वारंगल को सबसे ज्यादा ककातीय वंश के शैव शासकों की राजधानी के तौर पर इतिहास में अहमियत मिली। उस समय यह दक्षिण के सबसे प्रभावशाली साम्राज्यों में से एक था। कालांतर में साम्राज्य भले ही ढह गया लेकिन ककातीयों ने शिल्प व कला के रूप में ऐसी विरासत छोड़ दी जिसे दुनिया आज भी याद करती है वारंगल किले में मानो जहां-तहां इतिहास बिखरा पड़ा है। किले का प्रवेश द्वार वारंगल रेलवे स्टेशन से महज दो ही किलोमीटर की दूरी पर है। फिर किले के अवशेष वहां से लेकर पांच किलोमीटर दूर तक हनमकोंडा तक फैले हैं लगभग सहस्त्र स्तंभ मंदिर को छूते हुए। किले के भीतर पहुंचने के बाद वहां खड़े ककातीय कला तोरणम सहसा ध्यान खींच लेते हैं। ककातीय वंश की भव्यता की कहानी कहते ये तोरण द्वार कितना ऐतिहासिक महत्व रखते हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सका है कि तेलंगाना राज्य के नए लोगो में पृष्ठभूमि में चारमीनार के साथ-साथ यह ककाती...
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भारतीय मंदिरों की स्थापत्य कला व शिल्प में खजुराहो की जगह अद्वितीय है। शिल्प की दृष्टि से ये बेजोड़ हैं ही, इनपर स्त्री-पुरुष प्रेम की बेमिसाल आकृतियां गढ़ी गई हैं। इसलिए इन्हें हमेशा अन्यत्र गढ़े गए शिल्पों के मानक के तौर पर देखा जाता है। उस दौर में ऐसे कई शिल्प गढ़े गए। कुछ ध्वस्त हो गए तो कुछ गुमनामी में खो गए। राजस्थान के अलवर जिले में स्थित सरिस्का नेशनल पार्क के इलाके में बना नीलकंठेश्वर मंदिर भी अपने शिल्प व उनमें मानवीय प्रेम के चित्रण के लिए अरावली का खजुराहो कहा जाता है सबसे भुतहा जगह के रूप में विख्यात भानगढ़ को देखने के तुरंत बाद हम नीलकंठ पहुंचे। मैं यकीन से कह सकता हूं कि भानगढ़ में मौजूद लोगों में से 10 फीसदी से कम ने ही इस मंदिर के बारे में सुना होगा और जिन्होंने सुना होगा उनमें से भी 10 फीसदी से कम ही यहां कभी गए होंगे। कांकवाड़ी किले की ही तरह, जब हम नीलकंठ पहुंचे तो ...
Read Moreहैदराबाद में गोलकुंडा का किला भारत के सबसे भव्य किलों में से एक है और शिल्प के लिहाज से अनूठा भी। यह किला निजामों के इस शानदार शहर के इतिहास व विरासत का बेहतरीन नमूना पेश करता है। इसकी चमक उसी कोहिनूर हीरे सरीखी है जो यहां से निकला था यूं तो हर किले की एक कहानी होती है जिसमें राजा और रानी होते हैं। किले की कहानी में राजा की प्रजा होती है, प्रजा को दुश्मनों से बचाने के लिए तगड़ी किलेबंदी होती है, आसमान को छूते दरवाजे होते हैं। देखा जाए तो सब किलों के वैभव और उनके पराभव की दास्तानों में जबरदस्त समानता होती है। बस बदलते जाते हैं राजाओं के नाम, उनके शासनकाल के नाम और काल, उन किलों से जुड़ी हुई प्रेम कहानियों के किरदारों की तस्वीरें। इन तमाम बातों के साथ भी तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद में बसा गोलकुंडा का किला अपनी एक बिल्कुल अलहदा किस्सागोई के साथ आकर्षक का केंद्र बना हुआ है। यहां एक...
Read Moreहंपी के कुछ हिस्सों में घूमते हुए कई बार लगता नहीं कि हम पांच सौ साल पुराने इतिहास के बीच हैं। सब कुछ इतना जीवंत लगता है। वहां जाकर महसूस होता है कि जीत का अहसास कितनी भव्यता प्रदान करता है और हार उस भव्यता को किस कदर मटियामेट कर देती है। हंपी में ये दोनों ही नजारे साथ-साथ देखने को मिलते हैं हेमकुटा पहाड़ियों पर बने इक्कीस शिव मंदिरों में से एक में मैंने बारिश से बचने के लिए अपने गाइड के साथ शरण ले रखी थी। पीछे विशाल चट्टानों से बहता पानी बहुत सुंदर लग रहा था। उसने छोटे-छोटे झरनों के आकार ले लिए थे। सामने विरुपाक्ष मंदिर के तीनों शिखर एक साथ दिखाई दे रहे थे। विरुपाक्ष मंदिर हंपी के उन गिने-चुने मंदिरों में से है जिनमें आज भी विधिवत पूजा होती है। विरुपाक्ष मंदिर के भीतर जितनी चहल-पहल थी, उसके उलट हेमकुटा पहाड़ी से आसपास बने शिव मंदिरों, जैन मंदिरों और पीछे विरुपाक्ष मंदिर क...
Read Moreदक्षिण भारत के कलात्मक इतिहास में पल्लवों की वास्तु व मूर्तिकला का अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान है। इनकी गुफाएं, मंदिर और स्थापत्य भारतीय कला में एक नए अध्याय का सृजन करते हैं। धवल हिमालय से सुदुर दक्षिण में लेकिन नीले समुद्र से थोड़ा उत्तर का भू-प्रदेश अपने अंदर द्रविड़ सभ्यता व संस्कृति की विरासत को बचा कर रख पाने में सफल रहा है। कावेरी की गोद में पली द्रविड सभ्यता का केंद्र ‘तमिलकम प्रदेश’ यानि आज का तमिलनाडु अपने साथ इंसानी मेहनत और उसकी साकार हुई अनूठी कल्पना को सहेजे हुए है, जो पुरातन युग में पत्थरों को तराश कर बनाए गए मंदिरों के रूप में मौजूद हैं। शिल्पियों के औजारों से निकलने वाले अनवरत संगीत के दौर में इंसान की कल्पना को यथार्थ की जमीन मिली और ललित कला की एक खास शैली ने जन्म लिया। सामूहिक श्रम से उपजी इस शैली को द्रविड़ शैली का नाम दिया गया। दक्षिण भारत के पूर्वी भाग मे...
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