Tuesday, November 5
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सैर नॉर्थ और मिडिल अंडमान की

अपनी पिछली यात्रा की यादें धुंधली भी नहीं हुई थी कि एक बार फिर अंडमान जाने का मौका मिला। पिछली यात्रा से बिलकुल ही अलग, इस बार कुछ काम करते हुए, बीच-बीच में वक्त निकालकर घूमना था- अंडमान की उन जगहों पर, जहां पिछली बार नहीं गए थे और जहां पर्यटक भी बहुत कम जाते हैं। लेकिन जब हम अनजानी राहों पर होते हैं तो चाहें काम ही क्यों न हो, हर अनुभव घुमक्कड़ी को ज्यादा मजेदार बना देता है। खासतौर से तब, जब आप पहले सब कुछ तय नहीं किए रहते, चाहे आने-जाने का साधन हो या फिर रुकने व घूमने की जगहें।

मिडिल अंडमान का धानी नाला बीच

पर्यटक, ट्रेकर और घुमक्कड़- तीनों की लिस्ट में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ऊपर ही रहता है। पर्यटक तो सामान्य तौर पर पोर्ट ब्लेयर, हैवलॉक, नील, रॉस, नॉर्थ बे, जॉली बे, बाराटांग आइलैंड तक ही जाते हैं। इनमें से भी हर कोई हर जगह नहीं जाता। ट्रेकर और घुमक्कड़ इन द्वीपों से अलग नॉर्थ और मिडिल अंडमान के द्वीपों पर या फिर लिटिल अंडमान की ओर निकल पड़ते हैं।

तो हमारी यात्रा की शुरुआत इस बार पोर्ट ब्लेयर से रंगत के लिए सरकारी बस से हुई। नॉर्थ मिडिल अंडमान जिले में रंगत मिडिल अंडमान में पड़ता है, जो कि एक तहसील है। जरावा रिजर्व के शुरू होने से पहले जिरकटांग में बस रुक गई। यहां से रिजर्व क्षेत्र की सड़क पार कर बाराटांग तक जाने के लिए दिन में चार बार ही कॉनवाय (एक साथ सभी गाड़ियों को निश्चित समय पर छोड़ना) जाते हैं। हमारी बस सबसे आगे थी और सुरक्षाकर्मी भी उसी बस में आगे बैठा हुआ था। रिजर्व एरिया में छोटी-बड़ी किसी भी गाड़ी को रुकने की अनुमति नहीं है। जरावा अंडमान के मूल आदिम निवासियों में से एक हैं, जिनकी कुल जनसंख्या लगभग 400 है।

जिरकटांग में जरावा रिजर्व

अंडमान के दूसरे आदिम जनजातियों में ग्रेट अंडमानी, ओंगी, सेंटिनल, निकोबारी और शोम्पेन हैं। केवल निकोबारी जनजाति की जनसंख्या ही हजारों में है, बाकी सारे की जनसंख्या महज दो या तीन अंकों में ही है। खैर, इस क्षेत्र से गुजरने वाले हर बाहरी की ख्वाहिश होती है कि कोई जरावा उसे दिख जाए। पिछली यात्रा में ऐसा नहीं हो पाया था, लेकिन इस बार कई जरावा हमें सड़कों पर दिखाई दिए। एक जगह पर दो-तीन जरावा बच्चों ने बस रुकवाई और उसमें सवार होकर दरवाजे पर खड़े हो गए। उन्हें आगे जाना था। वे गेट पर खड़े रहे और आगे जहां उन्हें उतरना था, वहां वे उतर गए। उनका फोटो लेना मना है और उनके पास जाना और बात करना भी मना है। जरावा रिजर्व के इस रोमांच के बारे में टूर ऑपरेटर्स भी पर्यटकों को खूब लुभाते हैं। यद्यपि बाराटांग जाने के लिए इसी रास्ते से जाना होता है। बाराटांग में चूना-पत्थर की गुफाएं, मैंग्रोव क्रीक और कीचड़ वाले जीवित ज्वालामुखी देखने के लिए पर्यटक जाते हैं। यह लंबा रास्ता थकाऊ न हो, इसलिए जरावा रिजर्व में जरावा लोगों को ढूंढती आंखें रोमांच बनाए रखती हैं।

बहरहाल, तो अब हम बाराटांग पहुंच गए। फेरी पर बस और हम चढ़ गए, उस पार के लिए। पोर्ट ब्लेयर से दिगलीपुर तक के नेशनल हाइवे में ऐसी दो जगहें आती है, जब सवार और सवारी दोनों इस द्वीप से उस द्वीप पर जाने के लिए छोटे जहाज का सहारा लेते हैं। हम फेरी पर महज 15 मिनट के लिए थे और तभी चमकीले आकाश में बादल के टुकड़े आ धमके और हम कुछ सोचते, इससे पहले ही हमें भिगो कर ओझल भी हो गए। अंडमान के मौसम का मिजाज कुछ ऐसा ही रहता है। कभी चटक धूप, तो कभी तेज हवा संग बारिश।

रंगत में मैंग्रोव क्रीक वॉक

रात करीब 7 बजे हम पहुंच गए रंगत। यह एक छोटा कस्बा है। सड़क के दोनों ओर लाइन से पक्की दुकानें हैं। शांत और आरामतलब जगह। किसी को जल्दी नहीं। अपने को भी नहीं थी। अगले चार दिन हम यहीं थे। हां, तो हम जिस काम से गए थे, उसे अगले दिन से अंजाम देना शुरू कर दिया और जब तक अंडमान रहे, तब तक हर रोज काम के सिलसिले में इधर से उधर आना-जाना लगा रहा। काम ही कुछ ऐसा था।

काम के सिलसिले में हमें निम्बुतला जाना हुआ- रंगत से 10 किलोमीटर दूर। यहां हम गांव में गए। कुछ महिलाओं के संग बैठक हुई। हस्तकला को लेकर बातचीत हुई। रोचक बातचीत के बीच ताजे नारियल का पानी हमने पीया। और फिर निकल पड़े पास के कुछ संभावनाशील पर्यटक स्थलों की ओर।

निम्बुतला में सूर्योदय का नजारा

सबसे पहले हम आम्रकुंज गए। यह एक खूबसूरत समुद्र तट है। आसपास मैंग्रोव और उसे पार खूबसूरत तट। यह निम्बुतला पंचायत में ही आता है। पंचायत द्वारा यहां पर अब हर साल फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है, जिसमें महज तीन दिन में स्थानीय और बाहरी 10 हजार के करीब लोग आते हैं। मायाबंदर के रास्ते आगे बढ़ते हुए करीब 10 किलोमीटर और आगे एक तट है धानी नाला। आम्रकुंज से धानी नाला तक सड़क समुद्र से सटे हुए ही बढ़ती है और बीच के इलाके में कई ऐसी जगह है, जहां घंटों बिताए जा सकते हैं। हालांकि मगरमच्छों का खतरा है, इसलिए बिना सुरक्षा के समुद्र में अकेले उतरना ठीक नहीं, लेकिन तट किनारे चट्टानों पर बैठकर समुद्र की उठती लहरों को निहारना अभिभूत कर देता है।

हां, तो धानी नाला वह जगह है, जहां बाहरी लोग इक्का-दुक्का ही आते हैं, लेकिन यह पर्यटन नक्शे पर मौजूद है। गूगल बाबा से इसके बारे में जानकारी ली जा सकती है। यहां का सबसे मजेदार अनुभव है मैंग्रोव क्रीक वॉक। मैंग्रोव के जंगल से गुजरते हुए लगभग एक किलोमीटर बाद शुरू होता है नेचर वाक। यानी कुछ दूर तक जंगल की राहों से गुजरना। और सामने दिखता है विशाल समुद्र तट। वाकई इसे अंडमान का छुपा खजाना कहा जा सकता है। यदि यह डेवलप हो जाए, और पोर्ट ब्लेयर से निम्बुतला के लिए रोजाना जहाज चल जाए, तो पर्यटन की दुनिया इसे हाथों-हाथ ले लेगी।

लॉन्ग आईलैंड का खूबसूरत रास्ता

अगले दिन रंगत से लॉन्ग आइलैंड जाना हुआ। इस आइलैंड पर टूरिज्म के लिहाज से ज्यादा सुविधाएं विकसित करने का प्रस्ताव पास हो चुका है। पार स्थित लालाजी बे पर्यटन मानचित्र पर मौजूद है। यदि गोल पहाड़ से लॉन्ग आइलैंड के बीच पुल बन जाए, जिसकी घोषणा केंद्र सरकार कर चुकी है, तो यहां आना आसान हो जाएगा। हम लोग रंगत से येराटा जेटी गए और वहां से फेरी पर सवार होकर लॉन्ग आइलैंड। रास्ता बहुत ही खूबसूरत। दोनों ओर मैंग्रोव के जंगलों के बीच से गुजरते हुए सवा घंटे का सफर। वहां लालाजी बे नहीं जा पाए। काम में ही समय बीत गया। लेकिन ट्रेकर्स के लिए यह बहुत रोमांचकारी है, लगभग तीन किलोमीटर के पहाड़ी रास्ते को पार कर लालाजी बे समुद्र तट पर जाना। इसके सामने गिटार आइलैंड भी है, जहां फाइबर बोट से जाकर प्राकृतिक नजारों का मजा लिया जा सकता है। येराटा जेटी पर भी मैंग्रोव वॉकिंग ब्रिज बना हुआ है। यह लंबा ब्रिज गोल पहाड़ गांव तक चला जाता है।

कुछ काम भी आगे बढ़ा और हम भी। हम पहुंच गए रंगत से मायाबंदर। और फिर अगले दिन दिगलीपुर। दिगलीपुर का रॉस एंड स्मिथ आइलैंड खूबसूरती में दूसरे द्वीपों से कुछ ज्यादा ही आगे है। इस जुड़वा आइलैंड की खासियत है कि लो टाइड यानी सुबह में जब समुद्र का पानी नीचे उतर जाता है, तब एक से दूसरे तट पर पैदल रेतीले तट को पार करके जाना संभव है। और इसकी यह खासियत पर्यटकों को अपनी ओर खिंचती है। रॉस आइलैंड का लाइट हाउस और नेचर वाक मजेदार है।

दिगलीपुर का रॉस एंड स्मिथ बीच

स्मिथ आइलैंड के सामने का पारदर्शी पानी वाला तट हर किसी के लिए बाहें फैलाए तैयार रहता है। आइए, नहाइए और फिर खूबसूरत अनुभूतियों को साथ ले जाइए। दोनों आइलैंड को नेशनल पार्क का दर्जा हासिल है। दिगलीपुर में ही है अंडमान व निकोबार द्वीप समूह की सबसे ऊंची चोटी- सैडल पीक। यहां आने-जाने के लिए 12-14 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी पड़ती है। हमें इसे अगली बार के लिए छोड़ना पड़ा। मायाबंदर में कई जगह पर्यटन के लिहाज से खूबसूरत है। इसमें एक है करमाटांग तट। बस से एक घंटे के सफर के बाद सुदूर ग्रामीण इलाके का यह तट समुद्री कछुओं के प्रजनन के लिए प्रसिद्ध है। बहुत ही खूबसूरत और आकर्षक तट। घंटे भर बैठे, समुद्र की उठती लहरों को निहारे और फिर उसे आत्मसात् कर वापस हो लिए।

काम का अंतिम पड़ाव और अब हमें लौटना था पोर्ट ब्लेयर। हमने निर्णय लिया कि रंगत के निम्बुतला जेटी से जहाज से पोर्ट ब्लेयर लौटेंगे। कुल 7 घंटे की यात्रा थी। समुद्र के रास्ते लॉन्ग आइलैंड, स्ट्रेट आइलैंड, हैवलॉक और नील होते हुए पोर्ट ब्लेयर। स्ट्रेट आइलैंड पर ग्रेट अंडमानी आदिम जनजाति का निवास है। इनकी कुल जनसंख्या लगभग 50 है। इस द्वीप और ग्रेट अंडमानी लोगों की फोटो खींचना मना है। लेकिन जब जहाज यहां रुका, तो हमने न केवल इस द्वीप को देखा, बल्कि ग्रेट अंडमानी भी देखे। उनकी तस्वीर हमारी यादों में है।

हैवलॉक आईलैंड की जेट्टी

हम वापस पोर्ट ब्लेयर आ गए। पोर्ट ब्लेयर से महात्मा गांधी मरीन नेशनल पार्क में स्थित जॉलीबे आइलैंड और रेड स्किन आइलैंड जाया जा सकता है। थोड़ा समय था, तो हमने भी उधर जाने का रुख किया। इस पार्क में पर्यटकों के आवागमन के लिए छह महीने जॉलीबे आइलैंड और छह महीने रेड स्किन आइलैंड खुलते हैं। पिछली बार हम जॉलीबे गए थे। इस बार रेड स्किन का मौका था। बिना कोई एडवांस बुकिंग के हम बस से निकल पड़े वंडूर। वहां पहुंच कर परमिट और टिकट लिए। ऑफ सीजन की यात्रा थी, तो बमुश्किल 20 लोग थे (दूसरी जगहों पर तो सिर्फ हम ही हम थे)। टिकट लिए और मौसम का मिजाज पूरी तरह बिगड़ गया। ऐसा लगा कि रेड स्किन जाने की मंजूरी कैंसिल हो जाएगी। खैर, मौसम थोड़ा शांत हुआ और समुद्र पर हो रही बारिश के बीच हम पहुंच गए रेड स्किन।

रेड स्किन आईलैंड में कोरल का नजारा

यहां आकर पता चला कि स्नोर्कलिंग पर पाबंदी है। मन मायूस हुआ लेकिन ग्लास बॉटम बोट से पूरे इलाके के कोरल देखने का निर्णय लिया। बहुत ही मजेदार रहा यह। कई सी एनिमल्स और कोरल की दुर्लभ प्रजातियों को देखने का मौका मिला। रेड स्किन पर नेचर वॉक भी है। हमने दो-ढाई किलोमीटर की सैर की। बहुत ही जोखिम भरा था वह। मानसून ने विदाई नहीं ली थी और उस राह पर लंबे समय से किसी ने वॉक नहीं किया था। जगह-जगह पेड़ गिरे हुए थे। अमेजन के जंगल से कम नहीं लगा यह। एक जगह एक-दो मिनट के लिए क्या रुके हाथ-पैर पर तीन जोंक चिपक गए। उन्हें हटाया और समुद्र के खारे पानी से हाथ-पैर धोए। वापस लगभग 3 घंटे बाद होटल लौटे। तब मैंने देखा कि मेरे पैर की उंगलियों के बीच एक और जोंक खून पीकर मोटी हो चुकी है। उसे हटाया, लेकिन घंटे भर वहां से खून रिसता रहा।

समुद्र के नीचे की दुनिया

कुछ इस तरह बीते 10 दिन अंडमान में कि एक बार फिर वक्त कम पड़ गया। लेकिन वाकई यह एक रोमांचक यात्रा रही। कम से कम पैकेज प्लान में इस तरह की यात्रा संभव ही नहीं है, जहां प्राकृतिक स्थानों के साथ-साथ स्थानीय लोगों से भी खूब मिलना-जुलना संभव हो।

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