बगैर किसी हिफ़ाज़त के मोटरबाइक या दोपहिया वाहन की सवारी हमेशा बाकी किसी भी वाहन की तुलना में ज्यादा खतरनाक मानी जाती है। सड़क हादसों में कार सवारों की तुलना में दोपहिया सवारों की जान जाने की आशंका दसियों गुना ज्यादा रहती है। लिहाजा इस बात की कोशिश हमेशा से की जाती रही है कि कैसे मोटरबाइक की सवारी को ज्यादा सुरक्षित बनाया जाए। खास तौर पर अब, जबकि बाइकिंग का और दोपहिया वाहनों पर लंबी दूरी की सैर का शौक युवाओं में बढ़ता जा रहा है, कई नए काम लोगों को ज्यादा सुरक्षा देने की दिशा में हो रहे हैं। अब तक हम कारों और चौपहिया वाहनों में एयरबैग की बात करते थे जो किसी दुर्घटना की स्थिति में सवारियों को प्राणघातक चोट से बचा सकते हैं। लेकिन अगर हम आपको बताएं कि ऐसे ही एयरबैग मोटरबाइक सवारों के लिए भी हैं तो! यकीन नहीं होता न! कुछ इस तरह से ट्रिगर होगा जींस का एयरबैग तो, हममें से शायद ज्यादातर ल...
Read MoreTag: ट्रैवल
रॉकी माउंटेनियर का सफर है दुनिया की सबसे आलीशान यात्राओं में से एक इस ट्रेन में न रॉयल या प्रेसिडेंशियल या महारानी स्वीट है, न आरामदेह बिस्तर है, न कमरे में प्लाज्मा टीवी, म्यूजिक सिस्टम या शानदार शीशे का बना बाथरूम क्यूबिकल- कुछ भी नहीं। दुनिया की राजसी ट्रेन यात्राओं में अभी तक हम जिन तमाम खूबियों का जिक्र किया करते थे, वे सारी इस ट्रेन में नदारद हैं। लेकिन ठाठ इसके भी कम नहीं। यह भी दुनिया की सबसे शानदार ट्रेन यात्राओं में गिनी जाती है, उन यात्राओं में जिनके बिना दुनिया देखने के अनुभव को अधूरा कहा जा सकता है। कनाडा की रॉकी माउंटेनियर की शोहरत में यकीनन उसके भीतर की सेवाओं का योगदान खासा है तो उन कुदरती नजारे का हिस्सा भी कम नहीं जिसकी सैर वो कराती है। दरअसल यह केवल दिन की ट्रेन है। सफर इसमें दो दिन या उससे ज्यादा के भी होते हैं लेकिन हर सफर में यह ट्रेन रात में किसी शहर में प...
Read Moreअगर आप शहर की भीड़-भाड़ से ऊब चुके हैं या आप पक्षी प्रेमी हैं या प्रकृति के सानिध्य में शांतिमय दिन (रात नहीं) गुजारना चाहते हैं और अगर आप सुविधा प्रेमी नहीं हैं, तो आप ‘लाख बहोसी पक्षी विहार’ का रुख कर सकते हैं। सुविधाओं का न होना ही इस पक्षी विहार को विशिष्ट बनाता हैं। बड़े नगरों और मुख्य मार्गों से दूर होने के कारण सामान्य पर्यटक और मोटर गाडिय़ों का शोर व प्रदूषण इस स्थान तक नहीं पहुंचता। पक्षियों के लिए यह एक प्राकृतिक आवास है। इस पक्षी विहार को अपना नाम दो ग्रामों के नाम के युग्म से मिला है। लाख व बहोसी तालाबों को मिला कर इस पक्षी विहार की स्थापना 1988 में की गई थी। फिर 2007 में इसे ‘राष्ट्रीय नम भूमि संरक्षण कार्यक्रम’ के 94 स्थानों में चिह्नित किया गया। बहोसी तालाब का मार्ग सुगम हैं और पर्यटक बहोसी तालाब का भ्रमण ही करते हैं। तुलनात्मक रूप से बहोसी से लाख तालाब का मार्ग दु...
Read Moreआंध्र प्रदेश की कोलेरु बर्ड सैंक्चुअरी को भारत में पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में माना जाता है कोलेरु मीठे पानी की विशाल झील है। दरअसल इसकी गिनती एशिया में मीठे पानी की सबसे बड़ी उथली झीलों में होती है। यह आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित है। झील गोदावरी नदी और कृष्णा नदी के डेल्टाओं के बीच है। इस छिछली और दीर्घ वृत्ताकार आकृति की झील का स्वरूप मानसून के समय लगभग 250 वर्ग किलोमीटर व्यास तक विस्तृत हो जाता है। दरअसल यह झील दोनों नदियों के बाढ़ के पानी को प्राकृतिक रूप से समायोजित करने का काम करती है। कोलेरु झील 63 तरह की मछलियों, मीठे पानी के कछुए और अन्य जलचरों का घर है। इस झील में बड़ी संख्या में झींगा भी होते हैं। स्थानीय मछुआरे उन्हें पकड़कर बाजार में बेचते हैं। लेकिन सबसे खास बात यह है कि छिछली झील होने के कारण इसके आसपास का नम इलाका प्रवासी पक्षियों क...
Read Moreपहली नजर में सांभर झील का विस्तार किसी दूसरे ग्रह का इलाका सा लगता है। दूर तक छिछला पानी, उसमें सफेद नमक के ढेर, पानी में डूबती-निकलती रेल पटरियां जो नमक से लगे जंग के कारण बाबा आदम के जमाने की लगती हैं और उस पानी में जहां-तहां बैठे प्रवासी परिंदे। कोई हैरत की बात नहीं कि बॉलीवुड की मशहूर फिल्म पीके में आमिर खान के दूसरे ग्रह से धरती पर अवतरित होने वाले दृश्य को यहां फिल्माया गया था। हालांकि सांभर झील की खूबसूरती और अहमियत, दोनों ही उससे कहीं ज्यादा हैं। सांभर झील में फ्लेमिंगो राजस्थान में अजमेर, जयपुर और नागौर के बीच करीब 230 वर्ग किमी इलाके में फैली भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील सांभर को आमतौर पर नमक उत्पादन के लिए ही जाना जाता रहा है। हालांकि बर्फ के मैदानों सा अहसास कराते इसके नमक के भंडार और पानी पर कई हजारों की तादाद में दिखने वाले गुलाबी फ्लेमिंगो पक्षी इसे राजस्थान के ...
Read Moreदक्षिण भारत के कलात्मक इतिहास में पल्लवों की वास्तु व मूर्तिकला का अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान है। इनकी गुफाएं, मंदिर और स्थापत्य भारतीय कला में एक नए अध्याय का सृजन करते हैं। धवल हिमालय से सुदुर दक्षिण में लेकिन नीले समुद्र से थोड़ा उत्तर का भू-प्रदेश अपने अंदर द्रविड़ सभ्यता व संस्कृति की विरासत को बचा कर रख पाने में सफल रहा है। कावेरी की गोद में पली द्रविड सभ्यता का केंद्र ‘तमिलकम प्रदेश’ यानि आज का तमिलनाडु अपने साथ इंसानी मेहनत और उसकी साकार हुई अनूठी कल्पना को सहेजे हुए है, जो पुरातन युग में पत्थरों को तराश कर बनाए गए मंदिरों के रूप में मौजूद हैं। शिल्पियों के औजारों से निकलने वाले अनवरत संगीत के दौर में इंसान की कल्पना को यथार्थ की जमीन मिली और ललित कला की एक खास शैली ने जन्म लिया। सामूहिक श्रम से उपजी इस शैली को द्रविड़ शैली का नाम दिया गया। दक्षिण भारत के पूर्वी भाग मे...
Read Moreघुमक्कड़ी की दुनिया में 13वीं-14वीं सदी के मोरक्को के शिक्षाविद व यायावर इब्ने बतूता के नाम से कई कहावतें प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक है कि “Traveling leaves you speechless, then turns you into a storyteller, ” यानी घुमक्कड़ी, पहले तो आपको स्तब्ध कर देती है और फिर आपको एक कहानीकार में तब्दील कर देती है। मायने यह कि घूमते-घूमते आप प्रकृति से इतने मोहित हो जाते हैं कि आप निरंतर उस अनुभव को दूसरों से साझा करने को उत्सुक रहते हैं, यह अनुभव आपको ऊर्जा व शब्द, दोनों देता है। इंदौर में पेशे से न्यूरोसर्जरी के प्रोफेसर अजय सोडानी की किताब ‘दर्रा-दर्रा हिमालय’ इसी स्टोरीटेलिंग का अच्छा नमूना है। डॉक्टरी के व्यस्त पेशे से घूमने के लिए समय निकाल पाने वाली बात दरअसल अब हैरान नहीं करती क्योंकि पिछले दो दशकों में ऐसे कई डॉक्टरों के बारे में लिख-पढ़ चुका हूं जिन्हें घूमना हद से ज्यादा पसंद है और वे...
Read Moreजब घुमक्कड़ी की बात आती है तो मुझे सबसे ज्यादा हिमालय पसंद हैं। मुझे हिमालय की गोद में जाकर जितना रोमांच मिलता है उतना किसी और बात में नहीं मिलता। उसी तरह जितना सुकून मुझे वहां मिलता है, उतना सुकून भी कहीं और नहीं मिलता। इसलिए कोई हैरत की बात नहीं कि हर थोड़े महीनों के बाद, मुझे जब भी मौका मिलता है, मैं हिमालय की तरफ भाग लेता हूं। यही वजह थी कि जब मैंने अपनी नौकरी छोड़ी तो मैं भारत के उत्तर-पूर्व इलाके की ओर जाकर जम गया। और जहा सोचिए कि नौकरी छोड़ने के बाद मैंने पहला काम क्या किया? मैं तुरंत ही सबसे पहले हिमालय की तरफ भाग लिया और मैं केदारकांठा के लिए सर्दियों में ट्रेक पर निकल पड़ा। सर्दियों में ट्रेकिंग के शौकीन काफी लोग दिसंबर में केदारकांठा जाना पसंद करते हैं लेकिन मैंने जनवरी में जाना पसंद किया क्योंकि केदारकांठा का ट्रेक साल के किसी भी औऱ वक्त की तुलना में जनवरी के महीने में ...
Read Moreजांस्कर नदी हमारे उत्तर भारत के उस इलाके में स्थित हैं जो लगभग सात से आठ महीने तक दुनिया के बाकी हिस्सों से अलग-थलग पड़ जाता है। इस दौरान यहां एक अलग ही दुनिया होती है। इसे देखकर लगता है मानो हम हिम-युग में पहुंच गए हैं। जम्मू-कश्मीर के लद्दाख इलाके में जांस्कर क्षेत्र में स्थित जांस्कर नदी इन महीनों में पूरी तरफ बर्फ से ढक जाती है। मानो किसी ने नदी को सफेद चादर से ढक दिया हो। यह नजारा विलक्षण, अद्भुत व अविस्मरणीय बन पड़ता है। ऊपर बर्फ की ठोस मोटी परत और उसके नीचे से बहती हुई नदी की निर्मल, अविरल धारा। रोचक बात है कि बर्फ की यही चादर इन महीनों में इस इलाके की जीवनरेखा बन जाती है। प्राचीन काल से ही बर्फ से ढके इस रास्ते पर राजा-महाराजा, साधु-संन्यासी, बौद्ध भिक्षु और आम लोग तमाम तकलीफों से जूझते हुए भी अपने मुकाम पर बढ़ते रहे हैं। अब यह दुष्कर रास्ता हमेशा तो इस तरह से नजर नहीं आता। इसल...
Read Moreनल सरोवर भारत में ताजे पानी के बाकी नम भूमि क्षेत्रों से कई मायनों में भिन्न है। सरदियों में उपयुक्त मौसम, भोजन की पर्याप्तता और सुरक्षा ही इन सैलानी पक्षियों को यहां आकर्षित करती है। सरदियों में सैकड़ों प्रकार के लाखों स्वदेशी पक्षियों का जमावड़ा रहता है। इतनी बड़ी तादाद में पक्षियों के डेरा जमाने के बाद नल में उनकी चहचाहट से रौनक बढ़ जाती है। सितंबर 2012 में इसे अंतरराष्ट्रीय महत्व का रामसर नम भूमि क्षेत्र के रूप में घोषित कर दिया गया था। नल में इन्हीं उड़ते सैलानियों की जलक्रीड़ाएं व स्वर लहरियों को देखने-सुनने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक यहां प्रतिदिन जुटते हैं। पर्यटकों के अतिरिक्त यहां पक्षी विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, शोधार्थी व छात्रों का भी जमावड़ा लगा रहता है तो कभी-कभार यहां पर लंबे समय से भटकते ऐसे पक्षी प्रेमी भी आते हैं जो किसी खास पक्षी के छायाचित्र भी उतारने की तलाश में रहते...
Read More
You must be logged in to post a comment.