग मानते हैं कि पांडव अपने वनवास के दौरान घूमते हुए केरल पहुंच गए थे, जहां वे एक जादुई घाटी में आ गए। इस वन में लहराते हुए घास के मैदान तंग वन घाटियों से मिलते थे, एक गहरी हरी नदी अगम्य वन में अपना रास्ता ढूंढती हुई सी लगती है, जहां सुबह और शाम, बाघ और हाथी किनारे पर इकट्ठा पानी पीते थे, जहां सब कुछ सामंजस्यपूर्ण था और जहां इंसान नहीं पहुंचा था। कहा जाता है कि द्रौपदी को पसंद आने के कारण ही इसे सैरंध्रीवन नाम दिया गया। अब इस बात पर सवाल उठाया जा सकता है कि सैरंध्री नाम द्रौपदी को उस समय दिया गया था जब पांडव राजा विराट के यहां एक साल के लिए अज्ञातवास में रहे। विराटनगर उत्तर में है और कई मिथकों में इसके उत्तराखंड में कहीं होने की बात कही जाती है। ऐसे में सैरंध्रीवन सुदूर दक्षिण में केरल में कैसे हो सकता है। लेकिन यह हमारी चर्चा का विषय नहीं। इसलिए भी नहीं क्योंकि देश के कई स्थान महाभारत काल में पांडवों के वनवास और फिर एक साल के अज्ञातवास से जोड़े गए हैं। ये स्थान उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पश्चिम से लेकर सुदूर पूर्व तक सभी जगहों पर हैं। 

लेकिन इस इलाके पर महाभारत का असर गहरा रहा है, यह इस बात से भी साबित होता है कि यहां कुंती (कुंतीपुझा) नाम की नदी भी है। कुंती नदी नीलगिरी पहाडिय़ों में समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊँचाई से उतरती है और घाटी में गुजरती हुई घने जंगलों वाले मैदानों से होकर आगे प्रवाहित होती है। कहा जाता है कि कुंती नदी का रंग कभी मटमैला नहीं पड़ता। पूरे साल भर निरंतर बहने वाली इस बनैली नदी का जल हमेशा काँच के समान स्वच्छ बना रहता है। आगे जाकर यह नदी भरतपुझा नदी में मिल जाती है। भरतपुझा या निला नदी केरल के मलाबार इलाके की सबसे प्रमुख व मिथकीय नदी है और इसे इस इलाके में जीवनदायिनी माना जाता है। इन जंगलों का वायुमंडल शीतल बना रहता है और भाप बड़ी आसानी से ठंडी होकर मैदानों में गर्मियों के दौरान बारिश का कारण बनती है। समुद्र तल से 725 से लेकर 2383 मीटर तक की ऊंचाई के दरम्यान फैले साइलेंट वैली नेशनल पार्क में गर्मियों में तापमान 30 डिग्री तक पहुंच जाता है तो सर्दियों में न्यूनतम तापमान 8 डिग्री तक गिर जाता है। इसलिए केरल में होने के बावजूद थोड़े गरम कपड़े साथ रखें।

आधुनिक काल में साइलेंट वैली की पहली पड़ताल 1847 में रॉबर्ट राइट ने की। अंग्रेजों ने इस क्षेत्र का नाम साइलेंट वैली इसलिए दिया, क्योंकि अंधेरे वीरानों में कोलाहल करने वाले झिंगुरों तक का अभाव था। अन्य कहानियां इस घाटी की अनछुई प्रकृति की तरफ इशारा करती है अर्थात जहां कोई इंसानी शोर नहीं होता। यह नेशनल पार्क ऊष्ण कटिबंधीय सदाबहार वर्षा वनों का एक अत्यंत अनोखा, किंतु नाजुक संतुलन कायम रखे हुए है, जिसके अंतर्गत अनेक प्रकार के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की विविधता से भरी हुई पूर्ण नर्सरी है। साइलेंट वैली में वृक्ष प्रजातियों की संख्या बहुत ज्यादा है। मुदुगार और इरुला जनजातीय लोग इस क्षेत्र के मूल निवासी हैं और वे पास की अत्तापदी संरक्षित वन्य क्षेत्र की घाटी में रहते हैं। 

साइलेंट वैली के जीवों के बारे में अध्ययन से पता चलता है कि इस घाटी में कई अद्भुत और दुर्लभ जीव हैं। दुर्लभ इसलिए, क्योंकि पश्चिमी घाट के पूरे क्षेत्र में इनकी कई मूल प्रजातियां मनुष्यों की बस्तियों के विस्तार या अन्य कारणों से अपने आशियाने उजडऩे के कारण लुप्तप्राय हो गई हैं। फिर भी, इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत कम मानवीय घुसपैठ के कारण यहां शांत घाटी में कुछ विशेष प्रकार के जीव अभी मौजूद हैं। यह अद्वितीय इसलिए है कि अब तक एकत्र थोड़े-बहुत आंकड़ों और वर्गीकरण, प्राणि-वृत्तांत और पारिस्थितिक अध्ययन की दृष्टि से उपलब्ध यह जानकारी वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत दिलचस्प है। साइलेंट वैली में 50 से 100 साल पहले तक बड़ी संख्या में कीड़ों, मछलियों, उभयचरों, सर्पों, और स्तनधारियों की प्रजातियां उपलब्ध थीं और अभी भी हैं। साइलेंट वैली में सिंहपुच्छ मकाऊ (शेर जैसी पूंछ वाले वानरों) की बड़ी संख्या निवास करती है, जो कि नर-वानरों की लुप्तप्राय प्रजाति है। यह प्रजाति सिर्फ पश्चिमी घाट में ही मिलती है। यहां नीलगिरी लंगूर भी खूब मिलते हैं। बड़े स्तनधारियों में सबसे बड़ा जंगली मवेशी गौर प्रमुख है। इसके अलावा यहां बाघ भी हैं, तेंदुए, भालू और हिरणों की भी कुछ प्रजातियां। यहां जो खास पक्षी पाए जाते हैं उनमें नीलगिरी वुड पीजन, मालाबर पराकीट व नीलगिरी पिपिट शामिल हैं। जेर्डोन्स इंपीरियल पीजन, ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल व नीलगिरी लॉफिंग थ्रश जैसे पक्षी तो अब दुर्लभ हो चले हैं। यहां की तितलियों में क्रो बटरफ्लाई की प्रजातियां, मालाबार रोज, बुद्धा पीकॉक व ब्लू नवाब शामिल हैं।

अब साइलेंट वैली के दो क्षेत्र हैं। मुख्य क्षेत्र (89.52 वर्ग किमी) और सुरक्षित क्षेत्र (148 वर्ग किमी)। मुख्य क्षेत्र संरक्षित है और वहां वन्य जीवन में किसी दखलंदाजी की इजाजत नहीं है। केवल वन विभाग के कर्मचारियों, वैज्ञानिकों और वन्य जीवन फोटोग्राफरों यहां जाने की अनुमति है। इस जंगल की विशेषता है कि यहाँ प्रकृति के साथ लगभग न के बराबर छेड़छाड़ की गई है। सन 70 के दशक में यहाँ कुंतीपुझा नदी पर एक पनबिजली योजना लाने की कोशिश की गई, पर जनता के विरोध के कारण उसे अनुमति नहीं मिली। पर्यावरण विदों का कहना था कि पनबिजली परियोजना यहां की जैवविविधता को नष्ट कर देगी। विरोध के कारण सरकार झुकी और परियोजना को रद्द कर दिया गया। फिर साइलेंट वैली के पारिस्थितिकीय संतुलन के संरक्षण की दीर्घकालीन योजना बनाई गई। क्षेत्र की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पार्क को सुरक्षित क्षेत्र बनाया गया और बाद में इसे साइलेंट वैली नेशनल पार्क का अभिन्न हिस्सा बना दिया गया। साइलेंट वैली नेशनल पार्क की कहानी देश में पर्यावरण संरक्षण के लिए संघर्ष और सोच को दर्शाती है। घाटी की रक्षा के लिए चले संघर्ष ने साबित कर दिया कि स्थानीय लोगों में अब भी प्रकृति के लिए चिंता है। 

कैसे पहुँचें

साइलेंट वैली नेशनल पार्क जाने के लिए निकटतम बड़ा रेलवे स्टेशन केरल में पल्लकड है जो यहां से 69किलोमीटर दूर है। निकटतम हवाई अड्डा तमिलनाडु में कोयम्बटूर का है, जो यहां से 91 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोयम्बटूर से पल्लकड जाने के रास्ते में ही साइलेंट वैली नेशनल पार्क जाने का रास्ता पड़ता है। मन्नरकड़ यहां से 45 किलोमीटर दूर है। सार्वजनिक परिवहन केवल मुक्काली तक ही उपलब्ध है जो यहां से 22 किलोमीटर दूर है। साइलेंट वैली यहां से और 20 किलोमीटर आगे है। अपना वाहन न हो तो मुक्काली से साइलेंट वैली तक आप किराये पर जीप लेकर जा सकते हैं। नेशनल पार्क में भीतर जाने के लिए असिस्टेंट वाइल्डलाइफ वार्डन की इजाजत की जरूरत होती है। मुक्काली से आगे जाने की इजाजत तभी मिलती है जब आपके पास इसकी इजाजत हो। वहां वन विभाग का निगरानी पोस्ट है। नेशनल पार्क में प्रवेश की इजाजत मन्नरकड़ में वाइल्ड लाइफ वार्डन के दफ्तर से या मुक्काली में असिस्टेंट वाइल्डलाइफ वार्डन के दफ्तर से ली जा सकती है। नेशनल पार्क में प्रवेश केवल सवेरे 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक किया जा सकता है। 

सैलानियों को आम तौर पर सैरंध्री में फॉरेस्ट स्टेशन तक जाने की इजाजत होती है। सैरंध्री ही पार्क के कोर क्षेत्र का प्रवेश द्वार है। मुक्काली से सैरंध्री तक की जीप यात्रा भी बहुत खूबसूरत है। 22-23 किलोमीटर का यह रास्ता ट्रैक करके भी पूरा किया जा सकता है। मुक्काली से सैरंध्री का रास्ता भी नेशनल पार्क के बफर जोन से होकर ही गुजरता है। इस दौरान आप खेतों, कॉफी, टीक व यूकेलिप्टस के बागानों से होकर गुजरते हैं। सैरंध्री जाने के रास्ते में ही बड़ी संख्या में पक्षी और बड़े जानवरों में लंगूर, हिरण, हाथी और मालाबार जियांट स्क्वीरल को देखने का मौका मिल सकता है।

सैलानियों का साइलेंट वैली नेशनल पार्क में स्वागत करने वाले द्वार से थोड़ा पहले एक रास्ता ‘23 वाटरफॉल’ की तरफ जाता है। यह खूबसूरत वाटरफॉल है लेकिन उसे नजदीक से देखने के लिए पैदल जाना होता है और यह रास्ता भी थोड़ा मुश्किल है। सड़क मार्ग सैरंध्री पहुंकर खत्म हो जाता है। सैरंध्री फॉरेस्ट स्टेशन पहुंचकर थोड़ा आराम किया जा सकता है और वहां से आसपास के इलाकों को घूमा जा सकता है। कुंती नदी वहां से निकट ही है। उसके किनारे अक्सर आपको बड़ी संख्या में झुंड में बैठी अनूठी तितलियां दिख सकती हैं। यह जगह दुर्लभ सिंह-पूंछ मकाऊ (वानर) को देखने के लिए भी बहुत उपयुक्त है। 

सौ फुट की ऊंचाई पर स्थित वॉचटावर से समूची घाटी का बेहद शानदार नजारा मिलता है। यह सैलानियों का खास आकर्षण है। यहां से पार्क के कोर क्षेत्र के बड़े हिस्से का नजारा लिया जा सकता है। चारों तरफ नीलगिरी पहाड़ियां और उनके बीच से बहती कुंतीपुझा नदी का नजारा मन मोहने वाला होता है। अगर किस्मत साथ दे तो शाम के समय यहां नदी के किनारे पानी पीने के लिए आने वाले बाघ या तेंदुए को भी देखा जा सकता है। 

साइलेंट वैली नेशनल पार्क में रोमांचप्रेमियों के लिए कुछ ट्रैकिंग मार्ग भी हैं। वे पूछापाड़ा, नीलिक्कल, वलक्कड़ या पूवाचोला तक छोटे ट्रैक कर सकते हैं।

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